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ज्ञान और वैराग्य का पर्व वसन्त पंचमी

धर्म,इतिहास और संस्कृति तिंनो मनुष्य जीवन के चित्र में हरे,लाल,पीले रगों की तरह गहरे धुले मिले तत्व है।धर्म वह शाश्वत तत्व है,जो अनादिकाल से मनुष्य के जीवन मे आनन्द सुख और शांति का कल्पवृक्ष बनकर लहरा रहा है।

धर्म मानव की आंतरिक चेतना की उपज है। आंतरिक चेतना से ही उसका सीधा संबंध है। इतिहास बिता हुआ सत्य है। भोगा हुआ अतीत है। इतिहास का रंग लाल और पिला है।इतिहास मनुष्य की मूर्खता और समझदारी का जीता जागता दस्तावेज होता है। वह दर्पण है।जिसमे मानव जाति का अतीत प्रतिबिंबित है।

भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है कि उसमें समाज और धर्म का प्रतिबिंब एक साथ समाया रहता है। संस्कृति हमेशा ही मानव सभ्यता को विकास और विराटता की और ले जाती है।इसलिए हम संस्कृति को जीवन से अलग नही कर सकते है।मानव जीवन का पहलू धर्म से जुड़ा हुआ है। पर्व,त्योहार, उत्सव आदि सभी हमारी सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक है।

आज वसन्त पंचमी का पर्व है। चारो और नीले, पीले केसरिया कपड़े नजर आ रहे है। लाउडस्पीकरो से धुन गूंजती सुनाई दे रही है। मेरा रंग दे बसंती चोला। खेत खलियान सरसो के पीले पीले फूलों की शोभा लिए दूर दूर तक चमक रहे है। ऐसा लग रहा है। मानो प्रकृति ने फूलों के बहाने खेतों में सोना फैला दिया है और खेतों की स्वर्णिम आभा देखकर किसान का कोमल मन नाच रहा है।

किसानों के पसीने की बूंदे ही मानो स्वर्ण फूल बनकर धरती के अंचल में दमक रही है।वसन्त ऋतु की सुहावनी छटा कुछ अलौकिक है। बड़ी जीवनदायिनी, आनन्द की वर्षा करने वाली और मन को प्रफुलता देने वाली है। पतझड़ के बाद वसन्त ऋतु का आगमन नव निर्माण का प्रतीक है।

विनाश के बाद नये विकास की सूचना लेकर वसन्त ऋतु आती है।जर्जर,मृतप्राय प्राकृतिक वनस्पतियों में नव जीवन अंगड़ाई देने लगता है। सूखे वस्त्रों पर नए नए कोपले लगती है।मुर्झाये पौधों पर जैसे जीवन खेलने लगता है। सर्वत्र उल्लास उमड़ रहा है। इस अलौकिक शोभा के कारण ही वसन्त ऋतु को सब ऋतुओं से श्रेष्ठ और ऋतुराज कहा जाता है।

विधा या सरस्वती का अवतरण दिवस

यो तो वसन्त पंचमी एक ऋतु परिवर्तन का पर्व है। प्राकृतिक जीवन मे नव उत्साह और नई उमंग के संचार का त्योहार है।किंतु भारत के प्राचीन ऋषि मनीषियों ने इस पर्व को विधा की देवी सरस्वती के साथ जोड़ दिया था। आज के दिन विधा देवता सरस्वती का धरा पर अवतरण हुआ था अर्थात आदि मानव ने आज के दिन अक्षर ज्ञान का अभ्यास करना प्रारंभ कर दिया था।

मनुष्य ने वर्णमाला और लिपिविधा का ज्ञान सीखना आज के दिन प्रारम्भ किया था।इसलिए वसन्त पंचमी को विधा देवता के अवतरण का दिन माना गया है। वसन्त पंचमी विधा पूजा का दिन है। जैन परम्परा अनुसार ज्ञान पंचमी भी ज्ञान पूजा का दिन है।

भारतीय संस्कृति में ज्ञानियों की पूजा,सम्मान, अभिनन्दन किया जाता है। भारतीय संस्कृति में विद्वानों का सम्मान सदा सदा से रहा है। मनुष्य के पास लक्ष्मी नही हो तो उसका काम चल जाता है,परन्तु अगर सरस्वती की कृपा न हो तो संसार मे वह मूर्ख कहलाता है इसलिए सभी देवताओं ने सरस्वती का अपना खास महत्व है।

शिक्षा के साथ संस्कार जरूरी है

आज साक्षरता के प्रचार हेतु राष्ट्रीय अभियान चल रहा है।कोई निरक्षर नही रहेगा। सब पढ़े लिखे अक्षरज्ञान प्राप्त करे,शिक्षा का विकास करे। यह देश के विकास और उन्नति के लिए जरूरी है किंतु इससे भी जरूरी है चाहे शिक्षित हो या अशिक्षित -संस्कारी अवश्य बने। सुसंस्कार पहली शर्त है। अगर शिक्षित संस्कारी नही है,तो वह एक निरक्षर संस्कारी से गया गुजरा माना जाएगा।

आज वसन्त पंचमी के दिन मेरा संपूर्ण देश,समाज को यही संदेश है कि शिक्षा के प्रचार के साथ संस्कार जागरण भी करे। शिक्षा और संस्कार दोनों विषयो में ही इसे बल देना है। संस्कारविहीन शिक्षा मनुष्य के विकास में सहायक नही होगी,किन्तु सुसंस्कारी शिक्षित देश को विनाश के गर्त में ढकेल देगा।

इसलिए वसन्त पंचमी को केवल सरस्वती पूजा का त्योहार मनाने में काम नही चलेगा।किन्तु संस्कार जागृति का पर्व मनाया जाए। वसन्त पंचमी के साथ काम पूजा का संबन्ध वास्तव में वामपंथी की कुत्सित धारणा का यह चिन्ह है।वास्तव में तो यह पर्व शिव शंकर की काम विजय का पर्व है। पहले ज्ञान पूजा करो ,ज्ञान प्राप्त करो,फिर ज्ञान के द्वारा वैराग्य अर्थात वीतराग भाव की प्राप्ति करो। इस प्रकार वसन्त पंचमी भारतीय संस्कृति का अध्यायात्मिक पर्व है।


*कांतिलाल मांडोत*

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