धर्म- समाज

गृहस्थ हो या साधु,जीवन में रखे समता: आचार्य महाश्रमण

अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों में समता भाव में रहने की दी पावन प्रेरणा

सूरत। सूरत शहर के वेसु क्षेत्र में स्थित भगवान महावीर युनिवर्सिटी परिसर में बने भव्य संयम विहार में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2024 का चतुर्मास कर रहे हैं। सोमवार को अध्यात्म जगत के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम के एक सूक्त में समता धर्म का समाचरण करने का संदेश दिया गया है।

मनुष्य अपने जीवन में हर्षान्वित हो जाते हैं तो कभी आक्रोश और गुस्से में भी आ जाते हैं। अनुकूल स्थिति होता है तो आदमी प्रसन्न हो जाता है और प्रतिकूल परिस्थिति आ जाए तो आदमी दुःखी हो जाता है, कष्ट की अनुभूति करने लगता है। इसलिए यह बताया गया कि यह जीवन अनेक बार उच्च गोत्र वाला भी बन गया और अनेक बार नीच गोत्र वाला भी बन गया। कोई हीन नहीं और कोई अतिरिक्त नहीं होता।

सामान्य व्यवहार में बड़ा और छोटा,हीन और अतिरिक्त, उच्चता और नीचता की बात हो सकती है। कोई उम्र में बहुत ज्यादा तो कोई बहुत उम्र वाला हो सकता है। कोई राजनीति में बहुत ऊंचे पद पर होता है तो कोई नीचे पद भी होता है। कोई धन-धान्य से बहुत उच्च होता है तो कोई धनहीन होता है। यह उच्चता और नीचता इस जीवनकाल की बातें हैं। मनुष्य अपनी आत्मा पर ध्यान दे कि आज कोई धनहीन है वो कभी किसी जन्म में बहुत उच्च कोटि का धनवान हो सकता है।

कभी कोई बहुत ज्ञानवान रहा हो सकता है तो कभी कोई अल्पज्ञानी भी रहा हो सकता है। सिद्धों की दृष्टि से देखा जाए तो कोई हीन और कोई अतिरिक्त नहीं होता। इसलिए आयारो में बताया गया कि आत्मा के संदर्भ में कोई हीन नहीं और कोई अतिरिक्त नहीं होता। इसलिए कोई ऊंच और नीच की बात नहीं है। संसारी अवस्था में देखें तो भी जो इस जन्म में पिता है, वह अगले जन्म में अपने पुत्र का पुत्र हो जाए।

इसलिए आयारो आगम में यह प्रेरणा दी गई कि कभी जीवन में उच्चता की स्थिति आ जाए अथवा कभी मंदता और नीचता की स्थिति आ जाए तो भी मानव हर्ष और विषाद में जाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। जिन्दगी में भौतिक अनुकूलता मिले तो ज्यादा खुशी नहीं मनाना और कभी भौतिक प्रतिकुलता प्राप्त होने से लगी तो बहुत ज्यादा दुःखी नहीं बनना चाहिए। जहां तक संभव हो दोनों ही परिस्थितियों में समता में रहने का प्रयास करना चाहिए।

साधु के लिए बताया गया कि साधु को भोजन मिले तो भी ठीक और नहीं मिले तो भी ठीक कहा गया है। अगर भोजन नहीं मिला तो साधु यह सोचे कि मुझे तपस्या का मौका मिल गया और मिल गया तो शरीर को पोषण मिल सकेगा। इस प्रकार का चिंतन कर साधु को समता में रहने का प्रयास करना चाहिए।

साधु को तो समता मूर्ति तो होना ही चाहिए, गृहस्थों को भी जहां तक संभव हो सके, समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। परिवार में कभी कोई कटु बोल दे तो भी समता और शांति रखने का प्रयास रखना चाहिए। परिवार में कलह की स्थिति न बने, ऐसा प्रयास करना चाहिए। समता रखने वाला बड़ा होता है। इसलिए साधु हो अथवा गृहस्थ उसे अपने जीवन में समता रखने का प्रयास करना चाहिए।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने गजसुकुमाल मुनि के आख्यान क्रम का वाचन किया। तदुपरान्त आचार्यश्री श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुआ कि आज भाद्रव कृष्णा अष्टमी का प्रसंग है। मैंने आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की आज्ञा से श्रीमद्भगवद्गीता व जैन आगम पर कई भाषण दिए थे। श्रीमद्भगवद्गीता में 18 अध्यायों में श्रीकृष्ण व अर्जुन का संवाद है। इन ग्रंथों से अच्छी बातें अपनाकर आगे बढ़ते रहने का प्रयास करें।

तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत तथा तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने पुरानी ढाल को प्रस्तुति दी।

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