धर्म- समाज

पठान फ़िल्म और जैन तीर्थ समेत शिखरजी मन्दिर के दावे पर हिन्दू धर्मावलम्बियों की धार्मिक भावना आहत

अभिनेत्री दीपिका और शाहरुख की फ़िल्म पठान में फिल्माए गए दृश्य का विरोध पूरे भारत मे शुरू हो गया है।लोकगायक राजभा गढवी के पठान फिल्म के खिलाफ देश मे धार्मिक भावना को ठेस पहुंची है। बॉलीवुड में कई वर्षों से हिन्दू हिन्दुओ की भावना से खेलता आ रहा है। बॉलीवुड की फिल्मो में हमेशा सनातन संस्कृति और हिन्दू परम्पराओ का मजाक उड़ाया जाता है।

दीपिका की फ़िल्म पद्मावत पर कितना हंगामा किया गया था। राजपूत क्षत्राणी महारानी पद्मावती के नाम की फ़िल्म को बदल कर पद्मावत रखना पड़ा था। इस बार पठान में भगवा वस्त्र पहनकर शाहरुख के साथ गाना रेकॉर्ड किया गया है। सनातन परम्पराओ को गलत दिखाने की कोशिश की गई है। देश विदेश में विरोध शुरू हो गया है। जिस प्रकार आकाश को बाहों में नही समेटा जा सकता,उसी प्रकार धर्म को किसी सीमा में बांधने का प्रयास करना उनकी ऊंचाई को बौना और इसके विस्तार को संकुचित करने का असफल प्रयास ही होगा। यही कारण है कि धर्म के भव्य और असीम स्वरूप को सीमाओं में नही बांधा जा सका। धर्म आकाश की तरह अनन्त है।

तप,त्याग और सेवा धर्म के ही रूप है। हिन्दू धर्म की बड़ी ग्लानि नासमझ लोगो के द्वारा की जा रही है। धर्म शाश्वत है। धर्म कोई छोटा या बड़ा नही होता है। जिन तथाकथित ठेकेदारों को अपने धर्म मे अपने इष्टदेव में श्रद्धा का अभाव होता है। वे ही दूसरे धर्म पर कीचड़ उछालने का काम करते है। विश्व धर्म के भाव रखने वाला मनुष्य राष्ट्रधर्म के पथ से ही आगे बढ़ता है।

धर्म और भगवा की बात की जाए तो अश्लीलता और भगवा वस्त्र में दीपिका के गाने की धर्म पर चोट है। इस गाने को बेशरम रंग नाम दिया जा रहा है। हिन्दू और हिन्दू धर्म के सिवाय दिग्दर्शको और फ़िल्म निर्माताओं को कोई ठोस स्टोरी नही मिलती है। हिन्दू धर्म के नाम और हिन्दुओ की आस्था को चोट करने कुकुरमुत्ते की तरह फैले हुए है। जनता भगवा को बदनाम करने वालो के खिलाफ सख्त है।

फ़िल्म पठान के नाम से बुरका या नकाब की झलक नही है,लेकिन बिकनी नजर आ रही है। जिसका सीधा संबंध भगवा रंग है। श्रद्गा असीम आनन्द का खजाना है। जब श्रद्धा में स्वार्थ की दीवार खड़ी हो जाती है,मनुष्य जब अपने लाभ और हानि का अंकगणित लगाने लगता है। तब उसकी आशाएं फलीभूत हो जाना संभव नही लगता है।

हिन्दू भगवे के अपमान के बाद अब जैन धर्म का तीर्थ और जैन समाज के आस्था के केंद्र झारखंड के समेतशिखरजी को ईको टूरिज्म स्थल को जाहिर करने के बाद पूरे देश से आवाज उठी है। गुजरात के पालीताना तीर्थ पर हो रहे हमले के बाद देश मे जप,तप और नवकार मंत्र का जप कर विरोध जताया जा रहा है। जैन पालिताना महातीर्थ जैन समाज की आत्मा है।

उसी तरह जैन समाज के समेतशिखर जी जैन धर्म के प्राण समान है। ऐतिहासिक तीर्थो पर सरकार अपना आधिपत्य स्थापित कर लाखो करोड़ो जैन बंधुओ के आस्था पर सीधा कुठाराघात है। सरकार ही भक्षक बन अपनी स्वार्थ की रोटियां सेंकने का काम कर रही है। जैन और हिन्दू धर्म को बारबार टारगेट करने वाले अधर्मी तत्वों को निकाल बाहर करने का समय आ गया है।

यह वैश्विक परिदृश्य में है। अंतरास्ट्रीय षड्यंत्र के मार्फ़त हिन्दू धर्म पर फब्तियां कसी जा रही है। धर्म का क्षेत्र सचमुच श्रद्धा का क्षेत्र है। धर्म किसी मंदिर,चर्च या मस्जिद में नही है।ये तो केवल साधना के स्थल केंद्र है। जहाँ पर बैठकर मनुष्य अपना आत्म चिंतन कर सके। धर्म तो मनुष्य के आचरण में है।अपने जीवन मे धर्म को इतना उर्वर बनाने कि आवश्यकता है कि श्रद्धा की फसल लहलहा उठे।

मनुष्य की भावना को श्रद्गा से संबल मिलता है। उसी श्रद्धा को केंद्र में रखकर देश मे एक जनून है। किसकी मजाल है कि धर्म की ग्लानि कर सके। हिन्दू धर्म को तुच्छ कह सके।

जैन धर्म अहिंसा परमो धर्म में मानने वाला है। जैन तीर्थ पर सरकार का अधिकार शून्य है। किसी धर्म मे दखलगिरी करना सरकार के अधिकार क्षेत्र में नही है। अपने अपने धर्म और आस्था का किस तरह उपयोग कर आराधना करते है।उसके लिए संविधान संमत है। लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ रची जा रही गलत साजिश से सरकार को और जैन तीर्थ का विरोध करने वालो पर कोई प्रभाव पड़ता है या नही,लेकिन जैन धर्मावलंबियों पर बहुत फर्क पड़ता है।

50 प्रतिशत आयकरदाता जैन समाज के तीर्थ स्थलों और मंदिरों की सुरक्षा की जगह कायदे कानून में जकड़ने की कोशिश करते है तो यह गलत है। जैन समाज सरकार बदलने की क्षमता नही रखता है। लेकिन समाज की एकाग्रता और संयम सरकार के लिए मजबूरी नही बन जाए? आस्था पर चोट करने वाले क्यो भूल जाते है कि हिन्दू और जैन एक ही सिक्के के दो पहलू है।

जैन पहले सनातनी ही थे। भगवान महावीर क्षत्रिय थे। उनके अनुयायी जैन समाज की स्थापना में भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त जैन धर्म बना। जैन समाज ने संयम का पालन कर मौन विरोध कर जुलूस निकाला है। जीवन मे उलझने की कोशिश न करे।

( कांतिलाल मांडोत )

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