भगवान श्रीकृष्ण गुणपरक दृष्टिकोण लेकर चलने वाले सत्पुरुष थे
आज भाद्रपद महा की अष्टमी है। यह अष्टमी कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण के साथ जुड़ जाने से इस अष्टमी का मह्त्व सचमुच बढ़ गया है। इस अष्टमी को जन जन अष्टमी के रूप में जानता है। इस अष्टमी को ओर भी अनेक जन्म लिया है एवं ले रहे हैऔर लेते रहेंगे,पर इन सब को कौन याद करता है। भगवान श्री कृष्ण को इस अष्टमी को जन्म लेकर जन मानस के अंदर विशिष्ट श्रद्धा और सम्मान पूर्ण स्थान बना लिया है। यह स्थान उन्हीं को सम्मान देता है। जिनके जीवन में विशिष्ठ रहा हो।भगवान कृष्ण ने दिव्य,भव्य और प्रेरणास्पद कहानी का निर्माण किया है जो कि आज भी असंख्यजन उनके गुणों का महिमा करते हुए थकते नही है।श्री कृष्ण का जिन परिस्थितियों में जन्म हुआ ,वे परिस्थितिया इतनी विषम एवं विचित्र थी कि कुछ कहा नही जा सकता है। तीन खण्ड के स्वामी का जन्म और जन्म के समय थाली बजाने वाले की बात तो दूर,कोई ताली बजाने वाला भी नही था। मामा कंस के कारागृह में जन्म हुआ एवं उसी समय वहा से चुपचाप उन्हें गोकुल में ले जाया गया। गोप ग्वालों के बीच ग्रामीण वातावरण में उनका परिपालन हुआ। समय आया तो उन्हें द्वारका में राज्य करके वातावरण में एक ऐसी सौम्यता और स्फूर्ति का सूत्रपात किया कि परिव्याप्त अराजकता सम्पूर्ण रूप से समाप्त हो गई।
कंस और जरासंध आदि के अत्याचारों से संतप्त जन जन को मुक्ति दिलाने वाले भगवान श्री कृष्ण की जितनी भी महिमा गाई जाए,कम है। कालिया नाग का दमन,इंद्र के कुपित होने से मूसलाधार वर्षा से प्रलयकारी स्थिति का निर्माण होने पर कनिष्ठा उँगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सबकी रक्षा, रणभूमि में सुदर्शन चक्र चलाकर अन्याय अनीति के खिलाफ युद्ध,न्याय की स्थापना का प्रयास,पशुओ की रक्षा आदि कई ऐसे प्रसंग है,जिन्हें इतिहास कभी भुला नही सकता है।भगवान के उल्लेखनीय कार्यो में सबसे महत्वपूर्ण है,महाभारत युद्ध मे अपने भक्त सखा अर्जुन को दिया गया गीता उपदेश।श्री कृष्ण कथित गीता विश्व का युग ग्रंथ माना जाता है।
वासुदेव कृष्ण का दूसरा कार्य है,अति निर्धन सहपाठी मित्र सुदामा को अपने जैसा सम्पन्न बना देना। इसमें भी दान की विशेषता यह थी कि सुदामा ने याचक का दैन्य नही आने दिया,ज्योकि मित्र को दिया गया दान यदुनाथ का गुप्तदान था। श्री कृष्ण गुणपरक दृष्टिकोण लेकर चलते वाले सत्पुरुष थे। उनका दृष्टिकोण था कि हम अपनी दृष्टि को अच्छाइयों पर केंद्रित करें। किसी मे बुराई है तो हमे दुसरो की समीक्षा करने कीआवश्यकता नही है।
कृष्ण ने अपने जीवन मे धर्म दलालियो से स्वयं को जोड़े रखा
उन्होने स्पष्ट रूप से उद्गघोषणा करवा दी थी कि कोई भी व्यक्ति यदि प्रभु के चरणों मे दीक्षित होना चाहे तो उसके दीक्षा की सारी जिम्मेदारी हमारी होगी। वासुदेव श्री कृष्ण के मन मे पशुजगत के प्रति जो प्रेम था,वह अभूतपूर्व था।उन्होंने पशुओ की कभी उपेक्षा नही होने दी।आज हमारे देश मे पशुओ की,गोधन की जिस तरह दुर्दशा हो रही है,उसे देखकर ह्दय कम्पित हो उठता है। श्री कृष्ण के पावन प्रसंग पर हम यह संकल्प सामूहिक रुप से करने की आवश्यकता है कि हम गोधन का अनिवार्य रूप से सरंक्षण संवर्धन करेंगे। हिंसा के उन्मूलन के प्रयास किये जायें तो देश मे अहिंसात्मक मूल्यों की प्राण प्रतिष्ठा हो सकती है।
भगवान श्री कृष्ण की न्याय प्रियता
कृष्ण वासुदेव ने कभी अन्याय और अधर्म को कभी प्रभावी नही होने दिया।वे सदैव न्याय के प्रबल समर्थक रहे। अज्ञातवास पूरा करने के बाद जब पांडव कृष्ण से मिले तो स्वयं कृष्ण पांचों पांडवो के जीवन निर्वाह हेतु शांतिदूत के रूप में कौरवों के पास गए और उन्होंने सिर्फ पांच गांव को देने के लिए आग्रह किया।दुर्योधन ने कृष्ण की बात को सुनी अनसुनी करके कहा -कृष्ण पांच गांव की बात तो बहुत दूर की है मैं पांडवों को सुई की नोंक के बराबर जमीन भी बिना युद्ध के नही दूंगा। अनीति के सामने,जुल्म के सामने झुकना कायरता ही है। अर्जुन को न्याय नीति और धर्म की सुरक्षा के लिए युद्ध मे अपने आप को लगा दिया।
आज के युग मे श्री कृष्ण की अधिक आवश्यकता है। कहने को तो हमारा भारत वर्ष धर्म प्रधान देश रह गया है किंतु यहा अधर्म ही अधिक पुष्ट हो रहा है और यही एक कारण है कि आज जनजीवन अशान्त है। अशान्त जन जीवन को श्री कृष्ण के जीवन और संदेशों से जुड़ने के बाद निश्चित रूप से मिलकर रहेंगे।आपके मन की श्रद्धा है। कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
(कांतिलाल मांडोत)