शिक्षा-रोजगार
दीपावली मुबारक
दीपावली मुबारक
वह रोज़ मनाता है
दीपावली
आसमान की दहलीज़ पर
रोज़ टाँक देता है
एक सूरज
जलते दिये – सा
मीठी-मीठी धूप से
भर देता है
पूरी कायनात को
हर ओर रौशनी का पर्व
खिलखिलाता है
हर रोज़
दिया बुझने बुझने को हो
तो पूरे आँगन में
सजा देता है
छोटे छोटे
रंगबिरंगे
करोड़ों-अरबों दिये
बहुरूपिये चाँद के संग
रातभर
झरता है अमृत
सारे आसमान से
सभी पर
कोई भी नहीं वंचित
न कोई अछूता
उसकी दीपावली
सबकी है
हर रोज़
पर कितने हैं
जो मना पाते हैं
दीपावली उसके साथ
और कितने हैं
जो करते हैं इंतज़ार
अपनी दीपावली का
जो होती है
सिर्फ़ अपनी
और सिर्फ़ अपनों की
जिसमें
कोई जगह नहीं
दूसरों के लिए
डॉ हूबनाथ
प्रोफेसर, मुंबई विश्वविद्यालय