भगवती सूत्र आगम है तत्त्वज्ञान का खजाना : आचार्य महाश्रमण
नवदीक्षित साधु-साध्वियों को शांतिदूत ने प्रदान की बड़ी दीक्षा
सूरत (गुजरात) : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र तत्त्वज्ञान का खजाना भरा हुआ है। यह अंग आगम है और इस एक पोथे में विभिन्न विषयों की जानकारियां दी गई हैं। इसके स्वाध्याय से विभिन्न जानकारियां मिल सकती हैं और श्रुत की संपदा प्राप्त हो सकती है। इसमें जैसा वर्णन क्रम है, उसके अनुसार गौतम स्वामी की अच्छी भूमिका है। वे प्रश्नकर्ता हैं, उनके प्रश्नों का उत्तर देने में भगवान महावीर ने भी कितना श्रम किया गया होगा। प्रश्नकर्ता और समाधान प्रदाता दोनों का अच्छा योग मिलने पर कितनों को नया अवबोध प्राप्त हो सकता है।
भगवती सूत्र के 41वें शतक के अंतिम सूत्र में गौतम स्वामी ने अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के उपरान्त भगवान महावीर को वंदन और नमस्कार कर निवेदन करते हैं कि जो आपने कहा है, वह सत्य है। तदुपरान्त गौतम स्वामी वहां से ज्ञान ग्रहण कर विहरण करते हैं। इस प्रकार भगवती सूत्र संवादात्मक शैली वाला ग्रंथ है। इस भगवती सूत्र में मैंने देखा कि कहीं पर भी कृतज्ञता ज्ञापन वाली बात नहीं आई। गौतम स्वामी ने भगवान महावीर के प्रति कृतज्ञता प्रकट नहीं किया है। अन्य आगमों में भी कृतज्ञता ज्ञापित नहीं मिला है। शायद कृतज्ञता व्यावहारिक रूप हो सकता है, इस प्रक्रिया से गौतम स्वामी बहुत ऊंचे उठे हुए लग रहे हैं। विनय का प्रयोग, वंदन और नमस्कार अवश्य किया गया है, किन्तु कृतज्ञता की बात नहीं है। हमें जो आज ज्ञान प्राप्त हो रहा है, उसके बड़े माध्यम गौतम स्वामी बने हैं।
इस भगवती सूत्र का कोई अध्ययन करे तो कितना-कितना तत्त्वज्ञान ग्रहण किया जा सकता है। आज मैं यहां भगवती सूत्र को विदाई दे रहा हूं। कल से आचारंगभाष्यम् पर प्रवचन करने का संभवतः प्रयास करूंगा। तदुपरान्त आचार्यश्री ने गुरुदेव तुलसी द्वारा रचित पुस्तक ‘चंदन की चुटकी भली’ में सनत्कुमार के संदर्भ में वर्णित पद्यों की संगीतमय आख्यान को जनता को प्रदान किया। इस दौरान आचार्यश्री ने उसकी व्याख्या भी की। अपने आराध्य के श्रीमुख से भगवती सूत्र से तात्त्विक ज्ञान व संगीतमय आख्यान का श्रवण कर डायमण्ड नगरी की जनता की अत्यंत हर्षित नजर आ रही थी।
मंगल प्रवचन व संगीतमय आख्यान के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सात दिन पूर्व दीक्षित हुए साधु-साध्वियों को आर्षवाणी का समुच्चारण करते हुए बड़ी दीक्षा (छेदोपस्थापनीय चारित्र) प्रदान की। आर्षवाणी का उच्चारण कर आचार्यश्री ने नवदीक्षितों को पंचमहाव्रतों में स्थापित किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने नवदीक्षित साधु-साध्वियों को मंगल प्रेरणा भी प्रदान की।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सूरत शहर की ओर से सामूहिक रूप में अठाई की तपस्या के अनुपम प्रयोग के अंतर्गत आज तपस्वियों ने श्रीमुख से अठाई की तपस्या का त्याग स्वीकार किया। हजारों की संख्या में उपस्थित होकर सूरतवासियों ने अपने महातपस्वी आचार्य को अपनी आध्यात्मिक भेंट अर्पित की। मुनि चिन्मयकुमारजी ने आचार्यश्री से आठ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। मुनि राजकुमारजी ने गीत का संगान किया।
आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा आयोजित मेधावी छात्र सम्मान समारोह का भी आयोजन हुआ। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के एजुकेशन कमिटी की चेयरमेन डॉ. वंदना डांगी, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री पंकज ओस्तवाल, ट्रस्टी श्री संजय जैन ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में ज्ञान का महत्त्व तो आचरण का भी बहुत महत्त्व होता है। संसारी जीवन में धन, पद, प्रतिष्ठा आदि का भी अपना महत्त्व है। आज मेधावी सम्मान समारोह का प्रसंग है। मेधावी बनना भी जीवन एक उपलब्धि है। व्यवहार में अंक एक कसौटी बनती है। तेरापंथ समाज के बच्चों को अच्छा विकास का रास्ता मिले। उनमें अच्छा संकल्प रहे। संकल्प से सफलता की प्राप्ति हो सकती है। जीवन में आचरणों की शुद्धि रहे। जीवन नशे से मुक्त रहे। छात्र-छात्राएं अपने जीवन में धार्मिक-आध्यात्मिकता का भी विकास करने का प्रयास करें।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आरम्भ हो चुके उपासक शिविर के संदर्भ में समुपस्थित उपासक-उपासिकाओं को उपसंपदा प्रदान की।