आचार्य महाश्रमण व ऑर्ट ऑफ लिविंग के श्रीश्री रविशंकर का आध्यात्मिक मिलन
सूरत (गुजरात) : रविवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकरजी पहुंचे। दो धर्मगुरुओं का आध्यात्मिक मिलन सूरतवासियों को हर्षविभोर बना रहा था। आचार्यश्री का उनके साथ कुछ समय तक वार्तालाप का क्रम रहा। जिस दौरान अध्यात्म, योग विषयक एवं समसामयिक बिंदुओं पर चर्चा हुई। इससे पूर्व भी सन् 2019 में दोनों महापुरुषों का मिलन हुआ था। आज का यह मंगल दृश्य देख सूरतवासी अभिभूत हो उठे।
महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि आयारो आगम में कहा गया है कि जिस साधक मुनि मूल और अग्र का विवेचन कर लिया है, आश्रव या कर्मों के क्षय का पथ उसने देख लिया है और जिसने निष्कर्म दर्शन प्राप्त कर लिया है, वह अध्यात्म का मार्ग देख लेता है। आदमी जन्म लेता है। जन्म लेने के बाद कई-कई व्यक्ति उस विशेष मार्ग को देख लेने वाले होते हैं। भगवान महावीर ने इस दुनिया में जन्म लिया और अध्यात्म का मार्ग देखा और उस पर चले ही नहीं, अपनी मंजिल को भी प्राप्त कर लिया।
मार्ग को देख लेना, जान लेना एक बात है, फिर चलने का संकल्प करना दूसरी बात और चलना तीसरी बात और चलकर मंजिल को प्राप्त कर लेना चौथी बात सफलता की बात हो जाती है। आचार्यश्री भिक्षु ने भी जन्म लिया और एक मार्ग ग्रहण किया। उनके परंपर पट्टधर परम पूजनीय गुरुदेवश्री तुलसी ने आज के दिन लाडनूं के खटेड़ परिवार में एक शिशु के रूप में जन्म लिया। वे अपने जीवन के बारहवें वर्ष में दीक्षित भी हो गए। परम पूज्य कालूगणी का जन्म भी शुक्ला द्वितीया है और उनके सुशिष्य और अनंतर उत्तराधिकारी परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी का जन्मदिवस भी शुक्ला द्वितीया है। वे तेरापंथ धर्मसंघ के अद्वितीय आचार्य थे।
आचार्यश्री तुलसी के जन्म को 110 वर्ष हो गए। मुझे परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी की जन्म शताब्दी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जन्म शताब्दी को मनाने का अवसर मिल गया। वे हमारे गुरु तो थे ही और भी साधु-साध्वियों ने उनका साया प्राप्त किया। उन्होंने अणुव्रत आन्दोलन का सूत्रपात किया। विदेश में हो या देश में अहिंसा नैतिकता व संयम का प्रसार होता रहे और लोगों में सदाचार, संयम, अहिंसा के भाव पुष्ट होते रहें।
समणी ज्योतिप्रज्ञाजी की लिखित पुस्तक ‘उपमा कोश’ को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। समणीवृंद ने आचार्यश्री तुलसी के जन्मदिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया।
साध्वीप्रमुखाजी तथा साध्वीवर्याजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। समणी कुसुमप्रज्ञाजी, समणी मधुरप्रज्ञाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुमुक्षु ऋषिका, खटेड़ परिवार के श्री छतर खटेड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। खटेड़ परिवार के सदस्यों ने गीत का संगान किया।