धर्म- समाज

गांधीजी का जीवन सत्य अहिंसा -प्रेम की जीती जागती प्रयोगशाला थी

महात्मा गांधी एक साधारण मानव ही थे। किन्तु उस दुबली पतली सी काया में असाधारण आत्मबल,अदभुत मनोबल का एक पूँजीमुत प्रकाश छिपा था। जिसकी प्रकाश किरणों ने दासता दुर्बलता,अज्ञान और अशिक्षा के धनिमुत अंधकार को चीर कर सम्पूर्ण एशिया खण्ड में स्वतंत्रता, स्वाधीनता, अहिंसा और देश प्रेम का आलोक भर दिया।

उसने सिद्ध कर दिया कि हिंसा आतंक लूट और भय के आधार पर टिकी सत्ता,बंदूक तलवार और बमो के बल पर भोली प्रजा का शोषण करने वाली विदेशी ताकत अहिंसा और सत्य,देषदप्रेम और आत्मबलिदान की महाशक्ति के समक्ष टिक नही सकती।

गांधीजी का जीवन ससद्गुणों का सत संकल्पो का एक प्रेरणा स्त्रोत था उनके विचार उनका आचार उनके संस्कार और उनका व्यवहार सत्य अहिंसा , स्वाबलम्बन, सादगी और सदाचार का मूर्तिमन्त स्वरूप था। गांधी का चरित्र,गांधी का चिंतन सत्कर्मो की सुवास से महकता गुलदस्ता था।

उनके सम्पर्क में आने वाले सैकड़ो हजारो कार्यकर्ताओ का जीवन सद्गुणों व सदविचारों की सुवास से महक उठा। गांधीजी के अनुयायी थे विनोबा भावे,डॉ राजेंद्रप्रसाद,जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल आदि।

उनका जीवन तो राष्ट्र के लिए प्रकाश पुंज बना ही किन्तु केवल गांधीजी के निकट रहने वालों का,उनके क्षणिक सम्पर्क में आने वालों का का जीवन भी ऊनके संपर्क में आने वालो का जीवन उनके सदविचारों की सुगंध से महक उठने लगा था।

गुजरात के पोरबंदर में एक धार्मिक गुजराती परिवार में जिस तेजस्वी बालक का जन्म हुआ उसका नाम था मोहनदास। लोग मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से जानने लगे। एक बार उसने अपने घर में पिताजी की जेब से कुछ पैसे चुराए।फिर उसे विचार आया,चोरी करना बहुत बड़ा पाप है। मैन गलत काम किया।

वह रात भर उस दुष्कृत्य पर पश्चाताप करता रहा।भीतर ही भीतर उसकी आत्मा उसे धिक्कारती रही,आंसू बहाती रही। उसने संकल्प किया कि भविष्य में अब वह चोरी नही करेगा। मोहनदास गांधी ,गांधीजी,फिर महात्माजी, फिर राष्ट्रपिता और बापू के उच्चतर सम्मानित पद तक पहुंचे थे।

लंगोटी पहनी

गांधीजी केवल एक धोती पहनते थे। शुरू में उनकी पोशाक नही थी। वे अपनी परम्पतगत गुजराती पोशाक में ही देश के कोने कोने में भ्रमण करते थे।गांधी एक बार उड़ीसा की यात्रा कर रहे थे। वहां उन्होंने एक गरीब महिला को देखा, जिसका कपड़ा बहुत ही मेला और फटा हुआ था। महिला का आधा शरीर ही ढका हुआ था।

गांधी ने कहा बहन तुम अपने कपड़े धोती क्यो नही? इतना आलस्य क्यो करती हो कि कपड़ा इतना मेला रहे। उस स्त्री ने सल्लज दृष्टि से देखा और कहा इसमें आलस्य की बात नही है श्रीमन। मेरे पास इसके अलावा कोई दूसरा कपड़ा नही है। जिसे पहन कर मैं इसे धो सकू।

उस स्त्री का यह कथन सुनकर गांधीजी की आत्मा द्रवित हो उठी और वह मन ही मन कह उठे। हाय आज मेरे भारत माता के पास पहनने को चिथड़े तक नही है।उसी समय गांधीजी ने यह प्रतिज्ञा की कि जब तक देश स्वतंत्र नही हो जाता और गरीब को देह ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ा नही मिलता,तब तक मैं कपड़ा नही पहनूंगा। लाज ढकने के लिए लँगोटी रखना काफी होगा।

गांधीजी ने उसी समय परम्परागत पोशाक का त्याग कर दिया घटनाएं समुद्र में उठती तरंगे है। तरंगे उठती और मिट जाती है। किंतु कभी कभी तरंगे तूफान या ज्वारभाटा का काम करती है।

उनके जैसी दृढ़ संकल्पशीलता ,नियम,निष्ठा ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा और जनता जनार्दन के प्रति सेवा व सद्भावना अदभुत थी। सच पूछो तो उनकी हिमालय सी संकल्प दृढ़ता ने ही दो सौ वर्षो से राज करती विदेशी सत्ता की जड़े हिला दी।

गांधीजी का अधूरा स्वप्न रामराज्य

महात्मा गांधी और तत्कालीन गणमान्य रास्त्रनेताओ के विचारों के आशादीप उन्ही के साथ बुझ गये। स्वराज्य तो आया,मगर सुराज्य नही आया।गांधीजी के रामराज्य का सपना है राम! है राम! कहते कहते उनकी मृत्यु के साथ ही नष्ट हो गया।

हम उजाले की और निकले और अंधेरा ले आये,तो यह दोष किसका है? हमने भुला दिया उन राम को, जो भारतीय संस्कृति के महामानव थे।

जिन पर भारतीय संस्कृति को गर्व रहा है।राम आज भी एक जाज्वल्यमान प्रकाश स्तम्भ है, जिनकी प्रकाश किरणे सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति की वैदिक व श्रमण धरा को प्रकाशित कर रही है।

भारत भूमि के करोडो नर नारी श्रद्धा के साथ श्री राम का स्मरण करके स्वयं को धन्य समझ रहे है। वह शासनकाल भारतीयों के लिए स्वर्णकाल था।

( कांतिलाल मांडोत )

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