
प्रेरणादायक : सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले देवेंद्र पाटिल NDA परीक्षा उत्तीर्ण, लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में भारतीय सेना में देंगे सेवा
देवेंद्र के पिता कटलरी लॉरी चलाकर परिवार का गुजारा चलाते हैं
‘परिश्रम ही वह कुंजी है जो भाग्य के द्वार खोलती है’ चाणक्य की उक्ति को सूरत के तीन युवकों ने 100% सही साबित किया है। सूरत के नवागाम इलाके में रहने वाले 18 साल के देवेंद्र संजय पाटिल और उनके दोस्त 21 साल के समाधान पाटिल और 23 साल के अजय यादव ने कम उम्र में ही बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है। सूरत के एकमात्र देवेंद्र पाटिल का चयन कड़ी मेहनत के बाद एनडीए-राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में हुआ है। देवेंद्र के पिता कटलरी लॉरी चलाकर परिवार का गुजारा चलाते हैं। देवेंद्र के परीक्षा की तैयारी करने वाले दोस्त समाधान और अजय को भी क्रमश: स्टाफ सिलेक्शन कमिशन (एसएससी) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ)-ओडिशा में स्थान मिला है।
तीनों दोस्त, जो विभिन्न डिफेन्स परीक्षाओं की एक साथ तैयारी कर रहे थे, एक स्थानीय छात्र द्वारा संचालित ‘सड़क से सरहद तक’ समूह में शामिल हो गए और पढ़ने-लिखने और शारीरिक प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिससे परीक्षा को पास करने में बहुत मदद मिली। युवाओं के प्रेरणास्रोत बने देवेंद्र पाटिल का बचपन से ही रक्षा क्षेत्र में जाकर देश सेवा का सपना था। बॉलीवुड की ‘सोल्जर’ और ‘शेरशाह’ जैसी देशभक्तिपूर्ण फिल्मों ने उन्हें अपने निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने की प्रेरणा दी।
मूल रूप से महाराष्ट्र के विंचूर गांव के रहने वाले देवेंद्र ने सूरत के नवगाम इलाके में महानगरपालिका के नगर प्राथमिक शिक्षा समिति के सरकारी मराठी स्कूल से पहली से 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की है। स्कूल से ही एनडीए परीक्षा के लिए सभी आवश्यक मार्गदर्शन मिला और पिछले 2 वर्षों से तैयारी शुरू कर दी।
एनडीए की तैयारी और इसमें आने वाली कठिनाइयों के बारे में बात करते हुए देवेंद्र कहते हैं कि चूंकि इस परीक्षा के लिए गणित और अंग्रेजी विषय की आवश्यकता होती है, इसलिए उन्होंने यूट्यूब की मदद से सेल्फ स्टडी के जरिये गणित में मेहनत की और अंग्रेजी के लिए ऑनलाइन क्लासेस का सहारा लेकर पढ़ने और लिखने की प्रेक्टिस की।अंग्रेजी मौखिक अभ्यास के लिए मैं प्रतिदिन शीशे के सामने बैठकर स्वयं से संवाद करता था।
देवेंद्र ने इस परीक्षा में सफल होने के लिए फिटनेस को बहुत जरूरी बताते हुए आगे कहा कि सड़क से सरहद तक ग्रुप में किया गया सामूहिक अभ्यास उनके साथ-साथ अन्य लोगों के लिए भी बहुत उपयोगी रहा। उन्होंने कहा कि समान और मैत्रीपूर्ण माहौल होने से लक्ष्य हासिल करना आसान हो जाता है।
देवेंद्र कहते हैं कि एनडीए जैसी कठिन परीक्षा की तैयारी में शारीरिक क्षमता के साथ मानसिक संतुलन बहुत जरूरी है, इसलिए उन्होंने रोज सुबह 15 मिनट प्राणायाम और 1.30 घंटे दौड़ने का अभ्यास किया। रोजाना 16 से 18 घंटे पढ़ाई की। परीक्षा की तैयारी की शुरुआत से ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल बंद कर दिया और मोबाइल फोन का भी सोच-समझकर इस्तेमाल किया। इससे पढ़ने के लिए अतिरिक्त समय मिला और एकाग्रता बढ़ी।
आर्थिक स्थिति सामान्य होने के बावजूद परिवार के सहयोग और प्रोत्साहन ने नई ऊर्जा दी। परिवार की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने और मेरी पढ़ाई पर असर न पड़े इसके लिए बड़े भाई विशाल ने पढ़ाई अधूरी छोड़ दी और निजी क्षेत्र में काम करने लगे। पिता नियमितता और अनुशासन के सख्त पक्षधर थे।
देवेंद्र के पिता संजयभाई पाटिल, जो परिवार का गुजरान करने के लिए कटलरी लॉरी चलाते हैं, अपने बेटे की सफलता पर बेहद गर्व महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक माता-पिता को अपने बच्चों को पुत्र के पुरुषार्थ की मिसाल कायम कर देश की प्रगति में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। देवेंद्र, समाधान और अजय, तीन दोस्त कहते हैं कि कोरोना काल में उपलब्ध अधिकतम समय के कारण वे पढ़ने के लिए अच्छा समय आवंटित कर पाए, जिससे परीक्षा में सफलता की संभावना बढ़ गई।