शांति की खोज में सात समंदर पार कर भारत पहुंचे विदेशी नागरिक
अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर में विश्व के पांच देशों से पहुंचे प्रतिभागी
सूरत (गुजरात) । आज की भागदौड़ और तनाव भरी दुनिया में, जहां मानसिक अशांति ने लोगों को अवसाद और चिंता से घेर लिया है, वहीं भारत की प्राचीन ध्यान विधि प्रेक्षाध्यान उम्मीद की एक किरण लेकर आई है। सूरत के संयम विहार में प्रेक्षा कल्याण वर्ष के अवसर पर युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर का आयोजित है, जिसमें रूस, यूक्रेन, जापान, वियतनाम और बेलारूस जैसे देशों के 45 से अधिक विदेशी नागरिक भाग ले रहे हैं। ये शिविर न केवल योग और ध्यान की गहराइयों से इन संभागियों को परिचय करवा रहा है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने का अवसर भी प्रदान कर रहा है।
युद्धग्रस्त देशों के नागरिकों का शांति की तलाश में भारत आगमन
इस शिविर में शामिल रूस और यूक्रेन के नागरिक अपने देशों में जारी संघर्ष और तनाव से राहत पाने के लिए यहां आंतरिक शांति की खोज कर रहे हैं। युद्ध की विभीषिका के बीच यह लोग यहाँ साथ बैठकर ध्यान और योग का अभ्यास कर रहे हैं, जो मानवता और शांति का एक अनोखा संदेश फैलाता है। कई देशों के प्रतिभागी तो ऐसे है जो वर्षों से प्रेक्षाध्यान का अभ्यास कर रहे है और प्रतिवर्ष आचार्यश्री के सान्निध्य में पहुंचते है।
साधना-प्रधान दिनचर्या – मोबाइल और सोशल मीडिया से दूरी
प्रतिभागियों का पूरा दिन साधना और प्रेक्षा ध्यान से परिपूर्ण होता है। दिन की शुरुआत सुबह ब्रम्ह मुहूर्त में 4:30 बजे होती है, जिसमें ध्यान, प्राणायाम, और योगाभ्यास के सत्र शामिल होते हैं। सत्रों में परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी और साधु-साध्वीवृंद का मार्गदर्शन मिलता है। शिविर में प्रतिभागी जन मोबाइल और सोशल मीडिया से परहेज रखते हुए साधक के रूप में दिनचर्या का पालन करते है, जिससे वे ध्यान में गहराई तक जा सकें। साथ ही सात्विक भोजन उनकी शारीरिक और मानसिक शुद्धि का हिस्सा है।
आध्यात्मिक मार्गदर्शन और सांस्कृतिक समागम
प्रतिवर्ष होने वाले इस अंतराष्ट्रीय शिविर में आचार्य श्री महाश्रमण जी न केवल ध्यान की बारीकियों का प्रशिक्षण देते हैं, बल्कि प्रतिभागियों को जीवन में सकारात्मकता और संतुलन बनाए रखने के गुर भी सिखाते हैं।
कई देशों में 70 से अधिक प्रेक्षाध्यान सेंटर
प्रेक्षा इंटरनेशनल संस्था के श्री सिद्धार्थ बोथरा ने बताया कि प्रेक्षाध्यान की यह विधि प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी द्वारा जैन आगमों के सघन अनुसंधान के बाद सन् 1975 में प्रारंभ की गई थी। तब से लेकर आज तक, इस ध्यान पद्धति ने लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाए हैं। हॉलैंड, ह्यूस्टन, न्यूजर्सी, कीव, मॉस्को, यूक्रेन, ऑरलैंडो, जापान जैसे कई देशों में इसको 70 से अधिक सेंटर संचालित हो रहे है। अंतर्राष्ट्रीय शिविर के माध्यम से यह विधि अब विश्वभर में शांति और मानसिक संतुलन का संदेश फैला रही है।
“प्रेक्षा ध्यान से हुआ स्वास्थ्य में सुधार – यूक्रेनियन नागरिक एलेक्जैंडर ‘आनंद'”
शिविर में कई वर्षों से आने वाले यूक्रेनियन नागरिक एलेक्जैंडर ने कहा कि – मैं प्रेक्षाध्यान के कायोत्सर्ग, श्वास प्रेक्षा, अनुप्रेक्षा, अंतर्यात्रा जैसे कई प्रयोगों का प्रतिदिन अभ्यास करता हूं। सन् 2008 में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के दर्शन कर मैं प्रभावित हुआ तब से मैं इसका अभ्यास कर रहा हूं। उन्होंने मेरी आध्यात्मिक जर्नी के लिए आध्यात्मिक नाम भी प्रदान किया। भारत में आना हर बार अदभुत अनुभव होता है।
“मानसिक शांति मिलती है प्रेक्षाध्यान करके – रशियन नागरिक स्विआतोस्कोव”
रशिया से आए हुए स्विआतोस्कोव ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि प्रेक्षाध्यान से मुझे मानसिक शांति मिलती है। यहां शिविर में रहकर मुझे खुद को गहराई से जानने का मौका मिला। जैन धर्म का अहिंसा का सिद्धांत मुझे अच्छा लगा और इसको अपनी लाइफ में भी मैं अपनाता हूं। आचार्य श्री मुझे बहुत करूणावान लगते है। आगे भी ऐसे शिविर में मैं आना चाहूंगा।