धर्म- समाज

महातपस्वी महाश्रमण की मंगल सन्निधि में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का शुभारंभ

संयम विहार में प्रवाहित हुई धर्म, ध्यान व अध्यात्म की विशेष त्रिवेणी

सूरत (गुजरात) : अध्यात्म चेतना के जागरण के लिए, मन की ग्रंथियों को खोलने, आत्मा के दर्शन करने तथा मोक्ष मार्ग की दिशा में आगे बढ़ने के लिए विशेष आराधना, साधना, धर्म-ध्यान की विशेष धर्माराधना के महापर्व पर्वाधिराज पर्युषण का रविवार को डायमण्ड सिटि सूरत में प्रवासित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में भव्य एवं आध्यात्मिक रूप में प्रारम्भ हुआ। इस महापर्व को महातपस्वी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में मनाने के लिए सूरत ही नहीं, देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु संयम विहार में पहुंच चुके हैं। श्रद्धालुओं की विशेष उपस्थिति से पूरा चतुर्मास स्थल जनाकीर्ण नजर आ रहा था।

महापर्व की आराधना के अंतर्गत धर्म, ध्यान व अध्यात्म की विशेष त्रिवेणी में गोते लगाने वाले श्रद्धालुओं के लिए चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति ने भी सुन्दर व सुव्यवस्थित व्यवस्था कर रखी है। विशाल प्रवचन पण्डाल व उसके आसपास के स्थान के साथ आचार्यश्री के प्रवास स्थल के पास बने महाश्रमण समवसरण में जनता को बैठने, एलइडी स्क्रीन, ध्वनि यंत्रों के विस्तार की सुदृढ़ व्यवस्था के कारण उपस्थित जनता लाभान्वित बनती रही।

रविवार को सूर्योदय से पूर्व ही अर्हत् स्तुति, अर्हत् वन्दना व उपासना आदि के बाद प्रातः सात बजे से प्रेक्षाध्यान साधना का कार्यक्रम समायोजित हुआ। आठ तात्विक विश्लेषण तत्पश्चात आगम स्वाध्याय से जनता जुड़ी। महावीर समवसरण में भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी का जैसे ही मंगल पदार्पण हुआ तो पूरा वातावरण जयघोष से गुंजायमान हो उठा और इसके साथ ही प्रारम्भ हो गया पर्युषण महापर्व के प्रथम दिवस का मुख्य कार्यक्रम।

इस महापर्व का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में समायोजित हुआ। पर्युषण महापर्व के महत्त्व को मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने विवेचित किया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने इस संदर्भ में गीत का संगान किया। साध्वी रश्मिप्रभाजी ने खाद्य संयम दिवस के संदर्भ में गीत का संगान किया। तदुपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने जनता को खाद्य संयम दिवस के पर विशेष प्रेरणा प्रदान की।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवान महावीर समवसरण में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि वर्तमान जैन शासन के महानायक भगवान महावीर प्रभु हैं। जैन दर्शन आत्मवाद में विश्वास रखने वाला है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो जैन दर्शन में आत्मवाद का सिद्धांत होता है। इसे आस्तिकवाद भी कहा जाता है। इसमें आत्मा और शरीर को भिन्न-भिन्न माना गया है।

जिस प्रकार स्वर्ण मिट्टी से मिले-जुले होने पर भी मिट्टी और सोने का अलग-अलग अस्तित्व होता है, उसी प्रकार आत्मा और शरीर का अपना-अपना अस्तित्व होता है। यह जैन दर्शन का आत्मवाद है। आत्मा में संकुचन और फैलाव की स्वाभाविक स्थिति है। आत्मा जब तक मोक्ष को नहीं प्राप्त होती, तब तक आत्मा का जन्म और मरण का चक्र चलता रहता है। पुनर्जन्म का सिद्धांत में जैन दर्शन में मान्य है, इसके साथ कर्मवाद भी जुड़ा हुआ होता है।

अब हम सभी पर्युषण की आराधना में संलग्न हुए हैं। एक वर्ष में आठ दिनों का आध्यात्मिक महापर्व आता है। विशेष साधना का यह सुन्दर उपक्रम है। यह अध्यात्म और धर्म की दृष्टि से सुन्दर व्यवस्था है। भगवती संवत्सरी से पूर्व के सात दिनों में विशेष धर्म-ध्यान का विशेष दिन है। इस पर्युषण के दौरान हम भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के विषय में भी बताया करते हैं। वर्तमान अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर हुए। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर हुए। भगवान महावीर के पूर्व भवों की चर्चा करते हैं। इसमें भगवान महावीर की यात्रा ने कैसे यात्रा की, इस संदर्भ में उनके कुछ भवों के विषय में बताने का प्रयास किया जा सकता है।

खाद्य संयम दिवस पर विशेष प्रेरणा

आज पर्युषण महापर्व के विषय व्यवस्था के अंतर्गत प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस है। प्रथम दिवस को खाद्य संयम दिवस रखने का इंगित परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी से प्राप्त हुआ था। साधना की दृष्टि से भोजन का संयम महत्त्वपूर्ण होता है। साधना से जुड़े हुए लोगों को दो दृष्टियों से भोजन का संयम करना चाहिए। पहले स्वास्थ्य की दृष्टि से और दूसरा साधना की दृष्टि खाद्य का संयम किया जा सकता है। साधु-साध्वियां ही नहीं आम आदमी भी स्वास्थ्य की दृष्टि से भोजन का संयम करना बहुत अच्छा होता है। शरीर स्वस्थ रहता है तो साधना और सेवा का कार्य भी अच्छा होता है। साधना के हिसाब से भी विगय वर्जन की व्यवस्था अच्छी होती है। इस प्रकार आदमी को यथासंभव खाद्य संयम रखने का प्रयास करना चाहिए।

संवत्सरी एकता हेतु परंपरा का त्याग

गुरुदेव ने आगे प्रसंगवश कहा की आज चतुर्दशी भी है। शायद यह पहला मौका है, जब पर्युषण महापर्व का प्रारम्भ चतुर्दशी तिथि को हो रहा है। जैन शासन की संवत्सरी की एकता की दृष्टि से हमने परंपरा को छोड़कर पर्युषण महापर्व के प्रारम्भ करने का निर्णय किया है। चतुर्दशी के दिन हाजरी का क्रम रहता है। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन करते हुए उपस्थित चारित्रात्माओं को अनेक प्रेरणाएं प्रदान की।

ज्ञातव्य है की सन् 2017 में आचार्य श्री महाश्रमण जी ने संवत्सरी एकता की पहल करते हुए घोषणा की थी। जिसके तहत 2018 से स्थानकवासी श्रमणसंघ एवं तेरापंथ धर्मसंघ एक ही निर्धारित दिवस पर संवत्सरी मनाते आ रहे है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button