भीतर बाहर स्वच्छ बनने की प्रेरणा देती नरक चतुर्दशी
धन तेरस के पश्चात आने वाली काली चौदस को भारतीय संस्कृति में नरक चतुर्दशी कहा गया है।पुराणों के अनुसार नरकासुर नाम का राक्षस प्राणियों को कष्ट देता था। स्थान स्थान पर गन्दगी,असूचि फैला देता,ऋषियो के यज्ञ स्थलों को अपवित्र कर देता। स्वर्ग में जाकर उसने देवताओ को भी परेशान किया। देव माता अदिति के कुंडल छीनकर ले गया।उसके उत्पातो से मनुष्य देव सभी परेशान हो गये।सबने मिलकर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण से प्रार्थना की ,है देव त्राहीमाम।
इस नरकासुर से हमारी रक्षा करो।तब भगवान ने नरकासुर का वध किया और उसके द्वारा फैलाई गई गन्दगी हड्डियों व मांस के ढेर को साफ करके भूमि को स्वच्छ किया गया।चारो तरफ सफाई अभियान चलाकर धरती को साफ सुथरी मनुष्यों के रहने योग्य बनाया।उस दिन की स्मृति में इस तिथि का नरक चतुर्दशी नाम प्रचलित है।
पौराणिक कथाएं,प्रतीकात्मक होती है, उनका सामाजिक,राष्ट्रीय एवं आध्यात्मिक प्रतीक होता है और उस प्रतीक को सूचित करने के लिए,एक विशेष लक्ष्य को उदघाटित करने के लिए धार्मिक एवं पौराणिक रंग में रंग दी जाती है,ताकि लोग नीरस बात को सरसता के साथ समझ सके।आध्यात्मिक एवं सामाजिक कृत्य को धर्म के रूप में स्वीकार कर सके।
वर्षा के कारण गांव,नगर,गली,सड़क,राजमार्ग चारो तरफ गन्दगी,कीचड़ सीलन आदि की भरमार होती है। उस कारण डांस,मच्छर आदि अनेक प्रकार के जहरीली कीट पतंग पैदा हो जाते है।जगह जगह पानी सड़ता है। कूड़ा सडांध पैदा करता है और इस तरह के जहरीले मच्छर, कीड़े अंडे देते है बीमारिया फैलती है। डेंगू बुखार का प्रकोप बढ़ता है।इस प्रकार सकारात्मक बीमारियां वर्षा ऋतु के बाद फैलती है।
गांवो शहरो का वातावरण एकदम नरक जैसा गन्दा हो जाता है।उस नारकीय गन्दगी को दूर करने के लिए नरकासुर को मारना पड़ेगा।अर्थात गन्दगी दूर करके स्वच्छता सफाई करना ही नरकासुर का नाश करना है।जहाँ प्राणी को सुखचैन आनन्द नही मिलता हो,उस स्थान को नरक कहते है।
जहा निरन्तर अंधकार रहता है।सूर्य की किरणें नही पहुंचती है। जहाँ हर समय कीचड़ चिक्खल रहता है। भूमि में सडांध दुर्गंध आती हो और चारो तरफ गन्दगी के ,असुचि के ढेर लगे हो। जहा दुर्गंध उछल रही हो,जहाँ के वातावरण में क्षणभर भी ठहरने को मन नही होता हो। ऐसे अपवित्र स्थान को नरक कहा गया है। अपने नगर चली भवन आदि जहाँ पर भी इस प्रकार की गन्दगी हो,वह स्थान वास्तव में नरक ही माना जाता है।
नहा धोकर कपड़े साफ सुथरे पहनते है,घरों पर सफेदी व कीमती रंग रोगन करते है,किंतु दूसरी तरफ उनके रसोईघर के पास कूड़ेदान में मक्खी मच्छर भिनभिनाते रहते है। नालियों पर कूड़े के ढेर लगे रहते है। जहाँ से निकलना भी मुश्किल होता है। यह कैसी सफाई है?सफाई में भी विवेक होना चाहिए। अपना घर,अपना मुहल्ला अगर साफ रखने की आदत बन जाये तो गन्दगी अपने आप दूर हो जाएगी। यह तो बाहरी सफाई की बात।केवल बाहरी सफाई करने से ही नरक चतुर्दशी की सार्थकता नही होती।बाहरी सफाई के साथ मन की सफाई,जीवन की सफाई भी जरूरी है।
मन मे अपवित्र विचार भरे हो,दुसरो की निंदा,चुगली,ईर्ष्या का कूड़ा पड़ा हो,काम क्रोध की असुचि रही हो तो मन पवित्र कैसे होगा?दीपावली की लक्ष्मी पूजा करना हो तो उसके लिए मन की सफाई करना भी जरूरी है।तेरस के पहले पहले हमने घर दुकान सब साफ सुथरे कर लिए,लीप पोत, झाड़ बुहारकर कचरा फेंक दिया,यह तो एक तरह की तैयारी हो गई।फिर तेरस आई,तो कुछ परोपकार का,सेवा का,दीन दुःखियों के दुःख दर्द दूर करने का संकल्प किया,सेवा की धन तेरस मन गई।
अब विचारो की शुद्धिसे,शुभ भावनाओ से मन को और मांजकर उज्ज्वल कर लिया तो नरक चतुर्दशी सार्थक हो गई।यह दोनों पर्व दीपावली की तैयारी के है।दीपावली कैसे मनानी है यह इसका साफ संदेश इन दोनों पर्वो में बता दिया है।नरक के कारणों से बचने का संदेश है नरक के कारणों का चिंतन।मन की गन्दगी, विचारो की अपवित्रता तो नरक का कारण क्या,प्रत्यक्ष नरक है।
नरक चतुर्दशी के दिन दोनों पक्षो पर विचार करे,बल्कि जीवन के प्रत्येक पक्षो पर विचार करे। तन को,मन को,जीवन को।घर परिवार को,समाज व राष्ट्र को नरक से बचाने का प्रयास करे। बाहरी गन्दगी से भी मुक्त हो।जहा गन्दगी पड़ी हो,असुचि रक्त आदि दाग धब्बा लग गया हो,तो उसे साफ किये बिना स्वास्थ्य स्वाध्याय करना भी मना है।असूचि से स्वाध्याय करना मना है। अस्वच्छता में जीवोत्पत्ति होती है। जीवोत्पत्ति में हिंसा होती है। रोग पैदा होते है। जैन धर्म मे सफाई,स्वच्छता, शुद्धता पर उतना ही ध्यान दिया गया है जितना जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
यह नही कि बार बार मिट्टी से मल मलकर नहाओ,गंगा में डुबकियां लगाओ या देश की जलसंपदा का दुरुपयोग कर व्यर्थ बहाओ और मन को मैला रख विचारो को अपवित्र रखो।हमारे जैन फिलोसोफी में तन की स्वच्छता, घर की स्वच्छता, मन की स्वच्छता सबका संतुलित विचार है और इस समग्र स्वच्छता के विवेक का यह अवसर है।मन से नरकमिटाओ,विचार से नरक दूर करो और घर से भी नरक दूर करके चतुर्दशी की भावना के दूसरे आदर्श को सार्थक करो।
( कांतिलाल मांडोत )