आजादी के अमृत महोत्सव और राष्ट्रीय एकता के महायज्ञ में सभी भारतीय को देनी होगी आहुति
स्वतंत्रता दिवस राष्ट्रीय पर्व हमे नव ऊर्जा संचित कर राष्ट्र कल्याण की प्रेरणा देता है। पूरा विश्व स्वतंत्रता दिवस तिरंगा यात्रा और भारत माता के जयकारों के साथ सड़को पर उतर कर मना रहा है। 75 वर्ष की आजादी के इस जश्न को देश का हर व्यक्ति बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास से मना रहा है। देश मे तिरंगा फहराकर भव्य समारोह आयोजित किये जा रहे है।
राष्ट्रीय पर्व को बीते समय मे की गई प्रगति के आधार पर मूल्यांकन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।ऐसे दिवस खुले मस्तिष्क और ठंडे दिल से यह सोचने को बाध्य करते है कि हमने सामाजिक,आर्थिक,राजनैतिक व आत्मिक उत्थान के साथ साथ एकता अखंडता के लिए क्या प्रयास किया है और क्या करना शेष है।
15 अगस्त 1947 का वह दिव्य प्रभात देश के लिए कितने आनन्द उत्साह का रहा होगा। जो गुलामी को अनचाहे भोगकर सर्व तंत्र स्वतंत्र हुआ। आज 75 वर्षो के बाद भी लोगो के मन मस्तिष्क पर खुशी हिलोरे ले रही है तो भारत स्वतंत्र होने के दिन कितनी खुशी हुई होगी। इसका अंदाजा नही है।स्वतंत्रता दिवस को पूरा विश्व राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मना रहा है।
इस उत्सव में हरकोई भाग ले रहा है। हाथ में तिरंगा लिए हुए भारत माता की जय के नारे गूंज रहे है। उठ जाग मुसाफिर भोर भई का सहगान गाते हुए बालक विशेष तौर पर प्रभात फेरी निकालने के उत्सुक नजर आ रहे है।।चारो तरफ देशभक्ति के रंग में रंगा भारत दुरुस्त गांवो में भी तिरंगा फर फर फहराया जा रहा है । देश मे राष्ट्र ध्वज तिरंगा मुक्त गगन में फहराया जा रहा है।
आज हम स्मरण करते है,देश के उन नॉनिहालो का,जिन्होंने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए हंसते हंसते स्वयं का बलिदान कर दिया इसी दिन के लिए कई माताओं के सपूत,बहनों के भाई फांसी के झूलों पर झूल गए। उन अनगिनत विरो ने अंग्रेजो की गोलियों को पीठ पर भी नही बल्कि अपने सिनो पर झेला था।कितने क्रूर थे अंग्रेज,जिन्होंने जलिया वाला बाग में निहत्थी सभा पर गोलियों की बौछार करके दानवता का नग्न प्रदर्शन किया।
अंग्रेज डायर के इस कृत्य को इतिहास कभी क्षमा नही करेगा। अमृतसर की धरती अपने सपूतों के लहू से लाल हो गई। सचमुच इंसानियत उस दिन फुट फुट कर रोई थी।क्या उस क्रूरता से आजादी के दीवाने मौन हो गये? बल्कि आग और अधिक भड़की। उनके पास बंदूकें और गोलियां थी।हमारे पास देश प्रेम का तराना गाती मस्तानो की टोलियां थी।दुर्बल देह में महावीर सा संकल्प धारण किए, सोटी और लंगोटी पहने अहिंसा और सत्याग्रह का वैचारिक शस्त्र धारण कर चलने वाले गांधी।
गांधी की आंधी से यूनियन जैक हिल गया और उसके स्थान पर चढ़ गया अशोक चक्राहित तिरंगा,उसे देखकर समस्त भारतीयों के मन बांसों उछलने लगे। मन मयूर नाच उठे। ह्दय कमल खिल उठे।जीवन के कण कण में नव चेतना, नव जागृति अठखेलियाँ करने लगी।राष्ट्रभक्तो के गगन भेदी नारो से भू मंडल गूंज उठा।
जातिवाद का जहर
जातिवाद का जहर इस देश मे नया नही है। सारे भारत में अनेकों जातियां है। प्रत्येक जातियों के अपने स्वार्थ है।जातिवाद ने भारत को हमेशा कमजोर बनाये रखा है। आज भी यही स्थिति है। कुछ अपने सामाजिक स्थिति का रोना रोकर अपने को पिछड़ा बनाये रखना चाहते है। इस देश मे सब सम्मान है।सबको आगे आने का अधिकार है।
जातिवादी संगठनो के बल पर कुछ राजनैतिक दल अपना वोट बैंक बनाकर सरकार को अपने इशारों पर नचाने लगते है।इससे राष्ट्र कमजोर होता है। यह प्रत्येक भारतीयों को समझनी चाहिए। प्रान्तीयता के झगड़ो ने देश को निर्बल बनाने का प्रयास किया है। साम्प्रदायिकता के विष को यह भारत आजादी से पहले हभी पिता रहा है और आज भी अनचाहे उसे पीना पड़ रहा है।
धर्म सभी समस्याओं का हल
अलगाववाद के कीटाणु एकता के वृक्ष को नष्ट करने पर उतारू है। इसके लिए आवश्यक है। हम भारतवासी सर्वप्रथम राष्ट्रीय भावों से ओतप्रोत होकर राष्ट्रीय एकता की प्रतीक्षा करें कि राष्ट्र सर्वोपरि है। कुछ लोग धर्म को एकता में बाधक मानते है। धर्म तोड़ता नही,पर जोड़ना सिखाता है। धर्म समूह का नही बल्कि व्यक्तिगत जीवन को सुखमय बनाने वाला एक मार्ग है। यह स्वार्थ के नही,बल्कि परमार्थ का पथ बताने वाला विषय है।
अनेकान्तवाद ही सहायक
आज आवश्यकता है स्वार्थ को त्यागने की। प्रत्येक भारतीय त्याग की भावना को जीवन मे अपनाए।बिना त्याग से आग को शांत नही किया जा सकता है। हमे एकांतवाद की भावना का विसर्जन करके अनेकान्तवाद के सिद्धांत को जीवन मे स्वीकारना है।समन्वय की भावना को व्यवहारिक रूप प्रदान करना है।
मन मे उदार और ह्दय में विशाल बनकर सहिष्णुता के अंकुर जीवन मे सींचना है। सभी देशवासी राष्ट्रीय एकता के महायज्ञ को पूरा करने के लिए आगे आए। देश मे अभय और विश्वास का वातावरण बनाए।तभी देश को आजादी का अमृत महोत्सव मनाना सार्थक होगा।
( कांतिलाल मांडोत )