जीवन उत्कृष्ठ बनता है जब शिष्य गुरुमय होता है : संत सुधांशु जी महाराज
महापौर दक्षेश मावानी, उप महापौर नरेन्द्र पाटिल एवं स्थाई समिति अध्यक्ष, शासक पक्षनेता ने लिया गुरुदेव से आशीर्वाद
सूरत। डायमंड शहर सूरत के रामलीला मैदान में राष्ट्र सन्त परम पूज्य सुधांशु जी महाराज के पावन सान्निध्य में विराट भक्ति सत्संग का आयोजन किया गया है। प्रातः कालीन सत्र में देश भर के विभिन्न मंडलों से आए गुरु भक्तों एवं धर्मप्रेमियों ने पूज्य महाराज श्री के माध्यम से गीता का सारगर्भित संदेश सुना। इसी कड़ी में महापौर दक्षेश मावानी एवं सूरत महानगर पालिका के स्थाई समिति अध्यक्ष राजन पटेल ने परम पूज्य संत सुधांशु जी का धर्मनगरी सूरत आने पर अभिनन्दन किया।
भक्ति सत्संग में समागत व्यक्तियों से पूज्य महाराजश्री ने कहा कि गुरु के सानिध्य से शिष्य के जीवन में भी दिव्यता आती है। जैसे चुंबक के संपर्क से लोहे में भी लोहे को आकर्षित करने की शक्ति जागृत होती है, उसी प्रकार शिष्य में गहरी श्रद्धा हो तो गुरु कृपा से उसका जीवन रूपांतरित होता है यानी गुरु का पूर्ण स्वरूप शिष्य में उतर जाता है। सद्गुरु वह कुआं है जिसके जल से आत्मा की प्यास बुझती है। शिष्य के माध्यम से गुरु की वाणी ही निःसृत होती है। प्रातः काल उठकर जो शिष्य मानसिक रूप से सद्गुरु को दंडवत प्रणाम करता है और अपने ऊपर गुरु को आशीर्वाद महसूस करता है तो शिष्य आंतरिक रूप से जागृत होने लगता है। व्यक्ति गुरुमय हो जाए तो जीवन उत्कृष्ट बनता है।
महाराज जी ने कहा कि राग और द्वेष व्यक्ति को दोनों ही बांधते हैं। मित्र और वैरी दोनों ही बहुत याद आते हैं। संसार से प्रेम करें मोह नहीं। प्रेम देना जानता है मोह में व्यक्ति पाना चाहता है। प्रेम नदी का पवित्र और स्वच्छ जल है जबकि मोह सड़ा हुआ पानी है। महाभारत में मोह का प्रतीक है धृतराष्ट्र। अपने बच्चों से अगर प्रेम करते हैं तो उनको धन देकर अमीर नहीं बनाएं बल्कि धन कमाने की कला सिखाएं। ईर्ष्या में बदला लेने का भावना द्वेष है। ईर्ष्या से वह व्यक्ति जीवनपर्यन्त जलता रहता है। आध्यात्मिक उन्नति के लिए राग द्वेष दोनों से ऊपर उठें।
चार दिवसीय विराट भक्ति सत्संग महोत्सव के मुख्य समन्वयक आचार्य रामकुमार पाठक ने बताया कि रविवार को प्रातः कालीन सत्र के बाद दीक्षा कार्यक्रम रखा गया था, जिसमें अनेक धर्म प्रेमियों ने महाराज जी से मंत्र दीक्षा ग्रहण किया।