भक्तों को हर हाल में निहाल करते है इसी कारण वे सभी देवों में है महादेव
हर हर महादेव शिव को प्रिय है रात्रि पूजा
हमारे यहाँ सभी देवताओं का भजन पूजन दिन में होता है,परन्तु भगवान शंकर की पूजा रात में ही क्यो की जाती है। यह जानने की उत्सुकता उनके बहुत से भक्तों के मन मे होती है। शिव को रात्रि क्यो प्रिय है? इस बारे में सर्वविदित है कि वे तमोगुण एवं संहारशक्ति के अधिष्ठाता है। इस कारण तमोमयी रात्रि से शंकर का प्रेम होना स्वाभाविक ही है।
रात्रि संहार काल का प्रतीक है। रात्रि का आगमन होतें ही प्रकाश का संहार होता है। जीवो की तमाम क्रियाएं समाप्त होने लगती है। निंद्रा चेतना का संहार होता है। सृष्टि की संपूर्ण चेतना मिटने लगती है। ऐसी दशा में प्राकृतिक दृष्टि से शिव को रात्रि प्रिय होना स्वाभाविक और सहज है। इसी कारण शिव की आराधना सदैव न केवल रात्रि में वरन प्रदोष यानी प्रारम्भ होने पर ही की जाती है। इस तरह शिवरात्रि का कृष्णपक्ष में ही होने का अभिप्राय स्पष्ट है।
शुक्लपक्ष में चंद्रमा पूर्णता की और होता है और कृष्णपक्ष में क्षिणता की और चंद्रमा जब बढ़ता है तब संसार के सब तेजवान पदार्थ बढ़ते है व चंद्रमा के क्षय होने पर उनमें क्षीणता आती है।इसका प्रभाव समस्त भूमण्डल पर पड़ता है।अमावस्या पर तामसी प्रवृत्तियां,भूत प्रेत आदि शक्तिया प्रबल व प्रबुद्ध होती है जो शिव के ही नियामक है।इस कारण शिवरात्रि का आगमन कृष्णपक्ष में ही होता है।
भगवान शंकर की पूजा में चंपा या अन्य पुष्प को ही चढ़ाया जाता है।नकी पूजा किसी भी प्रकार से की जाए,अवश्य फलदायी होती है।वे अपने भक्तों को हर हाल में निहाल करते है।इसी कारण वे सभी देवों में देव है।दैहिक,दैविक और भौतिक तापो से मुक्ति शिव का त्रिशूल ही दिला सकता है। भगवान शंकर के गले मे पड़ी सर्पो की माला उनके कुंडलिनी शक्ति का धोतक है।
शिव का वाहन नन्दी अध्यायात्मिक जगत का पशुत्व का प्रतीक माना गया है ।और पशुता पर विजय पाना शिवक्त है।अर्थात जिसने अपने भीतर की पशु प्रवृति पर विजय पा ली है समझिए वही शिव सदृश्य हो गया है।बैल चार पैरों से चलता है यह चार पैर मानव जीवन के चार पुरुषार्थ है।जिन्हें हम धर्म,अर्थ काम और मोक्ष के नाम से जानते है। समाधि मुद्रा में भगवान शिव वाघ वाघम्बर के आसन पर बैठे दिखते है जो कि ज्ञान का प्रतीक है।शिव के पंचावतार रूप में उनकी प्रतिमा में पांच मुखो के दर्शन होते है।अघोर यानी त्यागी होना और भगवान शिव उसी त्याग की साकार मूर्ति है।
वैज्ञानिक आधार सफेद सफेद रंग में सात रंग है या सात रंगों में सफेद रंग बना है।ज्योति से सूर्य और लिंग से केवल शिव की अभिप्रेत है।भारत के विविध तीर्थस्थलों में 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित है।यह प्राचीनकाल से स्थापित है।।इसमें सोमनाथ मल्लिकार्जुन ओंकारेश्वर केदारेश्वर वैधनाथ रामेश्वर धुसमेस्वर तयम्बकेश्वर नागेश्वर और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत की सुरक्षा करते है।
इसके अतिरिक्त विश्वनाथ मंदिर,काशी और कैलाश स्थित मंदिर शिव के प्रिय स्थान माने जाते है। भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पूर्व रामेश्वरम में शिव पूजा की थी।स्वयं रावण शिव का भक्त था।प्राचीनकाल में शिव की पूजा देश के कोने कोने में प्रचलीत है।दक्षिण में पंचतत्व के सम्मिलित रूपो को पंचलिंगो का प्रतीक मानकर पूजा की जाती है।शिव पूजा देवताओं में भी प्रचलित है।असुर भी भक्तिभाव पूर्वक भगवान की पूजा करते है।
विभिन्न शिवलिंग
पुराणों में शिवलिंग की विभिन्न की विभिन्नता बतलाई गई है।यथा ब्राह्मणों, वैश्यों के लिए स्वर्ण और शेष के लिए शिला से बने लिंग की पूजा करनी चाहिए।शेवागमो में पदम पुष्पराज विद्रुम मोती चांदी सोना हीरा पारद शिव नाभि और पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजने के लिए कहा गया है।इन लिंगो के प्रसाद भी ग्रहण किये जा सकते है। शास्त्रों में बाणलिंग की महिमा बताई है। जिस स्वरूप को तराजू में पांच बार तोलने पर बराबर न हो वह बाण लिंग सबमे उत्तम माना गया है।
शास्त्रों में वर्णित है कि पत्थर के बने लिंग को तालाब में छोड़ दिया जाता है और वह पुनः मिल जाए तो वह बाण लीग स्वरूप हो जाता है।कलयुग में पार्थिवेश्वर लिंग की पूजा का बड़ा महत्व है।इस लिंग की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। हर हर महादेव।
( कांतिलाल मांडोत )