उपकारी के उपकार को कभी भी भूलना नहीं चाहिए : आचार्य जिनमणिप्रभसूरी
सूरत। भगवान महावीर की अंतिम देशना जो लगातार 16 प्रहर तक चलने वाली अंतिम अमृत वाणी थी,इस अमृत वाणी से स्नान कर लोगो ने अपने कर्मो को नष्ट किया था।
स्थानीय कुशल कांति खरतरगच्छ जैन भवन के प्रवचन हाल में जनमेदनी को सम्बोधित करते हुए खरतरगच्छाधिपति जिनमणिप्रभसूरीश्वर जी ने कहा की हमें हमारे जीवन में हमारे ऊपर उपकार करने वालों को कभी भी नही भूलना चाहिए। उसने हमारे जीवन में संकट की घड़ी थी उस समय उसने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया था में उसको कैसे भूल जावु।
भगवान की अंतिम देशना में जो राजा महाराज, साधु संत जो उपस्थित थे वो कितने भाग्यशाली होंगे जिन्होंने अपने कर्मो को काटने हेतु उस समय में अंतिम देशना सुनी होगी।
अध्ययन का पहला सूत्र विनय है जिसका मूल आधार ही विनय है, सहज विनय, उपकारी के प्रति विनय, हरवनस्पति, हर पदार्थ,छोटे बड़े सभी के प्रति तथा कण कण में विनय हो यही आत्मा का गुण है। विनय हर पल के व्यवहार में प्रकट होना चाहिए। विपरीत परिस्थियो में आपका व्यवहार अच्छा बना रहे यही विनय।
संघ के अध्यक्ष ओम प्रकाश मंडोवरा ने बताया की संघ में सिद्धि तप के तपस्वियों की संख्या लगभग 250 के आस पास पहुंच गई है। अन्य भी कई तरह की तपस्या भी संघ में लगातार जारी है।