धर्म- समाज

आगम का स्वाध्याय है अमृत के समान : आचार्य महाश्रमण 

युगप्रधान आचार्य ने चारित्रात्माओं व जनता को दी मेधावी बनने की प्रेरणा

सूरत (गुजरात) : शांतिदूत आचार्य महाश्रमणजी ने रविवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता तथा चतुर्दशी के संदर्भ में उपस्थित चारित्रात्माओं को आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मेधावी शब्द का प्रयोग होता है। ऐसी बुद्धि जो धारण करने में सक्षम हो, वह मेधावी होता है। कोई ज्ञान की दृष्टि से भी मेधावी होता है। जिनके पास प्रतिभा, ग्रहण शक्ति, स्मरण शक्ति, धारण शक्ति होती है और ऐसे व्यक्ति पुरुषार्थ करते हैं तो अपने-अपने क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं।

ज्ञानावरणीय कर्म के उदय के कारण जीव की ज्ञान चेतना आवृत्त हो जाती है, किन्तु ज्ञानावरणीय कर्म आत्मा को पाप लगाने वाली नहीं होती। ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोशम होता है तो ज्ञान चेतना अनावृत्त हो सकती है। इससे कितने-कितने विद्यार्थी मेधावी होते हैं, जिनमें ज्ञान व समझ सकती का बहुत अच्छा विकास होता है। हमारे साधु-साध्वियों में कितने-कितने मेधावी हो सकते हैं।

चतुर्मास के समय चारित्रात्माओं व समणियों को आगम आदि के स्वाध्याय में समय का नियोजन करने का प्रयास करना चाहिए। आगम का स्वाध्याय तो मानों साधु एक खुराक होती है। आगम के स्वाध्याय से संयम रूपी वृक्ष को अमृत का चिंतन प्राप्त होता है। दसवेआलियं जैसा छोटा ग्रंथ कंठस्थ हो जाए तो उसका पुनः-पुनः स्मरण व उसके अर्थ का बोध होता रहे, तो कितना अच्छा हो सकता है। गुरुदेव तुलसी तो कई बार उत्तरझय्यणाणी खड़े-खड़े स्वाध्याय करते थे। ज्ञानावरणीय कर्म का प्रखर क्षयोपशम होता है तो ज्ञान की प्रखर स्थितियां भी प्राप्त हो सकती हैं। जो अरति का निवर्तन करता है, वह मेधावी होता है।

साधु के मन में संयम के प्रति अच्छा उत्साह बना रहना चाहिए। आचार्यश्री ने चतुर्दशी के दिन समुपस्थित चारित्रात्माओं को विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि हाजरी के माध्यम से कुछ प्रेरणा, स्मारणा प्राप्त कर सकें, ऐसा करने का प्रयास होना चाहिए। इससे साधुओं को अरति को निकालने का प्रयास करना चाहिए। संयम के प्रति अरति को नहीं आने देना चाहिए, संयम के प्रति अनुत्साह न जागे और संयम के प्रति उत्साह का भाव बना रहे, ऐसा प्रयास करना चाहिए।

साधु आजीवन संयम रूपी हीरे की सुरक्षा के प्रति पहरेदारी करने का प्रयास करना चाहिए। बहुत बड़े सौभाग्य की बात है कि किसी-किसी को संयम रूपी हीरा प्राप्त होता है। मुनि उदितकुमारजी व मुनि धर्मरुचिजी के विषय में फरमाते हुए कहा कि इनसे भी प्रेरणा आदि ली जा सकती है। आचार्यश्री ने साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी को भी उत्प्रेरित किया।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री के हाजरी वाचन क्रम को संपादित किया। आचार्य की अनुज्ञा से मुनि वीतरागकुमारजी व मुनि संयमकुमारजी ने लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यने मुनिद्वय को 21-21 कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार आचार्यश्री से अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

आज आचार्य की मंगल सन्निधि में जोधपुर व जयपुर के नारकोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) के क्षेत्रीय निदेशक श्री घनश्याम सोनी पहुंचे। उन्होंने आचार्य के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

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