विश्व मैत्री का प्रतीक हो सकता है क्षमापना का पर्व : आचार्य महाश्रमण
मानवता के मसीहा ने चतुर्विध धर्मसंघ व समस्त मानव जाति से की खमतखामणा
वेसु, सूरत (गुजरात) : आठ दिनों के आध्यात्मिक, साधनात्मक समृद्धि को बढ़ाने वाले और अपनी आत्मा का कल्याण करने वाले महापर्व पर्युषण के शिखर दिवस भगवती संवत्सरी के बाद का सूर्योदय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में क्षमापना दिवस के रूप में समायोजित हुआ। एक दिवसीय उपवास के बाद संयम विहार परिसर में ही रहने वाले श्रद्धालु जनता के अलवा डायमण्डल सिटि सूरत में रहने वाले श्रद्धालु भी अपनी मन की गांठों को खोलने व क्षमापना पर्व को मनाने के लिए सोमवार को सूर्योदय से पूर्व ही पहुंच गए थे। जनाकीर्ण बने संयम विहार के महावीर समवसरण में सूर्योदय के आसपास मंच पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे प्रातःकाल का निरव वातावरण भी श्रद्धालुओं के जयघोष से गुंजायमान हो उठा।
शांतिदूत आचार्य ने श्रद्धालुओं को प्रातःकाल बृहद् मंगलपाठ प्रदान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने सभी संस्थाओं आदि की ओर से आचार्यश्री तथा समस्त चारित्रात्माओं से खमतखामणा की। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी व मुख्यमुनिश्री ने जनता को उद्बोधित किया।
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने क्षमापना दिवस पर उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया है कि क्षमापना से जीव को क्या मिलता है? उत्तर दिया गया है कि क्षमापना से प्रह्लाद भाव अर्थात् प्रसन्नता प्रकट होता है और सभी जीवों के प्रति मनुष्य मैत्री भाव उत्पन्न कर लेता है। इससे आदमी का भाव शुद्ध हो जाते हैं तथा इससे जीव निर्भय बन जाता है। हमने पर्युषण महापर्व की आराधना की। कल का दिन शिखर दिवस भगवती संवत्सरी के रूप में पदार्पण हुआ, जिसकी भी आराधना हुई। कितने के चौविहार व तिविहार आदि-आदि उपवास का क्रम भी रहा होगा।
हम सभी इंसान हैं तो वर्ष में बातचीत करने में, किसी अन्य प्रसंग में भी किसी से कटु व्यवहार हो सकता है। इस दिन से पुराने सभी बातों को धो दिया जाता है। क्षमा का यह पर्व बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह विश्वमैत्री की प्रतीक हो सकता है। मेरा संदेश है कि अंतर्राष्ट्रीय मैत्री दिवस भी आयोजित हो जाए तो पूरे विश्व में मैत्री का माहौल बने, ऐसा प्रयास किया जा सकता है। चौरासी लाख जीव योनियों से व्यावहारिक रूप में खमतखामणा का प्रावधान है।
मंगल प्रवचन के साथ ही आचार्यश्री ने खमतखामणा का क्रम प्रारम्भ किया तो सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखाजी, साध्वीवर्याजी से खमतखामणा करते हुए मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया। आचार्यश्री ने समस्त साध्वीवृंद, समणीवृंद से भी खमतखामणा की तथा मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। देश भर में प्रवासित साध्वियों व देश-विदेश में प्रवासित समणियों से खमतखामणा की। इस प्रकार आचार्यश्री ने मुमुक्षु बहनों, श्राविकाओं से खमतखामणा की।
आचार्यश्री ने पुरुष वर्ग में सर्वप्रथम मुख्यमुनिश्री से खमतखामणा करते हुए मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। मुख्यमुनिश्री ने अपने सुगुरु के चरणों की वंदना की। आचार्यश्री ने गुरुकुलवास में दीक्षा पर्याय में सबसे बड़े मुनिश्री धर्मरुचिजी, मुनिश्री उदितकुमारजी से खमतखामणा की। इसके बाद समस्त संतों से खमतखामणा करते हुए मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। बहिर्विहारी संतों से भी खमतखामणा करने के उपरान्त श्रावक समाज से भी खमतखामणा की। मुमुक्षु भाइयों, उपासक श्रेणी, सम्पूर्ण श्रावक समाज तथा केन्द्रीय संस्थाओं के पदाधिकारियों व उनके कर्मचारियों से खमतखामणा की।
जैन शासन के अन्य साधु-साध्वियों, धर्मगुरुओं, राजनेताओं आदि से भी खमतखामणा की। आचार्यश्री ने चारित्रात्माओं को एक-एक उपवास की आलोयणा प्रदान की तथा श्रावक-श्राविकाओं को एक वर्ष में तीन उपवास की आलोयणा बताई। परम पूज्य कालूगणी के महाप्रयाण के अवसर आचार्यश्री ने उनको श्रद्धा के साथ वंदन किया। तदुपरान्त साधु-साध्वियों ने बारी-बारी से आचार्यश्री से खमतखामणा की। तदुपरान्त साधु-साध्वियों ने आपस में खमतखामणा की। श्रावक-श्राविकाओं आचार्यश्री से तथा परस्पर भी खमतखामणा की।