परमात्मा की वाणी से जीवन में आता है परिवर्तन : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी
पूरे भारत में सिद्धितप की तपस्या लाखों में हो रही है
सूरत। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने आज गुरूवार 22 अगस्त को प्रवचन में कहा कि उत्तराध्ययन सूत्र के तीसरे अध्याय में पहला श्लोक जो अपने भविष्य का निर्माण करने वाला है। वह पाना, पाना नहीं है, जिसे पाने के बाद छोड़ना पड़ें। वह पाना पाना है, जो हमारा उपहार बन जाए। जो हमारे कल्याण का मार्ग बन जाए। परमात्मा की वाणी से जीवन में परिवर्तन जरूर आता है। पूरे भारत में सिद्धितप की तपस्या लाखों में हो रही है।
उन्होंने कहा कि जीवन को पाने के बाद हमें दान रूचि, साधर्मिक भक्ति, अल्प कषाय करना चाहिए। कषाय से कोई मुक्त नहीं है आप भी नहीं और साधु भी नहीं। अल्प कषाय के तीन भेद है, शिघ्र कषाय, दिर्घ कषाय और तीव्र कषाय है। इन तीनों को हमें समझना है। अल्प कषाय मनुष्य जीवन को प्राप्त करने का प्रबल उपाय है।
आज हैदराबाद के अति प्राचीन कुलपाकजी तीर्थ के ट्रस्ट मंडल के नेतृत्व में 20 से 25 लोगों का संघ उपस्थित रहा। जिसमें सुरेंद्र भाटिया, वसंतजी सहित श्रद्धालु शामिल थे। जिन्होंने अगले 2025 में चारों संप्रदाय की ओर से हैदराबाद में चातुर्मास के लिए आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. को न्यौता दिया। और आचार्यश्री ने उसे स्वीकार किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि अगर सबको मन में यह भाव आ जाए कि मैं श्वेताम्बर, स्थानकवासी, डिंगबर, तेरापंथी बाद में हूं, मैं पहले एक जैन हूं, ऐसा भाव आ जाएंगा तो जैन समाज का नक्शा बदल जाएगा।