धर्म- समाज

सूर्य के उत्तरायण का पर्व मकर सक्रांति

भारतीय संस्कृति में मकर सक्रांति का विशेष महत्व है।आज के दिन हर शहर और हर गांव में उत्सव का माहौल है।गोदान के हर जगह स्टॉल लगाकर गाय के चारे के लिए दान का शुभ अभियान चलाया जाता है। आज के दिन लाखो लोग गंगा स्नान और संगम जैसे स्थानों पर स्नान कर पवित्रता धारण करते है। आज दान का विशेष महत्व है।आज के दिन सूर्य उत्तरायण होता है। इसलिए मकर सक्रांति के दिन सूर्य उपासना की जाती है।भारतीय परम्पराओ और उत्सवों के पीछे हमेशा एक वैज्ञानिकता देखी गयी है। आज के दिन देश मे दान-पुण्य,उत्सव आदि के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है।इस दिन से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है। शास्त्रों में आज के दान की विशेष महता बताई गई है। आज नवग्रहों की पूजा और पात्रता के आधार पर दान दिया जाता है। जिससे आने वाले बारह महीने किसी परेशानी के बिना व्यतीत हो सके। आज लोग तिल के लड्डू बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित करते है। यह शास्त्र संमत रीति रिवाज है।राजस्थान में गाय और भैसों के साथ क्रीड़ा कर आनन्द उठाने का बड़ा दिन मकर सक्रांति है। आज का दिन दक्षिण गोलार्द्ध में होता है। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है।इसलिए सूर्य दूर होते जाने पर यहा लगातार ठंड का प्रकोप बढ़ता जाता है।

मकर सक्रांति के दिन फिर से सूर्य उतरी गोलार्द्ध की और रुख करता है। जिसका सीधा सा अर्थ होता है तापमान में धीरे धीरे बढ़ोतरी होना। ठंड से कांप रहें उतर भारत या देश के अन्य राज्य के लिए यह निश्चय ही खुशखबरी होती है एसलिए ही यह दिन उत्सव मनाने के लायक बन जाता है।वैसे तो भारतीय कैलेंडर की तिथियां चन्द्रमा की गति के आधारित होती है। लेकिन सूर्य आधारित इस पर्व को सूर्य की ही गति से ही निर्धारित किया जाता है। इसलिए मकर सक्रांति अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 14 जनवरी को ही पड़ती है। भारतीय संस्कृति की एक खासियत यह भी है कि यहाँ मानव जीवन के सुचारू संचालन में वातावरण का जो भी तत्व प्रत्यक्ष सहायक होता है उसे पूजनीय स्थापित कर दिया जाता है। मकर सक्रांति के बाद खरमास समाप्त हो जाता है और मांगलिक कार्यो की शुरुआत होने लग जाती है।कम्बल का दान कर लोग राहू दोष से मुक्ति पाते है। मकर सक्रांति के दिन पेड़ की कटाई वर्जित मानी गई है।आज कटुवचनो का त्याग कर किसी का अपमान नही करना चाहिए। नशे से परहेज करने की जरूरत है। शराब तो वैसे भी वर्जनीय मानी गई।जो बीड़ी,सिगरेट और तम्बाकू का सेवन करते है। उनको आज से छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।

सूर्य तो केवल भारत के लिए ही नही पूरी सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए सूर्य के भारत भूमि के पास आने पर उत्सव मनाकर उसके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना भी इस पर्व के मनाए जाने का एक कारण है। सूर्य न केवल देव के लिए पूजे जाते है,बल्कि भारतीय संस्कृति में वह ज्ञान और तेज के भी प्रतीक माने जाते है।गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने उद्देश्य में सूर्य को अपनी सत्ता का प्रथम अभिव्यक्त रूप बताया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते है।शनी मकर राशि का स्वामी है। दरअस्ल, पैराणिक कथा के माध्यम से भौगोलिक सत्य बताने का प्रयास किया जाता है।इस तरह भी मकर सक्रांति का दिन महत्वपूर्ण बन जाता है।भारतीय अध्यात्म में दक्षिण दिशा को नकारात्मक का प्रतीक मानते है। सूर्य के दक्षिणायण होने के बाद माना जाता है कि देवताओं के सोने का समय होता है।उनकी अनुपस्थिति में स्वाभाविक ही है कि कोई भी उत्सव आदि का समय नही माना जाता,लेकिन सूर्य का उतरायण आते ही सभी देवताओ को जगाया जाता है। क्योंकि शुभ समय आरंभ हो चुका होता है।

सक्रांति को पर्व के रूप में मनाकर इस बात की भी खुशी व्यक्त की जाती है,यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने सभी असुरों का नाश कर उनके सिर को काटकर मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इस तरह से पृथ्वी से नकारात्मका का सम्पूर्ण नाश कर सकारात्मक को स्थापित किया गया था। मकर सक्रांति के दिन महाराज भगीरथ ने सगर के पुत्रों को तर्पण किया था। बंगाल के गंगासागर का मेला और इस दिन गंगा सागर स्नान भी इसी संदर्भ में है।महाभारत युद्ध मे तिरो से घायल हुए भीष्म पितामह ने अपनी देह त्याग करने के लिए इसी दिन का चयन किया था। इसलिए भी इस पर्व की महत्ता बढ़ जाती है।केवल उतर भारत मे ही नही इसदिन संपूर्ण भारत मे सूर्य के उतरायण होने का पर्व मनाया जाता है। बस परम्परा हर राज्य की अलग अलग होती है। दक्षिण में पोंगल और पंजाब में माघी या लोहड़ी के तौर पर इस अवसर पर उत्सव मनाया जाता है। कुछ भागो में ठीक सक्रांति वाले दिन ही पर्व होता है। कुछ जगह यह पर्व तीन चार जगह चलता है।लेकिन हर जगह उपासना का दिन सूर्य देवता ही होते है।और सुरु की शक्तियों के प्रति कृतज्ञता होती है।

( कान्तिलाल मांडोत )

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button