गौरव संतुष्टि के जीवन का परिणाम : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी
पर्वाधिराज पर्युषण जीवन में बदलाव का पर्व
सूरत। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने रविवार 1 सितंबर को प्रवचन में कहा कि पर्वाधिराज पर्युषण चिंतन और संकल्प का दिन है। हमनें यातना और याचना दो भागों में कई जन्म निकाल दिए। देवगति और मनुष्य गति में याचना है। नर्क और तिरंजगति में यातना है। बहुत बार यातना मिलती नहीं लेकिन हम यातना का अनुभव करते है। वो व्यक्ति बड़े सौभाग्यशाली है, बड़े साधक है जिन्हें यातना मिलने पर भी अपने अंतर में यातना का नहीं बल्कि प्रसन्नता का अनुभव करते है।
हम अपने अंदर तरफ तरफ की कल्पनाएं करके, अपने पूर्वाग्रह के कारण स्वयं के अनुमान को यथार्य का जामा पहनाते हुए व्यक्तियों के बारे में सोच रखते हुए अपने अंदर में प्रताड़ना का अनुभव करते है। यातना और याचना का जीवन है। हमारा जीवन भागा दौड़ी का जीवन है। पदार्थ, लोभ, व्यक्ति के पीछे हम भागते रहते है। भागा दौड़ी, हाथा जोड़ी और माथा फोड़ी का जीवन है। हमें यातना और याचना से भी पार होना है। परमात्मा ने जो छोड़ा जो वह मांगे वह याचक और परमात्मा ने जो पाया उसे मांगता है वह सेवक है। जन्मों से चलते आ रहे यातना और याचना से बचना है तो यतना का स्वीकार करें। यतना यानी जैना। हमें पर्वाधिराज पर्युषण में स्वयं के स्वभाव को निरखना है, परखना है। देखना, निरखना, परखना यह तीन शब्द बड़े महत्वपूर्ण है। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व में हमें सावधान हो जाना है। वर्तमान के जीवन में के बारे में चिंतन करना है।
उन्होंने कहा कि जीवन में भी दो व्यक्ति एक फूल जैसे और दुसरे कांटे जैसे। गर्व और गौरव में बड़ा अंतर है। दूसरों के कारण पाया जाए वह गर्व और जो स्वयं के कारण पाया जाए वह गौरव है। स्वयं में प्रेम वह करता है जो अपने आप से संतुष्ट होता है। गौरव हमेशा संतुष्टि के जीवन का परिणाम है। पर प्रिय बनना बहुत आसान है लेकिन स्वयं प्रिय बनना बड़ा मुश्किल है। पर प्रिय बना जाता है अपने व्यवहार से, स्वयं प्रिय बना जाता है अपने स्वभाव से। हमें निश्चित करना है कि अपने जीवन में फूलों गुणों को विकसित करना है या कांटों के गुणों को। पर्वाधिराज पर्युषण जीवन में बदलाव का पर्व है। आज पाक्षिक प्रतिक्रमण हुआ।
कार्यक्रम में राजस्थान पत्रिका के संपादक शैलेन्द्र तिवारी, टेक्सटाइल युवा बिग्रेड के अध्यक्ष ललित शर्मा, विद्रोही आवाज के संपादक उत्तम जैन, उप संपादक राजू तातेड़ ने आचार्यश्री के दर्शन किए। और मीडिया प्रभार संभाल रहे संघ के कार्यकर्त्ता दिलीप भंडारी भी मौजूद रहे। युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में मासक्षमण 60, सिद्धितप 251, 51 उपवास 1, 45 उपवास 1, 36 उपवास 2, 21 उपवास 4, 16 उपवास 1, 15 उपवास 4, 11 उपवास 1, 10 उपवास 1, 9 उपवास 2, गौतप गणधर तप 235, सांकली अटठम, अखंड आयंबिल की तपश्चर्या हुई।