इन्द्रिय विषय बनते हैं लोभ के हेतु : आचार्य महाश्रमण
आयारो आगम के दूसरे अध्ययन से आचार्यश्री ने बहाई ज्ञानगंगा
सूरत (गुजरात) : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आज जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि इस आगम के दूसरे अध्ययन में बताया गया है कि जो गुण है, वह मूल स्थान है और जो मूल स्थान है, वह गुण है। इन्द्रियों के विषय गुण कहलाते हैं। इन्द्रिय विषय आधार हैं। जैसे श्रत्रेन्द्रिय का विषय शब्द, घ्राणेन्द्रिय का विषय गंध, रसनेन्द्रिय का विषय रस, चक्षुरेन्द्रिय का विषय रूप और स्पर्शनेन्द्रिय का विषय स्पर्श। आदमी के पास पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं। इसी प्रकार पांच कर्मेन्द्रियां भी बताई गयी हैं।
आदमी कानों के द्वारा सुनता है, आंखों से देखता है, जिह्वा से स्वाद चखता है, त्वचा से स्पर्श होता है। इस प्रकार पाचों इन्द्रियों के अपने-अपने विषय और अपने-अपने व्यापार होते हैं। ये इन्द्रियों के विषय लोभ के हेतु बनते हैं। इन पांच विषयों के प्रति प्राणी का आकर्षण, आसक्ति और लोभ होता है। कषाय का चौथा अंग लोभ को बताया गया है। लोभ मोहनीय कर्म के परिवार का सदस्य है। आदमी को पाप कर्मों का बंध कराने वाला मोहनीय कर्म ही होता है। लोभ तो दसवें गुणस्थान तक रहने वाला होता है।
गृहस्थों में पैसे प्रति लोभ होता है, मान-सम्मान की मांग, समाज में ऊंचे स्थान की मांग भी एक प्रकार की लोभ की चेतना का प्रतीक बन सकता है। इस लोभ के वशीभूत होकर मनुष्य कुछ अकरणीय कार्य भी कर सकता है। लोभ के कारण आदमी हिंसा में भी जा सकता है, झूठ भी बोल सकता है। आदमी को जितना संभव हो सके, लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष की चेतना का विकास हो तो आदमी लोभ से बच सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने भी जनता को संबोधित किया। बालिका प्रिया सोनी ने चौबीसी के गीत का संगान किया।