धर्म- समाज

जीवन में विचारों का बहुत महत्व है

मनुष्य के जीवन में विचारों का बहुत महत्व है। हमारे तत्ववेत्ताओं ने विचार के साथ साथ आचार को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया है। जिस प्रकार अनन्त आकाश में उड़ान भरने वाले पक्षी के लिए यह आवश्यक है कि उसके दोनों ही पंखों में उड़ान भरने की क्षमता हो। क्योकि एक पंख के बेकार होने पर आकाश की ऊंचाइया तो क्या वह पांच फुट भी ऊंची उड़ान भरने में असक्षम हो जाता है। उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में ऊंचाई प्राप्त करने हेतु उसके आचार और विचार के दोनों ही पंख बिलकुल ठीक होने जरूरी है। साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए आचार विचार के इन दोनों ही पंखों को ठीक रखना होगा।

किसी भी व्यक्ति परिवार समाज एवं राष्ट्र के रूप में चेतन्य जगत का उद्धार तभी संभव है, जब उसमे शुद्ध और सात्विक विचारों की तरंग प्रवहमान हो। इसलिए कहा गया है कि जो अज्ञानी तथा विचारहीन आत्माएं है अथवा जिनके भीतर सदैव अज्ञान का अंधकार घनीभूत रहता है। वे आत्माएं संसार मे ऊँचाई की और भला कैसे अग्रसर होती है? जो सदैव खारे कूप का पानी पीता है। उसे गंगाजल के स्वाद का आनन्द कैसे मिल सकता है? अवसर आने पर गंगाजल पीने को भी मिल जाएगा तो वह अजीब तरह का अनुभव करेगा। विचारहीन मनुष्य कीचड़ में पैदा होने वाले कीटो से अधिक कुछ भी नही है। अंतर इतना ही है कि कीट से मानव कीट कुछ बड़े कीट है। वे ये नही सोचते कि संसार क्या है तथा स्वर्ग और नरक क्या होते है।

आत्मा की ज्योति क्या होती है और मोक्ष किसे कहते है? इन प्रश्नों को जानने की जिज्ञासा उन मानव कीटो को कभी नही होती। परमात्मा का प्रकाश कैसा होता है? किस प्रकार जीवात्मा सांसारिक बंधनो को काटकर मोक्ष को प्राप्त होती है। इन बातों से उन्हें कोई लेना देना नही होता। विचारहीन मनुष्य की आत्मा अज्ञान अंधकार में ही गोते खाती रहती है। विचार अगर महान है तो हमारे काम भी महान होंगे। दुराचारी पुरुष संसार मे सज्जनों के मध्य में निंदा को प्राप्त ,निरन्तर दुःख भोगने वाला और अनेक प्रकार के रोगों से अल्पायु होकर नष्ट हो जाता है।

धर्मयुक्त कर्मो का आचरण ही जीवन का उत्थान करता है। मनुष्य का उसके परिवार समाज और देश के प्रति ही नही,बल्कि विश्व के प्रति भी कुछ दायित्व बनता है। दायित्वों को नकारने वाला व्यक्ति कितना ही विचारवान हो, वह निकम्मा ही है। उससे किसी का भला होने वाला नही है। उच्च विचारों को आचरण में उतारना चाहिए।

( कांतिलाल मांडोत )

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