
सम्यक् श्रद्धा है साधक की पहली कसौटी : आचार्य महाश्रमण
चतुर्मास प्रवास स्थल से ही आचार्य ने श्रद्धालुओं को कराया अमृतवाणी का रसपान
कोबा, गांधीनगर (गुजरात) : गुजरात राज्य में लगातार दूसरे चतुर्मास के लिए कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में प्रवासरत जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि को प्राप्त करने के देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पहुंचे हुए हैं। धर्म की विशेष आराधना, अपने गुरु की निकट उपासना, मंगल प्रवचन श्रवण के साथ पूरे दिन धार्मिक गतिविधियों से जुड़े रहने के इस सुअवसर का हर श्रद्धालु लाभ उठाने को आतुर नजर आ रहा है। अहमदाबादवासी तो ऐसे सौभाग्य का पूर्ण लाभ उठा रहे हैं। आचार्यश्री का प्रवास स्थल हो अथवा प्रवचन स्थल, सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त जनाकीर्ण नजर आ रहा है। आचार्यश्री भी यथावसर श्रद्धालुओं को मंगल आशीष व पावन पाथेय से लाभान्वित करा रहे हैं।
सोमवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के निर्धारित समय के आसपास तीव्र वर्षा होने के कारण आचार्यश्री का ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में पधारना संभव नहीं हो पाया तो आचार्यश्री ने प्रवास कक्ष से ही लोगों को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराया। तकनीकी व्यवस्थाओं के माध्यम से प्रवचन पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री की मंगल वाणी का श्रवण व दर्शन का अवसर प्राप्त किया।
प्रवास कक्ष से ही शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि श्रद्धावान व्यक्ति आज्ञा के अनुसार अनुसरण करता है। साधना के क्षेत्र में श्रद्धा का भी बहुत महत्त्व है। अगर श्रद्धा न हो, मोक्ष के प्रति रुचि न हो, कोई आध्यात्मिक आकर्षण नहीं है तो वह आदमी कैसे अध्यात्म के क्षेत्र में आरोहण कर सकेगा। इसलिए साधक की पहली कसौटी होती है कि साधक में सम्यक् श्रद्धा हो। सम्यक् श्रद्धा व सम्यक् रुचि होती है तो धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ा जा सकता है। आगम अध्ययन के प्रति भी श्रद्धा और रुचि होती है तो कुछ सहयोग मिल जाने से आदमी आगम के ज्ञान में आगे बढ़ सकता है। जिस कार्य के प्रति श्रद्धा और निष्ठा हो तो वह कार्य सफलता को प्राप्त हो सकता है। इच्छा और श्रद्धा से किया जाने वाला उपवास अथवा अन्य किसी प्रकार की तपस्या का अच्छा प्रभाव होता है। अब कोई कोई परीक्षा में प्रतिभाग ही नहीं करता, उसकी उसमें रुचि ही नहीं है तो वह भला उस क्षेत्र में कैसे आगे बढ़ सकता है।
इसलिए आगम में कहा गया है कि आदमी श्रद्धा व आज्ञा से चले तो वह मेधावी बन सकता है। आगम वाणी को आधार मानकर धर्म के रास्ते पर चलें तो मानव जीवन का कल्याण हो सकता है। चोरी नहीं, झूठ-कपट नहीं, हत्या नहीं, इन्द्रियों का असंयम नहीं है तो आदमी का भला क्या नुक्सान होगा। अच्छा संयमयुक्त जीवन जीना भी तो अच्छी बात है और यदि पुनर्जन्म है तो फिर आदमी का जीवन भी अच्छा हो सकता है। इसलिए आयारो में कहा गया है कि श्रद्धा हो और आज्ञा के अनुसार चलने वाला हो तो कल्याण संभव हो सकता है। कई बातें तर्क से समझ में आती हैं तो कई बातों के लिए आज्ञा की बातों पर विश्वास कर स्वीकार किया जा सकता है। जहां अपार श्रद्धा हो जाती है, वहां आज्ञा सहर्ष शिरोधार्य हो सकती है। इसलिए आदमी को अपने भीतर आस्था व श्रद्धा के भाव को पुष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए।