गुरुवाणी की अमृतवर्षा से निहाल हुए तेरापंथ के 1008 नौनिहाल
ज्ञान और संस्कार रूपी संपदा का होता रहे संवर्धन : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण
सूरत। भगवान महावीर युनिवर्सिटी परिसर में विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सूरत तथा आसपास संचालित ज्ञानशाला के हजारों की संख्या में ज्ञानार्थी पहुंचे तो महातपस्वी ने नौनिहालों को अपनी अमृतवर्षा से अभिसिंचन प्रदान किया। अपने सुगुरु के श्रीमुख से प्राप्त अमृतवाणी को प्राप्त कर तेरापंथ के नौनिहाल निहाल हो उठे।
ज्ञानशाला के लगभग 1008 नौनिहालों ने भी अपनी अनेकानेक प्रस्तुतियों के माध्यम से अपने आराध्य के श्रीचरणों की अभिवंदना में मनमोहक प्रस्तुतियां दीं। इस दौरान पंचदिवसीय राष्ट्रीय संस्कार निर्माण शिविर के शिविर के समापन पर शिविरार्थियों को आचार्यश्री ने पावन पाथेय प्रदान किया। शिविर में स्थान प्राप्त करने वाले शिविरार्थियों को सम्मानित भी किया गया।
अरब सागर के तट पर बसे सूरत शहर को अपनी अमृतवाणी की वर्षा से अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शुक्रवार को सूरत शहर व उसके उसके आसपास संचालित ज्ञानशाला के हजारों की संख्या में ज्ञानार्थी अपने आराध्य की अमृत देशना प्राप्त करने पहुंचे थे।
महावीर समवसरण में उपस्थित ज्ञानार्थियों को विशेष रूप से अपनी अमृतवाणी से मंगल अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। सद्वृत्तियां भी होती हैं तो दुरवृत्तियां भी होती है। आदमी को दुरवृत्तियों से बचते हुए सद्वृत्तियों के विकास का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज इतने ज्ञानार्थियों की उपस्थिति ने मानों ज्ञानशाला दिवस का रूप दिखा दिया है। ज्ञानशाला स्कूल की पाठशाला का छोटा रूप है। भौतिकता के माहौल में बच्चों में आध्यात्मिकता के विकास का यह बहुत अच्छा प्रयास है। स्कूल के साथ-साथ ज्ञानशाला में बच्चों का आना बहुत बड़ी बात है।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा का यह महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। कितनी प्रशिक्षिकाएं बच्चों को तत्त्वज्ञान और अच्छे संस्कारों को प्रदान करती हैं। गत दिनों समाप्त हुए वर्षीतप में 15 वर्ष से भी कम आयु के बच्चों द्वारा वर्षीतप करना बहुत बड़ी बात है।
जीवन में ज्ञान और संस्कार अमूल्य संपदा होती है। ज्ञान और संपदाओं के संवर्धन का माध्यम है ज्ञानशाला। ज्ञानशाला में ज्ञानार्थियों की संख्या वृद्धि के साथ ज्ञान और संस्कार का विकास होता रहे। ज्ञानशाला के माध्यम से भावी पीढ़ी सुसंस्कृत होती रहे। आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन से पूर्व साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी, साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी व मुनि उदितकुमारजी ने भी ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को उद्बोधित किया।
आचार्यश्री ने समुपस्थित राष्ट्रीय संस्कार निर्माण शिविर के शिविरार्थियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए संस्कार निर्माण शिविर के माध्यम से बच्चों में अपने संस्कारों का विकास हो, ज्ञान का विकास हो। बच्चों का धार्मिक-आध्यात्मिक विकास होता रहे। शिविर के संदर्भ में मुनि जितेन्द्रकुमारजी ने पूज्यप्रवर के समक्ष अवगति प्रदान की।
ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने मंगलाचरण किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक श्री सोहनराज चोपड़ा, ज्ञानशाला के आंचलिक संयोजक श्री प्रवीण मेड़तवाल ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। इस दौरान ज्ञानशाला पाठ्यक्रम के तीसरे भाग के पुस्तकों का लोकार्पण आचार्यश्री के समक्ष किया गया। तदुपरान्त ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी अनेक मनमोहक प्रस्तुतियां दीं। राष्ट्रीय संस्कार निर्माण शिविर के बच्चों ने गीत का संगान किया।
आचार्यश्री के दर्शनार्थ पहुंची लिम्बायत की विधायक संगीताबेन पाटिल ने कहा कि मैं परम पूज्य संत आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं। आपश्री के आशीर्वाद से मुझे ऐसी शक्ति प्राप्त हो, जिससे मैं जनता की सेवा कर सकूं और अपने क्षेत्र का विकास कर सकूं। आपश्री जिस प्रकार जनता की आध्यात्मिक सेवा कर रहे हैं, वह अद्भुत है। आपका स्वास्थ्य निरामय रहे। मैं आपश्री को पुनः वंदन करती हूं।
आइपीएस श्री सागर बाघमार ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर अपनी अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम के अंत में समुपस्थित ज्ञानार्थियों ने पंक्तिबद्ध होकर आचार्यश्री के निकट दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया।