धर्म- समाजसूरत

महात्मा नहीं, तो सदात्मा बनने का प्रयास करे मानव : आचार्यश्री महाश्रमणजी

सभा-संस्थाओं से जुटे लोगों ने भी अपने आराध्य के समक्ष दी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के पदार्पण और प्रवास से सूरत नगरी की फिजा ही बदल गई है। अक्सर अपने व्यापार से लाभ प्राप्त करने वाले लोग आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर, उनके दर्शन, उपासना आदि के माध्यम से नित्य आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

अक्षय तृतीया महोत्सव जैसे कार्यक्रम सहित अष्टदिवसीय प्रवास हेतु भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के अंतर्गत स्थित भगवान महावीर इण्टरनेशनल स्कूल परिसर में मंगल प्रवास कर रहे शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन, उपासना और मंगलवाणी का श्रवण करने हेतु श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ रही है। पूरा परिसर पूरे दिन जनाकीर्ण बना रह रहा है। अक्षय तृतीया महोत्सव जैसे संघप्रभावक और गौरवमयी कार्यक्रम के भव्य आयोजन के उपरान्त भी श्रद्धालुओं का पूरे दिन तांता लगा हुआ है।

महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आत्मा के आठ प्रकार बताए गए हैं- द्रव्य आत्मा, कषाय आत्मा, योग आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा, चारित्र आत्मा और वीर्य आत्मा। एक दूसरे वर्गीकरण के रूप में आत्मा के चार प्रकार बताए गए हैं-परमात्मा, महात्मा, सदात्मा और दुरात्मा।

परमात्मा वह आत्मा जो परम स्थान को प्राप्त हो गए हैं। जो मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं, सिद्धत्व को प्राप्त आत्माएं परमात्माएं हैं। वे संसार से मुक्त हैं। संसार में रहने वाली आत्माओं के तीन प्रकार में महात्मा है। साधु-संत आदि आत्माएं महात्मा होती हैं। अर्थात महान आत्माएं महात्मा होती हैं। आत्मा का तीसरा प्रकार है-सदात्मा। गृहस्थ जीवन में धार्मिक, भले, अहिंसा, ईमानदारी, संयम और नैतिकता का पालन करने वाले हैं, ऐसे लोग सदात्मा होते हैं। हिंसा, हत्या, लूट, दूसरों को कष्ट पहुंचाने वाली आत्माएं दुरात्मा होती हैं। दुरात्मा बनी आत्मा स्वयं का बहुत अधिक नुक्सान कर लेती हैं।

कहा गया है कि कोई यदि आपका गला भी काट दे तो वह ज्यादा नुक्सान की बात नहीं होती, क्योंकि गला काटने वाला तो वह आपके एक जीवन को खराब कर सकता है, किन्तु दुरात्मा बनी आत्माएं आदमी के कई जन्मों को खराब कर देने वाली होती हैं। दुरात्मा मनुष्य मृत्यु के समय पश्चाताप करता है। प्रत्येक आदमी महात्मा न भी बने तो उसे कम से कम सदात्मा तो बनने का प्रयास करना चाहिए।

सदात्मा (सज्जन) आदमी दूसरों में दोष नहीं निकालता। वह स्वयं की कमियों को दूर करता है। दूसरों के गुणों के प्रति प्रमोद भाव रखना, दूसरों के सुख से दुःखी नहीं होना, दूसरों के दुःख को देखकर अनुकंपा की भावना रखना, कोई अप्रिय बोल भी दे तो गुस्सा नहीं करना सज्जनता के गुण होते हैं। जीवन में सज्जनता के गुणों का विकास कर आदमी दुर्जन बनने से स्वयं को बचा सकता है। सज्जनता के गुणों का विकास होता है तो वह आदमी सदात्मा बन सकता है।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वी मधुबालाजी की सहवर्ती साध्वी मांजुलयशाजी व सूरत से संबद्ध साध्वी रुचिरप्रभाजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। तदुपरान्त तेरापंथ महिला मण्डल-सूरत ने गीत का संगान किया। तेरापंथी सभा-सूरत के अध्यक्ष  नरपत कोचर,  अमित सेठिया, अणुव्रत समिति के अध्यक्ष  विजयकांत खटेड़ व तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष अखिल मारू ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्य महाश्रमण अक्षय तृतीया प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुरणा व उनकी टीम ने वर्षीतप करने वाले सदस्यों से संदर्भित पुस्तक श्रीचरणों में अर्पित कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

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