धर्म- समाज

पर्यावरण की रक्षा करना हम सब का कर्तव्य

कांतिलाल मांडोत
ईश्वर द्वारा रचित प्रकृति ने जीवनसाथी जल और प्राणवायु भरपूर मात्रा में उन्मुक्त रूप से प्रदान किया है। आप और हम इस बात के साक्षी है कि हमे जल और वायु के लिए कोई कीमत नही चुकानी पड़ती है। हम अपने आवश्यकता के अनुसार जल और वायु का उपयोग करते आ रहे है। हमें पता है कि शहरों और गांवो के जीवन मे रात दिन का फर्क है। गांवो के अन्तरियाल क्षेत्र जंगल मे रहने वालों का जीवन शहरों में रहने वालों से तंदुरुस्त रहता है। गांवो के जंगल क्षेत्र के लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। अब प्रकृति में बढ़ रहा प्रदूषण मानवीय समाज को परेशान करने लगा है। स्वच्छ जल और शुद्ध वायु के लिए कोई भी कीमत चुकाने के लिए हर समय मनुष्य खड़ा है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने हमे इतना विवश कर दिया है कि जीने के लिए हमे ऑक्सीजन भी खरीदनी पड़ रही है। आर्थिक रूप से समृद्ध वर्ग तो जल और हवा आसानी से खरीद सकता है किन्तु गरीब सामान्य वर्ग के लिए जहा दो वक्त का भोजन कठिनाई से मिलता है। वहां इन्हें कैसे खरीद सकता है।

कोरोना की महामारी में हम देख चुके है । ऑक्सीजन की कमी से लोग कितने परेशान हुए थे। जो धनाढय व्यक्ति थे वह बच गए और मजबूर ,लाचार और गरीब व्यक्तियों ने दम तोड़ दिया। ऑक्सीजन देने वाले बरगद,नीम,पीपल जैसे वृक्षों की कटाई ने ही हमारा जीवन संकट में ला खड़ा कर दिया है। पर्यावरण को दूषित करने का हमारा ही हाथ है। लॉकडाउन में जब गाडिय़ों के पहिये थमे,उद्योग जगत बन्द हुआ और प्लास्टिक का उपयोग बन्द हुआ। तब पर्यावरण में हुए सकारात्मक प्रभाव को हमने महसूस किया। छतों पर हमने खुली हवा में सांसे ली। शायद इस पीढ़ी ने सुंदर दृश्य पहली बार देखा होगा। पेड़ पौधों को बर्बाद नही करे। निगम हर साल जंगलों में झाड़ झंखाड़ काटने के लिए दल को जंगलों में भेजते है। ये मुहिम रोकनी चाहिए। क्योंकि घास न केवल मिट्टी को झकडकर रखती है बल्कि वातावरण को ठंडा भी करती है। आप अनुभव के तौर पर जंगल मे जाकर बैठ जाइए ।

आप को सुखद अनुभव होगा। क्योंकि वहां भरपूर ऑक्सीजन मिलती है। एक शहर का अनुभव ताजा कीजिये। शहरों में प्रदूषण बढऩे से लोगों मे दम की तकलीफें बढऩे लगी है। पराली जलाने से भी वायु मंडल दूषित होता है। दरअसल,हवा में व्याप्त विषैले तत्व व्यक्ति के फेफड़ो में जहर भर देते है तो कोविड जैसे हालात में यह और भी खतरनाक बन सकता है। सिलेंडर वाले ऑक्सीजन की कमी तो भूल जाइए ,यदि आपको आम हवा में ऑक्सीजन मिल जाए तो भी खुशकिस्मत होगी। इस वर्ष सरकार को कई कदम उठाने होंगे। समय परिवर्तनशील है। हमे भी अपनी जीवनशैली संस्कृति परम्पराओ को पर्यावरण के अनुरूप कर खुद को ढालना होगा। हमारी प्राचीन सभ्यताओं को फिर से जीवंत करना होगा। मनुष्य को पर्यावरण के समीप रहना होगा।

हमारे पूर्वजो ने जो परम्पराए बनायीं, उसमें पर्यावरण और मानव का हित सम्मिलित था।यहाँ तक ही हमारे धर्म ग्रंथ पुराण,वेद व्रत त्यौहारों सभी मे पर्यावरण की महत्ता को स्वीकारा है।आज भी हमारे त्यौहार में शामिल है।वृक्ष में देवताओं का वास की महत्ता को स्वीकार कर पूजा अर्चना की जाती है। हम सब का कर्तव्य है कि पर्यावरण की रक्षा कर अपने और अपने भावी जीवन को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पर्यावरण को सुरक्षित रखने में योगदान करे। पेड़ों को काटने और कटाने के लिए किसी को प्रोत्साहित नही करना है। पर्यावरण की रक्षा कर संतुलित बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

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