धर्म- समाज

प्रवृत्ति करते हुए मानव रहे अनासक्त : आचार्य महाश्रमण

कर्म के बंधन में कषाय व योग की भूमिका को आचार्यश्री ने किया वर्णित

सूरत। प्रख्यात व्यापारिक नगरी सूरत को आध्यात्मिक नगरी के रूप में परिवर्तित कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, शांतिदूत, सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण ने सोमवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को आयारो आगम के माध्यम से मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जीवन जीता है। जीवन जीने के लिए प्रवृत्ति भी करनी पड़ती है। जीवन में कई कार्य करने पड़ सकते हैं, जिसके कारण मानव चिंता, मानसिक तनाव भी जा सकता है।

सामान्य आदमी की कैसी बार ऐसी स्थिति बनती है कि वह शांति से जी ही नहीं पाता है। पहली चिंता होती है कि भोजन-पानी का प्रबन्ध कैसे हो? इसके लिए आदमी को कितना प्रयास करता है। कहीं नौकरी, मजदूरी, फैक्ट्री, धंधा आदि-आदि कार्य में लग जाता है। भोजन-पानी की व्यवस्था हो जाती है तो फिर आदमी मकान की आवश्यकता महसूस करता है। फिर आदमी कपड़ों की चिंता करने लगता है और उसके लिए कितना-कितना प्रयास करना चाहिए। अब समाज में रहता है तो उसे आभूषणों की भी आवश्यकता होती है। फिर शादी-ब्याह, बच्चे आदि में लगा रहने वाला आदमी पूर्ण शांति कैसे प्राप्त कर सकता है। जीवन जीने की अनेक प्रकार की प्रवृत्तियां करता है।

आगम में कहा गया है कि तो वीर होता है, वह प्रवृत्ति करते हुए भी उसमें आसक्त नहीं होता, लिप्त नहीं होता। कर्मों के भारी बंधन में कषाय का बड़ा योगदान होता है। कषाय और योग कर्म के बंधन में विशेष भूमिका मानी गयी है। मन, वचन, काय की प्रवृत्ति योग और कषाय में गुस्सा, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, निष्ठुरता होते हैं। कर्मों के बंधन में कषाय और योग की भूमिका होती है। आदमी प्रवृत्ति करते हुए भी अनासक्त रहे तो पापों का बहुत भारी बंध नहीं हो सकता।

तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत तथा तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने पृथक्-पृथक् चौबीसी के गीत को प्रस्तुति दी। मुम्बई के विराग मधुमालती ने अपनी प्रस्तुति दी। आशापुरा मानव कल्याण ट्रस्ट-वापी के नानजीभाई गुर्जर ने आचार्य के दर्शन पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। बालिका तनीषा अब्बाणी ने भी अपनी प्रस्तुति दी।

वहीं दूसरी ओर रविवार को दोपहर में बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी युगप्रधान आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में दर्शनार्थ उपस्थित हुए। वे सूरत में तीन राज्यों के एक संयुक्त कार्यक्र में भाग लेने आए थे। उन्होंने आचार्य के दर्शन किए और पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री के साथ उनके अल्पकालिक वार्तालाप का भी क्रम रहा।

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