धर्म- समाज

मानवीय मूल्यों में सहिष्णुता की भूमिका

जिसके जीवन मे सहिष्णुता का भाव है,वह कभी भी असफल नही होता।जो सहिष्णु है वह स्वयं तो सफल होता ही है, उसके संसर्ग से वातावरण की अराजकता भी समाप्त हो जाती है। परिवार ,समाज,संघ और राष्ट्र सर्वत्र सहिष्णुता अपेक्षित है। जीवन मे अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों की अवस्थिति है। अनुकूकता में तो प्रायः हर एक सहिष्णु दिखाई देता है,पर प्रतिकूल परिस्थितियों में सहिष्णुता के भाव को बरकरार रखना बड़ी बात है।

भगवान महावीर ने साधु और श्रावक को सबसे पहले सहिष्णु होने का संदेश दिया है। क्षमा,उपशमन,समता आदि शब्द सहिष्णुता की और इंगित करते है। क्रोध और अहंकार आत्म विकास में अवरोधक एवं घातक दुर्गुण है। क्रोधी एवं अहंकारी असहिष्णु होते है और ऐसे व्यक्ति न केवल अपना अपितु अन्यो का अनिष्ट करने में भी कभी नही चूकते। जागरूक जन वे है,जो अपने मन मे क्रोध और अहंकार प्रविष्ट होने का अवसर ही नही देते है। सहिष्णुता का अर्थ कायरता है यह लोगो का भ्रम है।

गुजरात के अहमदाबाद में देराणी जेठानी की विकृत शख्स ने हत्या कर दी। यह हवस में अंधा बना था।हवस की तृप्ति नही होने पर क्रोध में दो महिलाओं की हत्या कर दी जाती है।ऋषिकेश की एक होटल में घर वाले शादी के लिए राजी नही हुए तो दोनों ने खुदकुशी कर ली। अररिया के भीखापुर में एक शिक्षामित्र की गोलीमार कर हत्या कर दी ।पटना के नोबतपुर में दहेज मांग रहे शख्स की हत्या कर दी।

सरहानपुर में बोरे में मिली लाश का कोई सुराग नही मिला।जो ऐसा सोचते है उसकी सम्यक सोच नही है। ये सभी घटना में सहिष्णुता का अभाव देखा जा सकता है।सहिष्णुता से जुड़ा व्यक्ति कायर नही,अपितु शूरवीर होता है। अहंकार और क्रोध में आकर किसी का संसार बर्बाद करना और स्वयं के जीवन को दांव पर लगा दिया जाता है क्योंकि क्रोध क्षणिक पागलपन है। अपकारी के प्रति उपकार की भावना यही तो जीवन का उदात्त दृष्टिकोण है।जो प्रभाव सहिष्णुता अथवा समता का होता है,वह असहिष्णुता और विषमता का नही होता है। लोग कहते है कि जहर का शमन जहर से होता है। वह असहिष्णुता और विषमता का नही होता। कई लोगो के द्वारा प्रायः सुनने में आता है कि कांटा कांटे से निकलता है एवं जहर का शमन जहर से होता है। यह सिद्धान्त मानवता के परिपूर्ण जीवन के साथ मेल नही खाता।

जहर से जहर से शमन आयूर्वेद की एक पद्धति हो सकती है,पर वह धर्मयुक्त जीवन की शैली कभी भी नही हो सकती। भारतीय दर्शन महान है। इसके कण कण में सहिष्णुता और उदारता का समावेश है। यहा का दर्शन बोलता है ईंट का जवाब ईंट से देना पागलपन है। अभी के परिपेक्ष्य में जो लोग रात दिन असहिष्णुता की चिनगारियों ने झुलसते जी रहे है,उन्हें सहिष्णुता के आनंद की अनुभूति नही होती है। सहिष्णुता से जुड़कर जीना सीखिए। आप अनुभव करेंगे कि किस तरह तनावों एवं संघर्षो का विलय हो रहा है एवं पारस्परिकता के पवित्र भाव को पुष्टि मिल रही है।

( कांतिलाल मांडोत )

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