धर्म- समाज

अनुशासन, विधि, व्यवस्था व बहुश्रुतता के द्योतक थे श्रीमज्जयाचार्य : आचार्य महाश्रमण

मनुष्य हो अथवा कोई अन्य छोटे से छोटा प्राणी ही क्यों न हो, सभी को जीवन प्रिय

सूरत (गुजरात) : महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि सभी प्राणियों को जीवन प्रिय होता है। मनुष्य हो अथवा कोई अन्य छोटे से छोटा प्राणी ही क्यों न हो, सभी को जीवन प्रिय होता है, कोई मरना नहीं चाहता। प्राणी की यह सामान्य प्रवृत्ति होती है कि कोई मरना नहीं चाहता। मनुष्य इस बात पर ध्यान दे कि यदि वह नहीं मरना चाहता तो दूसरे भी मरना नहीं चाहते। सभी को अपने समान ही समझने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी स्थिति में मनुष्य जितना अन्य प्राणियों की हिंसा से बच सके, बचने का प्रयास करना चाहिए।

आदमी यह सोचे कि जैसे वह सुख चाहता है, कष्ट नहीं चाहता, मरना नहीं चाहता तो भला दूसरा दुःख, कष्ट और मरना क्यों चाहेगा। ऐसा विचार कर आदमी को अहिंसा की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। अपनी आत्मा के हित के लिए और दूसरों को किसी भी प्रकार का अपनी ओर से कष्ट न देने की भावना अहिंसा की भावना होती है। साधु के लिए अहिंसा पूर्णरूपेण पालनीय होती है और जिंदगी भर अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले होते हैं।

आज भाद्रव कृष्णा द्वादशी है। यह तिथि ऐसे महापुरुष से जुड़ी हुई है, जिन्होंने इतनी छोटी उम्र में अहिंसा आदि महाव्रतों के पालक बन गए। वे महापुरुष थे तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य जीतमल स्वामी, जिन्हें जयाचार्य भी कहते हैं। उन्हें श्रीमज्जयाचार्य भी कहते हैं। श्रीमज् शब्द उन्हीं के नाम के आगे क्यों जुड़ा है, इस पर विचार किया जा सकता है। उनका संयम पर्याय भी काफी लम्बा रहा। उनकी ज्ञान चेतना भी बहुत विशिष्ट थी। छोटी उम्र में रचना करना, आगम पर कार्य करना कितनी बड़ी बात होती है। हमारे धर्मसंघ में आगम पर कार्य आचार्यश्री तुलसी के समय वि.सं. 2012 से शुरु हुआ जो काम अभी भी चल रहा है। काफी काम हो चुका है और अभी अवशिष्ट भी है। ऐसा लगता है कि आगमों पर कार्य श्रीमज्जयाचार्यजी ने भी किया।

उन्होंने कई आगमों पर उन्होंने राजस्थानी भाषा में जोड़ की रचना कर दी। भगवती जोड़ को देखें तो आश्चर्य होता है कि इतने बड़े ग्रन्थ पर उन्होंने राजस्थानी भाषा में राग-रागणियों में अपनी विशेष समीक्षा आदि लिख दिए। उनके कितने ही ग्रंथ को देख लें तो तेरापंथ धर्मसंघ के दर्शन को जाना जा सकता है। अनेकानेक ग्रंथ उनकी विद्वता के यशोगान करने वाले हैं। वे आगमवेत्ता, तत्त्ववेत्ता आचार्य थे। एक आचार्य के सामने और भी व्यवस्था संबंधी कार्य होते हुए भी इतने साहित्य व ग्रंथ की रचना कर देना उनकी प्रज्ञा और मेधा का द्योतक प्रतीत हो रहा है।

वे अनुशासन, विधि, व्यवस्था रखने वाले आचार्य थे। धर्मसंघ में साध्वीप्रमुखा का पद भी उन्हीं के द्वारा प्राप्त है। उनके बाद से यह परंपरा चली और उसके बाद आचार्यों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है। उन्होंने साध्वी समुदाय की व्यवस्था में नया अध्याय जोड़ा था। उन्होंने महासंती सरदारांजी को मुखिया के रूप में आगे लाए। वे अनुशासन व्यवस्था के पक्ष में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम था, जिसकी प्रासंगिकता आज भी प्रतीत हो रही है। वे बहुश्रुत, कुशल व्यवस्था प्रबंधकारक आचार्य थे। उनके जीवन में अध्यात्म और साधना का पक्ष भी है।

उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय में विशेष साधना भी की। जयाचार्य का महाप्रयाण आज के दिन जयपुर में हुआ था। आज के दिन पंचम आचार्य के रूप में मघवागणी प्राप्त हुए। श्रीमज्जयाचार्यजी ने अनुदान धर्मसंघ को दिए हैं, वे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। हम उनके आभारी हैं। उनके जैसा महान व्यक्तित्व प्राप्त होना, धर्मसंघ का सौभाग्य था। ऐसे आचार्यप्रवर की हम अभिवंदना करते हैं। आचार्यश्री ने उनकी अभ्यर्थना में गीत का आंशिक संगान किया।

मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि दिनेशकुमारजी के नेतृत्व में चतुर्विध धर्मसंघ ने आचार्यश्री के मुखारविंद और केशलुंचन की निर्जरा में सहभागी बनाने हेतु निवेदन करने से पूर्व त्रिपदी द्वारा वंदना भी की। आचार्यश्री ने लोच के संदर्भ में साधु-साध्वियों को एक-एक घंटा आगम स्वाध्याय, श्रावक-श्राविकाओं को अतिरिक्त रूपी में सात सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान की।

कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी का उद्बोधन हुआ। अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान श्रीमुख से स्वीकार किया। तदुपरान्त मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने श्रीमज्जयाचार्य की अभ्यर्थना में गीत का संगान किया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी श्रीमज्जयाचार्यजी की अभ्यर्थना में अपनी विचाराभिव्यक्ति दी।

कार्यक्रम में ठाणे के पूर्व सांसद  संजीव नाईक, राजस्थान पत्रिका के संपादक  शैलेन्द्र तिवारी, टेक्सटाइल युवा बिग्रेड के अध्यक्ष  ललित शर्मा ने आचार्यश्री के दर्शन किए। पूर्व सांसद  संजीव नाईक ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

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