प्रभु राम से संलग्नता जीवन की सार्थकता और सफलता है
यह संसार संसरण शील है। प्रतिपल संसार मे कई जन्म लेते है और कोई काल के गाल में समाहित हो जाते है।किसको अवकाश है ,जो जन्म लेने वाले और मरने वाले को याद करे। याद उन्ही को किया जाता है, जिन्होंने जीवन को,जीवन के ढंग से जिया है। राम राम ही थे। आज इस तीन लोको में ऐसा महामानव दिखाई नही देता,जिसे राम के बराबर खड़ा किया जा सके।
राम का नाम अपने आप मे अत्यंत प्रभावशाली है। गोस्वामी तुलसीदास ने राम नाम को मणिदीप कहा गया है। मणिदीप हवा तो क्या आंधी तूफान में भी नही बुझता। इसके प्रकाश में पतंगे भी जलकर नष्ट नही होते। देहरी द्वार की विशेषता यह है कि देहरी द्वार पर रखा दीपक घर के भीतर और बाहर दोनों और के अंधकार का हरण करता है। राम के नाम का स्मरण करके अतीत में अनेकों ने अपने जीवन मे सिद्धिया प्राप्त की है।
राम को प्रातःकाल होतेही चौदह वर्ष का वनवास मिलता है तो ऐसी विषम परिस्थिति में आज का कोई बेटा होता तो हार्टफेल हो जाता। लेकिन भगवान राम आनंदविभोर हो गए। अयोध्या का राज राम ने बताऊँ की तरह त्याग किया।आराम के लिए हर परिस्थिति में राम से जुड़ना अनिवार्य है।
नाम,दाम, काम और चाम से बहुत जुड़े है,इस जुड़न से तनाव ही तो बढे है। राम से संलगनता जीवन की सफलता और सफलता है। जो राम से संलग्न है वह कभी भी कही भी पराजित नही होता है। राम उत्साह और प्रामाणिकता का प्रतीक है। सफल होने के लिए भीतर में राम अथवा धर्म धैर्य उत्साह और स्फूर्ति का होना नितांत जरूरी है।
किसी व्यक्ति द्वारा कोई अकरणीय कार्य हो जाता है तो उसे अक्सर कहा जाता है। इस व्यक्ति के भीतर राम ही निकल गया । एक राम दशरथ का बेटा एक राम घट घट बैठा। एक राम का जगत पसारा, एक राम दुनिया से न्यारा। राम का महत्व अद्भुत है। सागर पार करते समय सेतु बंध की दृष्टि से जब पत्थरो का उपयोग किया जाने लगा तो जिन पत्थरो पर राम अंकित था वे तीर गए एवं जो राम से पृथक या शून्य थे,वे डूब गए।
राम जीवन की विनम्रता सूझबूझ उदारता और निष्ठा आदि के बारे में जो कुछ भी कहा जाए,वह कम है। राम के नाम पर मंदिरों और अन्य भवनों का निर्माण ही पर्याप्त नही है।आज आवश्यकता इस बात की है हम राम के जीवन की कुछ बाते ग्रहण करे और अपने जीवन को राममय बनाने का प्रयास करे।
मन मे राम को प्रतिस्थापित कीजिये। जन जन राम से जुड़े।राममय बने एवं संपूर्ण वातावरण में रामराज्य की मंगल प्रस्थापना हो।यदि ऐसा हो पाया तो निश्चित रूप से बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
( कांतिलाल मांडोत )