जीवन में व्रत, संयम की चेतना का होता रहे विकास : आचार्य महाश्रमण
पर्वाधिराज पर्युषण का पांचवां दिवस व्रत चेतना दिवस के रूप में हुआ समायोजित
सूरत। पर्वाधिराज पर्युषण का पांचवा दिवस था, जिसे व्रत चेतना दिवस के रूप में समायोजित किया गया। महावीर समवसरण में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ शांतिदूत आचार्य महाश्रमण के महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। मुनि अभिजितकुमारजी ने भगवान मल्लीनाथ के जीवन का वर्णन किया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने दस धर्मों में वर्णित संयम धर्म पर अपनी अभिव्यक्ति दी।
मुख्यमुनश्री महावीरकुमारजी ने संयम धर्म पर आधारित गीत का संगान किया। व्रत चेतना दिवस पर आधारित गीत का संगान साध्वी मैत्रीयशाजी व साध्वी ख्यातयशाजी ने किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने व्रत चेतना दिवस पर उपस्थित जनता को मंगल प्रतिबोध प्रदान किया।
आचार्यश्री महाश्रमण ने गुरुवार को महावीर समवसरण से ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के वर्णन क्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नयसार की आत्मा जब भगवान ऋषभ के पौत्र व चक्रवर्ती भरत के पुत्र मरिचि के रूप में हुए और अपने दादा से प्रेरणा लेकर साधु और बने और अलग ढंग से साधना करने लगे। आचार्य इसके माध्यम से परिषहों को जितने की प्रेरणा प्रदान की।
आचार्य ने साधुओं को किसी भी प्रकार के परिषहों को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में घमण्ड नहीं करना चाहिए। रूप, शक्ति, पैसा, धन आदि-आदि अनेक अनुकूलताओं का घमण्ड नहीं करना चाहिए। मरिचि के जीवन का क्रम पूर्ण हुआ और वहां से पांचवें देवलोक में उनकी आत्मा उत्पन्न हुई। देवगति का आयुष्य पूर्ण हुई।
आचार्य ने व्रत चेतना दिवस के संदर्भ में उपस्थित श्रद्धालु जनता को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि इस बार हमने चिंतन कर इसका नाम व्रत चेतना दिवस कर दिया। श्रावक यदि बारह व्रतों को स्वीकार कर लें तो उसके जीवन का कितना कल्याण हो सकता है।