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यार्न के कच्चे माल एमईजी और पीटीए में कमी, यार्न उत्पादन पर पड़ा असर

सूरत समेत दक्षिण गुजरात में लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक ही यार्न उत्पादन

सूरत। एमईजी और पीटीए में से चिप्स बनाये जाते हैं। इन चिप्स का उपयोग एमएमएफ (मेन मेड फाइबर) और प्लास्टिक की पानी की बोतलें बनाने के लिए किया जाता है। भारत में उत्पादित चिप्स का 5 प्रतिशत पानी की बोतलें और 90 प्रतिशत कपड़ा बनाने में उपयोग किया जाता है।

भारत में एमईजी पीटीए की प्रति माह डेढ़ लाख टन की कमी है। इसके कारण यार्न निर्माता कंपनियों की सतत प्रक्रिया लाइन प्रभावित हुई है और कई कंपनियों द्वारा सतत प्रक्रिया लाइन यानी उत्पादन में कटौती की गई है। यार्न के कच्चे माल एमईजी और पीटीए में कमी के कारण सूरत और दक्षिण गुजरात में लगभग 30 से 40 कंपनियां 30 से 40 प्रतिशत तक यार्न उत्पादन पर काम कर रही हैं।

भारत में एमईजी और पीटीए की कुल मिलाकर अनुमानित 40 प्रतिशत कम आपूर्ति थी, लेकिन कम आपूर्ति को पूरा करने के लिए चीन से सामग्री मंगवाई जा रही थी। लेकिन क्वॉलिटी कंट्रोल ऑर्डर (क्यूसीओ) पिछले अक्टूबर नवंबर में लागू किया गया है। इस वजह से विदेशों से ऑर्डर की जाने वाली मात्रा पर ब्रेक लग गया है। इसका असर यार्न उत्पादन पर पड़ा है और यार्न निर्माताओं को की-रोमटेरियल एमईजी और पीटीए नहीं मिल पा रहा है, इसलिए यार्न का उत्पादन 30 से 40 फीसदी तक कम हो गया है।

अगर ऐसी ही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में यार्न की कीमत बढ़ जाएगी। वीविंग और निटिंग उद्योग को सप्ताह में 2 दिन की छुट्टी लेनी पड़ेगी।

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