धर्म- समाज

महापुरुषों से हमारी संस्कृति गौरवान्वित है, कार्तिक पूर्णिमा गरिमामय दिवस

आज कार्तिक पूर्णिमा है। चातुर्मास की समाप्ति का दिवस है। आज का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज सत्पुरुषों का संबंध इस दिन के साथ जुड़ा हुआ है। हमारी संपूर्ण संस्कृति पर इनका उपकार है । उपकारी जनों को याद करना ,कृतज्ञता है। आज के इस पावन प्रसंग पर सत्पुरुषों का मंगल स्मरण करके मानवता के हित में कुछ विशिष्ट संपादित करें।आज जिन महापुरुषों का जन्म हुआ है उनको याद कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करे।

गुरु नानकदेव

मानवता के मूर्तरूप नानकदेव का जन्म भी कार्तिक पूर्णिमा को ही हुआ था। वे गरीबो के मसीहा थे। उन्होंने ज्ञान, भक्ति और प्रेम का संदेश दिया। अहिंसा धर्म का प्रचार करते हुए कहा था कि जो खान पान को शुद्ध रखकर प्रभु भजन करता है। उसका जीवन सार्थक सफल हो जाता है। उनकी वाणी है-जो रत लगे कपड़े जापा होवे पलित। जो रत पीवे मानुषा, तीन क्यो निर्मल चित। अर्थात कपड़े पर खून लगने से कपड़ा गन्दा हो जाता है, वही जब मनुष्य पीवेगा तब चित निर्मल नही रहेगा। इसी प्रकार उन्होंने संगत और पंगत की सीख देते हुए कहा है-संगत करो तो साधु की,पंगत करो तो लंगर की।

अर्थात साधु संगत में सच्ची सीख मिलती है और लंगर में बिना भेद भाव सभी एक ही पंगत में बैठते है। संगत और पंगत का अर्थ है।पहले भजन करो,फिर भोजन करो। भजन और भोजन में भेदभाव नही होना चाहिए। भूखा द्वार पर हो तो उसे भोजन करना चाहिए। भारतीय संस्कृति का यही आदर्श है।

धर्मप्राण लोंकाशाह

धर्मप्राण क्रांतिकारी वीर लोंका शाह जैसी महान आत्मा आज ही के दिन अवतरित हुई। उस युग मे धार्मिक क्षेत्र के गहन अंधकार परिव्याप्त था। धर्म के नाम पर कई तरह के पाखंड और आडम्बरो को पुष्ट किया जा रहा था। लोंका शाह ने जब यह सबकुछ देखा तो उनका अंतर उद्धवेलित हुए बिना नही रहा। उन्होंने शाश्त्रो का लिपिकरण करते हुए गहरा अध्ययन अनुशीलन किया एवं निर्ग्रन्थ संस्कृति में तेजी से प्रविष्ट होते जा रहे शिथिलाचार और विकृत आधार का उन्मूलन करने के लिए एक क्रान्त द्रष्टा के रूप में स्वयं प्रस्तुत किया। लोंका शाह श्रावक ही थे, पर उनका आत्मबल अत्यंत प्रखर था। वे तत्वज्ञ थे। साथ ही उनके जीवन मे व्रतों की तेजस्विता एवं निर्मलता थी। संयम साधना के क्षेत्र में विकृतियों का पोषण उन्हें ठीक नही लगा। धर्म और क्षेत्र में जो आडंबर खुलकर चल रहे थे, उन्हें दूर करने के लिए उन्होंने सिंहनाद किया। उनके सिंहनाद में सत्य का बल था, किसी भी व्यक्ति या परस्पर विशेष के प्रति दुर्भाव नही था।

व्यक्ति जब सत्य का आश्रय लेकर चलता है तो उसका प्रभाव होता ही है और ऐसा ही हुआ। कहा जाता है कि लोंका शाह के सिंहनाद से यतियों के द्वारा की जा रही विकृत स्थापनाओं पर विराम लगने लगा,पर लोंकाशाह को कदम कदम विरोध का सामना भी करना पड़ा। लौंका शाह की प्रेरणा से अनेकों गृहस्थों ने दीक्षा ग्रहण की। अनेकों यतियों ने अपनी विकृत मान्यताओं में परिष्कार किया। समय आने 6 पर स्वयं लौंका शाह ने अपने अनेकों साथियों के साथ धर्म और परम्परा की रक्षा के लिए संयम ग्रहण किया। आध्यात्मिक जगत में क्रांति आई।लौंका शाह ने प्राणों का उत्सर्ग किया,पर उन्होंने विकृतियों के साथ एक क्षण के लिए भी समझौता नही किया।

आचार्य हेमचन्द्र

महान ज्योतिर्धर आचार्य हेमचन्द का जन्म दिन भी कार्तिक पूर्णिमा ही है। हेमचन्दाचार्य के नाम से सम्पूर्ण जैन जगत परिचित है। साहित्य के क्षेत्र में आचार्य हेमचन्द्र का जो महान योगदान रहा है,वह एकदम अभूतपूर्व एवं अद्वितीय है। जैन व्याकरण,न्याय,कोश ,हेमलिंगनुशासन जैसे ग्रंथो की रचना के करके उंन्होने बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की। साहित्यिक, राजनीतिक एवं जैनधर्म के प्रचार प्रसार में आचार्य हेमचन्दाचार्य की विशिष्ट भूमिका रही है। सिद्धराज जयसिंह और सम्राट हेमचन्द के जीवन से जुड़े अनेकों प्रसंग है।

श्रीमद राजचन्द

श्रीमद राजचन्द का नाम भी आज की पूर्णिमा के साथ जुड़ा हुआ है। वे गृहस्थ जीवन मे थे,किंतु किसी संत से उनका जीवन कम महत्वपूर्ण नही था। उन्होंने आत्मतत्व की खोज में अपने आपको सर्वात्मना समर्पित कर दिया। गृहस्थ में रहते हुए एक विशिष्ट जीवन जीया। उनके जीवन के कण कण ने अध्यात्म समाया हुआ था। जन्म,जीवन और मरण को,साधना से जुड़कर उन्होंने सार्थक कर डाला। श्रींमद राजचन्द्र वे जवाहरात के व्यापारी थे। कहा जाता है कि एकबार व्यापारी ने सौदा कर लिया था। अमुक समय मे जवाहरात ले लूंगा। जब देने का समय आया तब बाजार में भाव बढ़ गया, इससे श्रीमद राजचन्द को बहुत अधिक मुनाफा होने वाला था, पर जिससे सौदा निश्चित हुआ, बेचारा वह तो एकदम नष्ट ही हो जाता। इसलिए अत्यंत घबराया हुआ था।

श्रीमद राजचन्द्र दुकान पर बैठे हुए थे, वे सारी स्थिति को तुरन्त समझ गए। उन्होंने उस व्यक्ति को अश्वसस्त करते हुए कहा -भैया तुम घबरा रहे हो,तुमारी घबराहट स्वाभाविक है पर घबराओ मत। इस दस्तावेज का कोई अर्थ नही है।जाओ तुम आराम से अपना व्यापार करो। राजचन्द दूध पी सकता है पर किसी का खून नही। यह कहते हुए उन्होंने दस्तावेज के टुकड़े टुकड़े कर दिए। महात्मा गांधी जी के जीवन पर श्रीमद राजचन्द का अमिट प्रभाव पड़ा तथा उन्होंने उसे गुरु के रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार आज के दिन कार्तिक पूर्णिमा कई संतपुरुष इस धरती पर हुए है।

इन सत्पुरूषों ने हमारी संस्कृति गौरवान्वित है। हम इन सभी का आस्था और आदर के साथ स्मरण कर रहे है। इन सत्पुरूषों के द्वारा निर्दिष्ट पथ पर हम भी अपने आप को गतिशील करके जीवन को भव्यता प्रदान करे। जीवन सद्गुणों से सुसज्जित बनता है। जो भी इन महापुरुषों का अनुकरण करेगा, उनका जीवन महान बनेगा। विशिष्टता ग्रहण करेगा।


( कांतिलाल मांडोत )

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