धर्म- समाज

शस्त्रों का त्याग कर शास्त्रों को करें धारण : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

8वें डॉक्टर्स सम्मेलन में आध्यात्मिक जगत के डॉक्टर की सन्निधि में सैंकड़ों डॉक्टर्स हुए उपस्थित

सूरत (गुजरात) : सिल्क सिटी सूरत की धरा पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का पावन चतुर्मासकाल प्रारम्भ हो चुका है। इस दौरान आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में विभिन्न संस्थाओं और संगठनों द्वारा सम्मेलन, संगोष्ठी व समारोह आदि के कार्यक्रम भी प्रारम्भ हो चुके हैं। शनिवार को महावीर समवसरण में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के साथ तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा 8वें डॉक्टर्स सम्मेलन का शुभारम्भ हुआ।

महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आचारांग भाष्यम्’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में 32 आगमों को प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है। जिनमें ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार मूल, चार छेद और एक आवश्यक है। इन बत्तीस आगमों में जो ग्यारह मूल है, वे अति महत्त्वपूर्ण प्रमाण है। इनमें से मैंने पांचवें अंग भगवती सूत्र का समापन किया था। आज से मैंने आयारो जो ग्यारह अंगों में पहला अंग है, उसका मैं व्याख्यान प्रारम्भ करने से जा रहा है। इसका दूसरा भाग आयार चूला है। यह पहला श्रुतस्कंध है। इसमें कुल नौ अध्ययन हैं। इसमें से सातवां अध्ययन अनुपलब्ध है। इसके नवमें अध्ययन में संक्षेप में भगवान महावीर की जीवनी भी प्राप्त होती है।

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पहले अध्ययन का वाचन करते हुए कहा कि आदमी हिंसा के लिए शस्त्र का प्रयोग करता है। एक ओर शस्त्र है और दूसरी ओर शास्त्र। आदमी शास्त्रों को हाथ में ले और शस्त्रों को छोड़ने, प्रत्याख्यान करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को शास्त्र का अध्ययन करना चाहिए। जिसमें शासन, अनुशासन करने की बात और त्राण करने वाला शास्त्र होता है। साधु को क्या कल्पता है, क्या नहीं कल्पता है, इसकी जानकारी शास्त्र से प्राप्त होता है। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वारा संस्कृत भाषा में इस आयारो पर संस्कृत भाषा में भाष्य लिखा है। उस भाष्य से भी अनेक जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं।

आत्मवाद का बहुत बड़ा सिद्धांत है। आत्मा न हो तो अध्यात्म जगत की साधना का कोई महत्त्व नहीं होता। आत्मा है, शाश्वत है, कर्म है, पाप-पुण्य है, बंध-मोक्ष की बात है तो इस अध्यात्म, ध्यान, साधना, तप, व्रत नियम का पालन फलीभूत हो सकता है। भगवान महावीर के पहले उत्तराधिकारी सुधर्मा स्वामी बने। पिछले जन्म का पता चलने का कारण है-स्व स्मृति, पर व्याकरण और दूसरों के पास सुनने से यह ज्ञान हो जाता है कि मैं पिछली जन्म में यहां था और अब यहां पैदा हुआ हूं। जन्म को दुःख होता है और जन्म होता है तो दुःख से आत्मा विचलित हो जाती है, इसलिए पता नहीं चल पाता कि आदमी कहां से आया है। इस प्रकार मैंने आयारो से इस चर्चा को करने का प्रयास किया है।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने ‘चंदन की चुटकी भली’ में वर्णित सनत्कुमार के आख्यान क्रम का संगान और उसको सरल भाषा में उद्भाषित किया। तदुपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। जैन विश्व भारती द्वारा मुनिश्री धर्मचंदजी स्वामी ‘पीयूष’ की ‘मेरी धर्मयात्रा’ का आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पण किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान किया।

 तेरापंथ प्रोफोशनल फोरम द्वारा 8वें डॉक्टर सम्मेलन का प्रारम्भ हुआ

आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में तेरापंथ प्रोफोशनल फोरम द्वारा 8वें डॉक्टर सम्मेलन का प्रारम्भ हुआ। इसमें 100 से अधिक डॉक्टर पूज्य सन्निधि में उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में टी.पी.एफ. मेडिकल सेल के कन्वेनर डॉ. कपिलजी व डॉ. निर्मल चोरड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में आत्मा और शरीर का योग है। आत्मा और शरीर के इस योग में आदमी को अपनी स्थाई आत्मा पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। डॉक्टरों के सामने कई बार ऐसी स्थिति भी आ जाती है कि डॉक्टर जवाब दे देते हैं कि ले जाओ अब सेवा करो। शरीर के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी आवश्यक होता है। डॉक्टर्स तो स्थूल भाषा में मरीज के लिए भगवान के समान होते हैं। अपने जीवन में इतनी आध्यात्मिकता को इस प्रकार जोड़ा जाए कि बीमार होने पर भी मनोबल मजबूत रहे तो यह डॉक्टर्स सम्मेलन अच्छा निष्पत्तिपूर्ण बनें, मंगलकामना।

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