धर्म- समाज

सूरत : गाय का गोबर मल नहीं है यह मलशोधक, दुर्गन्धनाशक, उत्तम वृद्धिकारक एवं मृदा उर्वरता पोषक है : गोपालानंद सरस्वतीजी महाराज

गोबर की महिमा हर कोई नहीं समझ सकता

श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के संस्थापक गोऋषि स्वामी श्री दत्तशरणानंदजी महाराज की पावन प्रेरणा एवं 31 वर्षीय गो पर्यावरण एवं आध्यात्मिक चेतना पद यात्रा के 10 वर्ष पूर्ण होकर 11 वें वर्ष में मंगल प्रवेश के उपलक्ष्य में वेदलक्षणा धाम, श्रीकृष्णा स्टेलर प्रांगण, एम.डी. मार्ट, देवीकृपा सोसायटी के पास,गोडादरा-देवध रोड सूरत में चल रही सात दिवसीय गोकृपा कथा महोत्सव के पांचवे दिन गुरुवार को स्वामी गोपालानंद सरस्वतीजी महाराज ने कहा कि वेदों में कहा गया है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है। गोबर गणेश की प्रथम पुजा होती है और वह शुभ होता है। मांगलिक अवसरों पर गाय के गोबर का प्रयोग सर्वविदित है। जलावन एंव जैविक खाद आदि के रूप में गाय के गोबर की श्रेष्ठता जगत प्रसिद्ध है।

गोपालानंद सरस्वतीजी महाराजजी ने कहा कि गाय का गोबर दुर्गन्धनाशक,शोधक,क्षारक,वीर्यवर्धक,पोषक,रसयुक्त ,कान्तिप्रद और लेपन के लिए स्निग्ध तथा मल आदि को दूर करने वाला होता है। गाय के गोबर में एन्टिसेप्टिक, एन्टिडियोएक्टिव एंव एन्टिथर्मल गुण होता है। गाय के गोबर में लगभग 16 प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व पाये जाते है। गाय का गोबर मल नहीं है यह मलशोधक है ,दुर्गन्धनाशक है एंव उत्तम वृद्धिकारक तथा मृदा उर्वरता पोषक है। यह त्वचा रोग खाज,खुजली,श्वासरोग,जोड़ो के दर्द सायटिका आदि में लाभदायक है।

महाराज जी ने कहा कि गो माता की कृपा का सरल साधन गोबर है। गोबर की महिमा हर कोई नहीं समझ सकता। भगवती गौरी ने उबटन के रुप में गोबर लगाती थी। स्वयं मैं तो गौबर का माला, आसन का उपयोग करता हूं। महाराजजी ने कहा कि नंदी बाबा (बैल) धर्म का रुप है। भगवान श्री राम एवं देवाधिदेव भगवान शिव के बारात में नंदी बाबा थे। इसलिए हम सभी सनातनियों को बारात में नंदी बाबा अवश्य ले जाये। भले ही आधुनिकता के कारण
सब कुछ ले जाये, लेकिन धर्म रुप नंदी बाबा बारात में ले जाएं और गोदान जरुर कराएं।

महाराजजी ने कहा कि देवता, ब्राह्मण, गौ, साधु तथा साध्वी स्त्रियों के बल पर ही यह जगत टिका हुआ है इसीलिये ये सभी पूजनीय हैं। शास्त्रों के अनुसार गौमाता जिस स्थान पर जल पीती हैं वह स्थान तीर्थ के तुल्य होता है। जिस घर-आंगन या फिर किसी धार्मिक अनुष्ठान के स्थान को गाय के गोबर से लीपा जाता है वहां स्वयं देवता वास करते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी है कि उस स्थान की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है।

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