विश्व में प्रथम बार गर्भ संस्कार एवं मेटरनिटी होम का हुआ नीव पूजन
मां ब्रह्मांड के चक्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। आगरा में एक अनूठी सेवा स्थापित होने जा रही है। उद्देश्य है धर्म शास्त्रों में वर्णित विज्ञान सम्मत क्रियाओं , आचार -विचार व आहार- विहार के अनुसरण से मां के गर्भ से ही विलक्षण शौर्य , तीव्र मेघा और अदभुत संपन्न शिशुओं का जन्म हो।साथ ही अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त केन्द्र पर सकारात्मक वातावरण में चेरीटेबल सेवा दरों पर डिलीवरी की समुचित व्यवस्था हो। इसके लिए आगरा के प्रताप नगर, जयपुर हाउस में श्री चन्द्रभान साबुन वाले सेवा ट्रस्ट के सहयोग से 220 वर्ग गज का भवन भी खरीदा जा चुका है।
इस भवन का नींव पूजन बुधवार को वेदमंत्रों के साथ किया गया। नींव पूजन, अपना घऱ,भरतपुर के संचालक डा.बीएम भारद्वाज व समाजसेवी मधु बघेल ने किया। ट्रस्ट के प्रेरणास्रोत अशोक गोयल ने बताया कि इस प्रकल्प में श्री अरविंद सोसायटी पुंडूचेरी, श्री अरहम गर्भ संस्कार, वेद शास्त्र एवं मंत्र विशेषज्ञ संपदानंद का मार्गदर्शन मिलेगा।
डा सुनीता अग्रवाल वा श्रीमती मीता जैन ने इस सेवा प्रकल्प की सार्थकता पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हम सकारात्मक माहौल में शिशुओं क जन्म कराएंगे तो देश का भविष्य उज्ज्वल होगा। इसी का प्रयास किया जा रहा है। पुष्पा अग्रवाल, कांता माहेश्वरी, अशोक अग्रवाल, इंजीनियर सुधांशु जैन ने इस संस्कार केंद्र की योजना पर प्रकाश डाला। भिक्की मल, मोहनलाल, घनश्यामदास, महावीर मंगल, किशन कुमार अग्रवाल, रामेश्वर दयाल आदि मौजूद रहे।
इस भवन के भूमि पूजन के अवसर पर उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल भाजपा की उपाध्यक्ष श्री मती बेबी रानी मौर्या जी बतौर मुख्य अतिथि कार्यक्रम में शामिल हुई थी। इस सेवा प्रकल्प की सराहना करते हुये उन्होंने कहा कि गर्भ संस्कार के असर से ही अभिमन्यु -प्रहलाद जैसे चरित्र अपनी मां के गर्भ से ही ज्ञान अर्जित करके आये थे। उसी प्रकार आज भी गर्भवती महिलाओं को इसके प्रति जागरूक करने से जन्मे शिशु संस्कारवान ही होंगें। उन्होंने इसके लिए जागरुकता सेमीनार आयोजित करने की जरूरत भी बताई।
हमारे शास्त्रों में गर्भ संस्कार कोई नई धारणा नहीं है। “विज्ञान के बिना धर्म अंधा है।” धर्म और विज्ञान के बीच संबंध निरंतर बहस का विषय रहा है। यह हमारे यहां दो सबसे मजबूत सामान्य ताकतें हैं जो मनुष्य को प्रभावित करती हैं और वे एक दूसरे के खिलाफ स्थापित प्रतीत होती हैं।
पुराने जमाने में मां अपने बच्चे की देखभाल करती थी, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि अब कई माएं बेफिक्र हो गई हैं। क्या इसे प्रगति कहा जा सकता है? यदि हाँ, तो वर्षों बाद जब उनके बच्चे उन्हें वृद्धाश्रम में अकेला छोड़ देते हैं तो वे दुखी क्यों होते हैं? आखिरकार, उन्होंने ही तो इस तरह के व्यवहार के बीज बोए हैं।
विज्ञान कहता है कि मस्तिष्क का विकास जीवन भर चलता रहता है लेकिन मस्तिष्क का भावनात्मक पक्ष बचपन में विकसित होता है लेकिन युवावस्था में भावनाओं को सर्वोत्तम रूप से ग्रहण किया जाता है। गर्भ संस्कार एक वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तथ्य है जो अजन्मे बच्चे को सिखाने, शिक्षित करने और संबंध बनाने का एक अद्भुत तरीका है।
बच्चे के मां के गर्भ में होने से ही संस्कार की अवधारणा करना महत्वपूर्ण है। यह प्रलेखित किया गया है कि गर्भावस्था के दौरान प्रार्थना, अच्छे विचार, सकारात्मक भावनाओं और भ्रूण के साथ बातचीत के रूप में मां की गतिविधि को व्यक्त करने वाली भावनाओं को न केवल अजन्मे बच्चे द्वारा पहचाना जाता है, बल्कि इसका उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
अजन्मे बच्चे के स्वागत के लिए ‘माता-पिता’ को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार रहना चाहिए। बच्चे के जन्म के बाद उसके विकास और वृद्धि के लिए माता-पिता बहुत सारा पैसा, समय और ऊर्जा खर्च करते हैं। लेकिन यह 9 महीने की महत्वपूर्ण अवधि है जब अपेक्षित बच्चे की बेहतरी के लिए अधिकतम प्रयास किए जाने हैं ।