धर्म- समाज

भीतर से प्राप्त होने वाला सुख शाश्वत सुख है, उसे कोई छीन नहीं सकता : आचार्य श्री महाश्रमणजी

सूरत में आचार्य श्री महाश्रमणजी का नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम हुआ

सूरत। चातुर्मास के दूसरे दिन संयम विहार में आचार्यश्री का नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम हुआ। जिसमें सूरत शहर के विभिन्न व्यावसायिक क्षेत्रों के नेताओं, राजनीतिक क्षेत्र के गणमान्य व्यक्तियों, सेवा क्षेत्र के नेताओं ने अपने भाषणों में आचार्यश्री का अभिनंदन किया और सूरत शहर को पवित्र तीर्थ बनाने वाला चातुर्मास प्रदान करने के लिए आचार्यश्री को भावपूर्ण वंदन किया।नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम में सूरत शहर के 200 से अधिक गणमान्य लोगों ने भाग लिया।

संसार में दो प्रकार के जीव

आचार्य श्री महाश्रमणजी ने उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं की विशाल जनमेदिनि को संबोधित करते हुए कहा कि इस संसार में दो प्रकार के जीव हैं। एक है सिद्ध जीव और दूसरा सांसारिक जीव। पूज्यश्री ने सिद्ध जीव के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि सिद्ध जीव संसार के जीवन और मृत्यु की क्रिया से मुक्त है। यह अमन है, निराकार है, अशरीरी है और निराकार है। इसमें कभी दर्द नहीं होता, यह दर्द रहित होता है।

दुःख तीन रूप में आता है

आचार्यश्री ने कहा कि दुःख तीन रूपों में आता है। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक। सिद्ध को कोई शारीरिक कष्ट नहीं होता क्योंकि उसके शरीर ही नहीं होता। चूंकि वह शरीर रहित है इसलिए उसे शारीरिक कष्ट नहीं होता। दूसरे मन के दुख हैं। मानसिक पीड़ा जैसे मेरा काम पूरा नहीं हुआ, मेरा अपमान हुआ, मेरी उपेक्षा हुई आदि। सिद्ध के पास कोई मन नहीं होता, इसलिए उसे कोई मानसिक कष्ट नहीं होता। तीसरा है भावनात्मक दुःख। क्रोध, अहंकार, ईर्ष्या, लोभ, राग, द्वेष ये सभी भावनात्मक पीड़ा हैं। सिद्ध इन सब से परे है। अतः उसे इस तरह का दर्द नहीं होता। यह वीतराग है और तीनों प्रकार के कष्टों से सर्वथा मुक्त है। आत्मा का अंतर्निहित आनंद उन्हें उपलब्ध है।

सुख के दो प्रकार 

आचार्यश्री ने सुख की परिभाषा करते हुए कहा कि सुख दो प्रकार का होता है। एक खुशी बाहर से आती है और दूसरी खुशी भीतर से आती है। बाहरी ख़ुशी परिस्थितिजन्य होती है जबकि आंतरिक ख़ुशी परिस्थितिजन्य नहीं होती। किसी ने सराहना की, अच्छा भोजन मिला, कोई चीज़ पसंद आई.. ये सब बाहरी खुशियाँ हैं। जो शाश्वत नहीं है, जबकि आंतरिक प्रसन्नता प्राकृतिक एवं शाश्वत है। वीतराग और समता की साधना से उत्पन्न इस आंतरिक खुशी को कोई छीन नहीं सकता।तो इस ख़ुशी को प्राप्त कैसे कैसे कर सकते हैं ? यदि यह प्रश्न उठता है तो उत्तर भी पूज्यश्री के पास है।

पूज्य प्रवर कहते हैं – जब सारा ज्ञान प्रकाशित हो जाता है, अज्ञान और भ्रम दूर हो जाते हैं, क्रोध और घृणा मुक्त हो जाते हैं तो सुख का स्रोत भीतर से फूट पड़ता है और आत्मा एकान्त सुख को प्राप्त कर लेती है। सर्व ज्ञान के प्रकाशन और कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं किया जा सकता।

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