वर्ष 2030 में बृहत्तर जयपुर में तीन महिनों का प्रवास करेंगे आचार्य महाश्रमण
शीत और ऊष्ण को सहन करने वाला निग्रंथ : आचार्य महाश्रमण
सूरत। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने रविवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जो निग्रंथ होता है, वह शीत और ऊष्ण को सहन करता है। सामान्यतया ठंडक होती है, वह शीत होती है। दिसम्बर, जनवरी, फरवरी काफी सर्दी पड़ती है। आदमी ठिठुरने लग जाता है, ऐसी सर्दी पड़ती है। उस सर्दी को सहन करना भी धर्म है। मई, जून महिने तो कभी-कभी आश्विन महिने में बहुत गर्मी लगती है तो उसे भी सहन करना साधु का धर्म बताया गया है। शीत और ऊष्ण का कुछ गूढ़ रहस्य भी होता है।
अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति को सहन करने वाला निग्रंथ, जो संत होता है, वह शांत होता है। जो गुस्सैल होता है, उसके संतता में मानों कमी की बात हो सकती है। छठे गुणस्थान में रहने वाले साधु को कभी गुस्सा आ भी सकता है, लेकिन गुस्सा कहीं भी काम का नहीं होता।
गृहस्थ जीवन में गुस्सा काम का नहीं होता। भले आप बिजनेस करें, भले समाज के संगठन और संस्थाओं में काम करें, परिवार में रहें तो वहां भी ज्यादा गुस्सा काम का नहीं हो सकता। छोटा हो या बड़ा, किसी को ज्यादा गुस्सा कहीं भी काम का नहीं होता। छोटी-मोटी बातों को छोड़कर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। व्यापार, धंधा, ऑफिस आदि में बात-बात में गुस्सा आने लगे तो व्यापार, धंधा और ऑफिस का माहौल खराब हो सकता है। ग्राहकों में कमी आ सकती है। ज्यादा गुस्सा करने वाले को समाज के लोग भी बहुत आगे लाने से बचेंगे। समाज में मुखिया बनने के लिए ईमानदारी, शांतता, स्वास्थ्य की अनुकूलता जैसी अर्हता होनी चाहिए।
आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में काफी संख्या में जयपुर के लोग उपस्थित थे। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने जयपुर की जनता को मंच के निकट आने का इंगित प्रदान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने कहा कि आज कार्तिक कृष्णा तृतीया परम पूज्य माणकगणी की वार्षिक पुण्यतिथि है। जयाचार्यजी का महाप्रयाण जयपुर में हुआ था। माणकगणी हमारे धर्मसंघ के छठे आचार्यजी थे। जयपुर के लोगों ने खास रूप से 2030 का किया है।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने जयपुर में 2008 में चतुर्मास किया था। मैं कुछ कहना चाहता हूं कि आचार्यश्री ने अपने आराध्यों का स्मरण करते हुए कहा कि सन् 2030 में बृहत्तर जयपुर में यथासंभवतया कम से कम तीन महिनों का प्रवास करने का भाव है। आचार्यश्री की इस घोषणा से जयपुरवासी जयघोष कर उठे। श्री शांतिलाल गोलेछा ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। जयपुर से जुड़ी हुई महिलाओं ने अपनी प्रस्तुति दी।