धर्म- समाज

संप्रदाय अलग, किन्तु अहिंसा, संयम, तप सभी के अनुपालनीय :  आचार्य महाश्रमण

महापुरुषों का दर्शन पुण्याई का प्रतिफल : स्वामी त्यागवल्लभजी

सूरत (गुजरात) : मानवता के मसीहा, शांतिदूत, अहिंसा यात्रा प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के रूप में समायोजित हुआ। जिसमें हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के अध्यक्ष प्रकट गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज व स्वामी त्यागवल्लभजी आदि शिष्यों के साथ आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे तो मानों सांप्रदायिक सौहार्द फलीभूत हो उठा।

श्वेत वस्त्र में आचार्यश्री व उनके शिष्य तो केशरिया वस्त्र में प्रेमस्वरूप स्वामीजी व उनके शिष्यों के मिलन से महावीर समवसरण में अद्भुत दृश्य उत्पन्न कर रहा था। भारत के धाराओं का आध्यात्मिक मिलन जन-जन को प्रफुल्लित बना रहा था। कार्यक्रम के शुभारम्भ से पूर्व आचार्यश्री का तथा स्वामीजी का प्रवास कक्ष में वार्तालाप का क्रम भी रहा, जिसमें धर्म, अध्यात्म, देश, संस्कृति आदि विभिन्न विषयों का पर चर्चा-वार्ता हुई।

महावीर समवसरण में आयोजित अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। सूरत के अणुव्रत कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत गीत को प्रस्तुति दी। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा, अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री राजेश सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री विनोद बांठिया ने प्रेमस्वरूप स्वामी व स्वामी त्यागवल्लभजी का परिचय प्रस्तुत किया।

हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के स्वामी त्यागवलल्लभजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज बहुत सौभाग्य कि बात है कि एक दो महापुरुषों के दर्शन का अवसर जनता को मिली है। यह हजारों वर्षों के पुण्यों से यह सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। आज सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के अवसर पर गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज द्वारा लिखित मंगल पत्र का वाचन भी किया।

उन्होंने आगे कहा कि मुझे जानकारी मिली कि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश दिए हैं। विकृति की दिशा में आगे बढ़ रहे समाज को ऐसे महापुरुषों की मंगल प्रेरणा से अध्यात्म और साधना की ओर बढ़ाया जा सकता है। इस दौरान स्वामीजी ने राजकोट में स्थित अपने परिसर में पधारने की मधुर अर्ज भी की।

अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते कहा कि शास्त्रों की कल्याणी वाणियां जीवन में आ जाएं तो जीवन का कल्याण हो सकता है। शास्त्रों में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। दुनिया में दूसरों के लिए तथा स्वयं के लिए भी मंगलकामना करता है। मंगल के लिए शुभ मुहूर्त आदि देखने का प्रयास होता है, पदार्थों का प्रयोग भी होता है, किन्तु ये सारे छोटे मंगल हैं, सबसे बड़ा मंगल धर्म होता है। प्रश्न हो सकता है कि जैन धर्म, सनातन, स्वामीनारायण, सिक्ख आदि धर्म मंगल होता है। यहां बताया गया कि अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल होता है।

मानव जीवन में संप्रदाय का भी अपना महत्त्व है। संप्रदाय का साया मिलता है तो अनुकंपा प्राप्त हो सकती है। तेरापंथ के प्रथम गुरु आचार्यश्री भिक्षु स्वामी और इस प्रकार हमारे नवमे गुरु आचार्यश्री तुलसी हुए। उन्होंने कहा कि कोई जैन बने या न बने अपने धर्म में रहते हुए भी छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार कर अपने जीवन उन्नत बनाया जा सकता है।

अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह हर जगह स्वीकार किया जाता है। वेश-भूषा और परिवेश में कुछ अंतर अवश्य हो सकता है कि जहां अहिंसा, संयम, सच्चाई की बात होती है, वहां लगभग समानता होती है। मर्यादाएं, व्यवस्थाएं परिवेश अलग-अलग हो सकते हैं। संप्रदाय तो हमने स्वीकार कर लिया, लेकिन जीवन में धर्म नहीं आया तो फिर क्या अर्थ।

अहिंसा का पालन, इन्द्रियों का संयम, तपस्या आदि का लाभ सभी को प्राप्त होता है। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का प्रारम्भ हुआ है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया और आज कितने अजैन लोग भी उससे जुड़े हुए हैं। अणुव्रत को बाजार, चौराहों, विद्यालयों और जेल में बंद कैदियों के बीच भी ले जाया जाए, ताकि उनका जीवन भी अच्छा बन सके। ये छोटे-छोटे नियम जैसे मैं नशा नहीं करूंगा, मैं निरपराध की हत्या नहीं करूंगा, ईमानदार रहूंगा, पर्यावरण की रक्षा करूंगा आदि-आदि नियम आदमी के जीवन में आते हैं तो जीवन अच्छा बन सकता है।

उद्बोधन सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस है तो आज दो संप्रदायों का मिलन हो रहा है। आज आप सभी से मिलना हुआ, बहुत अच्छा हुआ। हमारी आपके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामनाएं हैं।

चतुर्दशी के संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन किया। तदुपरान्त समस्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ।

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