वैर बढ़ाने वाली होती हैं कामनाएं : आचार्य महाश्रमण
जैन विश्व भारती के द्विदिवसीय वार्षिक अधिवेशन का रहा मंचीय उपक्रम
सूरत (गुजरात) : डामण्ड सिटी सूरत में भव्य चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अभी भी निरंतर संस्थाओं के अधिवेशन का क्रम भी जारी है तो उसके साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु जनता संघबद्ध रूप में उपस्थित होकर पावन आशीर्वाद प्राप्त कर रही है। गुरुवार को आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में एक ओर जहां जैन विश्व भारती के द्विदिवसीय वार्षिक अधिवेशन का उपक्रम रहा तो दूसरी ओर सूरत के लगभग 28 विद्यालयों के विद्यार्थियों ने उपस्थित होकर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
गुरुवार को महावीर समवसरण से भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में कहा गया है कि आदमी कामासक्त होता है, कामनाओं से ग्रस्त होता है। ऐसा आदमी वैर को बढ़ाने वाला होता है। अपने आपको दुःखी बनाना, पाप कर्मों का बंधन करना भी स्वयं के प्रति वैर बढ़ा लेने की बात होती है। कामनाओं की पूर्ति होते ही आगे की कामना हो जाती है। यदि कामनाओं की पूर्ति नहीं होती आदमी के मन में आक्रोश भी आ सकता है। किसी आदमी में सत्ता प्राप्ति की कामना, किसी को धन प्राप्ति की कामना, किसी को यश-ख्याति की कामना आदि-आदि अनेक प्रकार की कामनाएं पनपती रहती हैं। कामनाओं का होना ही दुःख का कारण होता है।
कामनाओं के कारण होने वाले दुःख से बचने व उसे कम करने के लिए मानव को अपनी कामनाओं को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में अच्छे कार्य में पुरुषार्थ करे और उन अच्छे कार्यों के द्वारा भौतिक पदार्थों की कामना नहीं करना चाहिए। कई बार पुरुषार्थ के बाद भी प्रतिफल प्राप्त हो जाए, यह कोई जरूरी नहीं होता। इससे भी आदमी को दुःखी नहीं बनना चाहिए। कर्म करने के बाद भी यदि मनोनुकूल फल नहीं भी मिले तो भी आदमी को समता व शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को अपने पुरुषार्थ में कमी नहीं रखना चाहिए, परिणाम हाथ की बात नहीं। साधु-साध्वी भी यदि कई लोगों पर ध्यान देने के बाद भी एक भी मुमुक्षु तैयार नहीं कर सके तो सोचना चाहिए कि सबको जोड़ लेना और धर्म से जोड़ देना मेरे क्षेत्र की बात नहीं। इसलिए आदमी को अनपेक्षित कामनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को जीवन में पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। कामना भी हो तो आत्मकल्याण की कामना हो तो जीवन का अच्छा क्रम बन सकता है।
आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि उदितकुमारजी ने तेरापंथ दर्शन और तत्त्वज्ञान के संदर्भ में साध्य और साधन पर अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती का द्विदिवसीय वार्षिक अधिवेशन का आज मंचीय उपक्रम भी था। इस क्रम में जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए गत दो वर्ष में हुए जैन विश्व भारती के गति-प्रगति का विवरण वीडियो के माध्यम से प्रस्तुत किया। जैन विश्व भारती के मंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी।
इस अवसर पर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ से संबद्ध विविध संस्थाएं हैं, उनमें एक है जैन विश्व भारती। इस संस्था का जन्म आचार्यश्री तुलसी के समय हुआ था। यह संस्था अपनी शताब्दी के उत्तर्राध में चल रही है। इस संस्था ने विकास किया है। कई बार भौतिक सहयोग आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए आवश्यक होता है। गुरुदेव तुलसी तो वहां लगातार दो-दो चतुर्मास करते थे। इसमें मान्य विश्वविद्यालय विकसित हुआ है। वहां एक आश्रम का-सा रूप है। वहां योगक्षेम वर्ष का आयोजन हुआ था। आचार्यश्री तुलसी ने जैन विश्व भारती को कामधेनु कहा था। शिक्षा, शोध, साधना, साहित्य आदि गतिविधियां खूब आगे बढ़ती रहें। मैंने तो वहां योगक्षेम वर्ष का निर्धारण भी कर दिया है। खूब अच्छा विकास होता रहे। आचार्यश्री के मंगल आशीर्वचन के उपरान्त साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने गीत का संगान किया।
सूरत के लगभग 28 स्कूल के विद्यार्थियों ने ‘बदले युग की धारा’ गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में आशीष प्रदान करते हुए कहा कि शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी विद्यार्थियों को प्रदान किया जाता रहे। विद्यार्थियों के जीवन में अच्छे गुणों और संस्कारों का विकास होता रहे।