व्यापारी वर्ग ई कॉमर्स को अपनाने के लिए उत्सुक लेकिन विदेशी ई कॉमर्स कंपनियों द्वारा खडी बाधाएं बड़ी रूकावट: कैट
भारत के ई-कॉमर्स बाजार में हो रही तेजी से वृद्धि के मद्देनजर देश भर के व्यापारियों ने ई कॉमर्स को व्यापार के एक अतिरिक्त विकल्प के रूप में अपनाने की इच्छा जाहिर की है किन्तु अधिकांश व्यापारियों को लगता है कि ई-कॉमर्स में माल बेचने के लिए विदेशी ई कॉमर्स कंपनियों की लगातार जारी कुप्रथाओं और नियमों के घोर उल्लंघन तथा ई कॉमर्स पर व्यापार करने के लिए अनिवार्य रूप से जीएसटी पंजीकरण का होना एक बड़ी रूकावट है।
यह तथ्य कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) की रिसर्च शाखा कैट रिसर्च एंड ट्रेड डेवलपमेंट सोसाइटी द्वारा हाल ही में देश के विभिन्न राज्यों के 40 शहरों जिनमें टियर 2 और टियर 3 शहर भी शामिल हैं। लगभग 5 हजार व्यापारियों के बीच किये गए एक ऑनलाइन सर्वे में सामने आया है। ज्ञातव्य है की वर्ष 2021 में भारत में 55 बिलियन डॉलर का ई कॉमर्स व्यापार हुआ जो वर्ष 2026 तक 120 बिलियन डॉलर तथा वर्ष 2030 तक 350 बिलियन डॉलर होने की संभावना है।
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि सर्वेक्षण के अनुसार 78 % व्यापारियों ने कहा कि भारत में व्यापारियों के लिए अपने वर्तमान व्यापार के अलावा ई-कॉमर्स भी व्यापार का एक अतिरिक्त तरीका बनाना जरूरी होगा। जबकि 80 % व्यापारियों का कहना है की ई कॉमर्स पर व्यापार करने के लिए जीएसटी पंजीकरण की अनिवार्यता छोटे व्यापारियों के लिए एक बड़ी रूकावट है।
वहीँ 92% छोटे व्यापारियों ने कहा कि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां ई कॉमर्स के जरिये देश के रिटेल व्यापार पर नियमों एवं कानूनों की खुली धज्जियाँ उड़ाते हुए और अपनी व्यापारिक कुप्रथाओं के बल पर ग्राहकों को भरमा रही हैं और व्यापारियों के व्यापार को बड़ी क्षति पहुंचा कर एकतरफा प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाये हुए हैं।
सर्वे में यह भी सामने आया की 92% व्यापारियों ने कहा मत है कि देश में ई कॉमर्स व्यापार को निष्पक्ष एवं पारदर्शी बनाने के लिए ई-कॉमर्स नीति एवं ई कॉमर्स से संबंधित उपभोक्ता क़ानून को संशोधित कर तुरंत लागू करना बेहद जरूरी है जबकि 94 % व्यापारियों ने कहा की भारत में ई-कॉमर्स व्यवसाय को जिम्मेदार बनाने के लिए एक मजबूत मॉनिटरिंग अथॉरिटी का गठन बेहद जरूरी है वहीँ 72% व्यापारियों ने मत व्यक्त किया की खुदरा क्षेत्र में वर्तमान एफडीआई नीति में आवश्यक संशोधन होने तुरंत आवश्यक है जिससे विदेशी कंपनियों के आतंक एवं मनमानी पर प्रभावी रोक लग सके।
भरतिया और खंडेलवाल ने कहा की यह बेहद अफ़सोस की बात है की जहाँ रिटेल ट्रेड पर अनेक प्रकार के क़ानून लागू हैं वहीँ ई-कॉमर्स व्यापार सभी प्रकार के प्रतिबंधों से पूरी तरह मुक्त है जिससे किसी भी कानून की परवाह किए बिना कोई भी ई कॉमर्स कम्पनी कुछ भी व्यापार करने के लिए स्वतंत्र है।
उन्होंने कहा की एक बेहद सोची समझी साजिश के तहत विदेश धन प्राप्त कंपनियां न केवल सामान बल्कि सेवाओं के क्षेत्र जिनमें ट्रेवल, टूरिज्म, पैक्ड खाद्य सामान, किराना, मोबाइल, कंप्यूटर, गिफ्ट आइटम्स, रेडीमेड गारमेंट्स, कैब सर्विस, लॉजिस्टिक्स आदि सेक्टर में अपना वर्चस्व बनाकर व्यापारियों के व्यापार पर कब्ज़ा कर उसको नष्ट करने पर तुली हुईं है।
वास्तव में उनका कोई व्यापार का मॉडल नहीं है बल्कि पूर्ण रूप से वैल्यूएशन मॉडल है जो देश की अर्थव्यवस्था और व्यापार के लिए बेहद घातक है। दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा की बेहद आश्चर्य की बात है की प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपये का नुक्सान देने के बाद भी विदेश धन से पोषित कंपनियां अपना व्यापार कर रही हैं। व्यापार का यह कौन सा मॉडल है, यह समझना बहुत जरूरी है।
भरतिया एवं श्री खंडेलवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश में अंतिम व्यक्ति द्वारा भी डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपनाने और स्वीकार करने पर बहुत जोर दिया है, लेकिन ई-कॉमर्स पर सामान बेचने के लिए अनिवार्य जीएसटी पंजीकरण की शर्त छोटे व्यापारियों के लिए ई कॉमर्स व्यापार करने के लिए एक बहुत बड़ी बाधा है। छोटे व्यापारियों के लिए अपने व्यवसाय को व्यापक बनाने में ई-कॉमर्स का लाभ उठाने की सुविधा के लिए इस शर्त को समाप्त करने की आवश्यकता है।
इस संबंध में कैट शीघ्र ही केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल, जो स्वयं छोटे व्यापारियों के बड़े पैरोकार हैं और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीथारमन से मिलेगा और दोनों विषयों को समाधान शीघ्र निकालने का आग्रह करेगा।