स्वस्थ समाज की संरचना के तीन आयाम सद्भावना, नैतिकता और नशा मुक्ति : आचार्य श्री महाश्रमण
13 कि.मी. का विहार कर डोसवाड़ा मॉडल स्कूल में महातपस्वी का मंगल पदार्पण
डोसवाडा, तापी (गुजरात) : जन-जन के मानसिक ताप का हरण करने के लिए निरंतर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अब गुजरात की धरा पर गतिमान हो चुके हैं। 15 जुलाई को डायमण्ड व सिल्क सिटी सूरत में चातुर्मासिक प्रवेश से पूर्व तापी जिले की धरा पूज्यचरणों से पावनता को प्राप्त हो रही है। रविवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मीरकोट से मंगल प्रस्थान किया। रविवार होने के कारण सूरत व आसपास के क्षेत्रों के श्रद्धालु बड़ी संख्या में अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करने व विहार सेवा का लाभ उठाने को उपस्थित थे। मार्ग में स्थान-स्थान पर खड़े श्रद्धालुओं को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री आगे बढ़ते जा रहे थे।
आज आसमान बादलों से आच्छादित अवश्य था, किन्तु बरसात नदारद थी, किन्तु महातपस्वी के करकमलों से होने वाली आशीषवृष्टि जारी थी। विहार के दौरान श्रद्धालुओं की उपस्थिति मानों जुलूस का अहसास करा रही थी। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी डोसवाड़ा में स्थित मॉडल स्कूल में पधारे।
स्कूल परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में धर्म-अध्यात्म की यात्रा भी चलती रह सकती है। ध्यान, साधना, तप का क्रम चलता रहे तो धर्म रूपी यात्रा भी जीवन में चल सकती है। पदयात्रा भी धर्म को बढ़ाने वाली और कल्याणी होती है। आचार्यश्री ने फ़रमाया – हम अपनी यात्रा के दौरान तीन बातों का प्रसार कर रहे हैं- सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति। स्वस्थ समाज की संरचना के लिए यह तीनों आयाम अति महत्वपूर्ण है। जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र आदि-आदि के नाम पर हिंसा न हो। सभी में सद्भावना का विकास हो। आदमी कोई भी काम करे, उसमें नैतिकता रखने का प्रयास करे। किसी को धोखा देना, ठगी करना, झूठ बोलना आदि अनैतिक कार्यों से बचने का प्रयास करे। उसका जीवन नशामुक्त रहे। नशीले पदार्थों से बचने का प्रयास करना चाहिए।
इस प्रकार जीवन में अच्छे संस्कार रहें, विचार अच्छा हो तथा वह विचार व्यवहार में भी उतर जाए तो जीवन अच्छा बन सकता है। ईमानदारी, अहिंसा, शांति, नैतिकता, क्षमा आदि अच्छे संस्कार मानव जीवन में उतरे। शिक्षालयों से विभिन्न विषयों के ज्ञान के साथ-साथ संस्कार भी देने का प्रयास हो। आचार्यश्री ने कहा कि ज्ञानशाला के माध्यम से बच्चों को अच्छे संस्कार देने का प्रयास अनुमोदनिय है। बच्चों में धर्म-ध्यान व अध्यात्म की चेतना पुष्ट होती रहे तो बाल पीढ़ी का अच्छा विकास हो सकता है। आधुनिक युग में यंत्रों द्वारा भी अध्यात्म-धर्म को पोषण प्राप्त हो सकता है। आदमी को जीवन में संस्कारों की संपदाओं को पुष्ट बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।