धर्म- समाजसूरत

सूरत : जैन भगवती दीक्षा समारोह में दो बहनों ने संयम जीवन किया स्वीकार

महाश्रमण की मंगल सन्निधि में सूरत में आयोजित हुआ दूसरा दीक्षा समारोह

सूरत (गुजरात) : सूरत शहर में वर्ष 2024 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को तेरापंथ धर्मसंघ के 31वें विकास महोत्सव के अवसर पर सूरत की धरा पर इस चतुर्मास के दौरान दूसरे दीक्षा समारोह में दो दीक्षार्थियों को दीक्षा प्रदान कर संयम पथ पर आगे बढ़ाया तो पूरा संयम विहार मानों जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री की इस कृपा से विकास महोत्सव पर तेरापंथ धर्मसंघ की साधु परंपरा में साध्वियों की संख्या भी वृद्धिंगत हुई।

महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सूरत चतुर्मास के दौरान आयोजित दूसरे जैन भगवती दीक्षा समारोह का आयोजन भी था। इस समारोह के अंतर्गत मुमुक्षु अंजलि सिंघवी ने दीक्षार्थी बहनों का परिचय प्रस्तुत किया। तदुपरान्त पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष श्री बजरंगलाल जैन ने दीक्षार्थियों के परिजनों से प्राप्त आज्ञा पत्रों का वाचन किया। दीक्षार्थियों के परिजनों ने आज्ञा पत्र आचार्यश्री के करकमलों में समर्पित किया। दीक्षार्थी ऋजुल मेहता तथा दीक्षार्थी दीप्ति वेदमूथा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।

वर्तमान तेरापंथाधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आज के अवसर पर समुपस्थित जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मैंने अतीत में जो कुछ भी प्रमाद किया है, वह अब नहीं करूंगा। यह वाक्य संन्यास से जुड़ा हुआ उद्घोष है। आज जैन भगवती दीक्षा का अवसर भी है। आचार्यश्री ने दीक्षार्थियों के परिजनों से परिषद के मध्य मौखिक आज्ञा भी लेने के साथ ही दोनों दीक्षार्थियों की भावनाओं का अंतिम परिक्षण किया।

तदुपरान्त आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए दीक्षार्थियों को दीक्षा प्रदान की। आचार्यश्री ने तीन करण तीन योग से सर्व सावद्य योग का त्याग कराया। नवदीक्षित साध्वियों को आचार्यश्री को सविधि वंदन किया। आचार्यश्री ने आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए नवदीक्षित साध्वियों को अतीत की आलोचना कराई। नवदीक्षित साध्वियों के केशलोच का संस्कार साध्वीप्रमुखाजी ने पूर्ण किया। तदुपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने नवदीक्षित साध्वियों को रजोहरण प्रदान किया।

आचार्यश्री ने दीक्षार्थी ऋजुल को साध्वी धन्यप्रभाजी तथा दीक्षार्थी दीप्ति को साध्वी देवार्यप्रभाजी नवीन नाम प्रदान किया। इस प्रकार आचार्यश्री ने नवदीक्षित साध्वियों को नवीन नाम प्रदान किया। समुपस्थित विशालजनमेदिनी ने नवदीक्षित साध्वियों का अभिवादन किया। आचार्यश्री ने नवदीक्षित साध्वियों को यतनापूर्वक अपना प्रत्येक कार्य करने तथा जीवन में संयम रखने की प्रेरणा प्रदान की।

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