महावीर जयंती पर विशेष : जन जन के श्रद्धा केंद्र अंहिसा के जाज्वल्यमान नक्षत्र और अनेकान्तवाद के प्रणेता भगवान महावीर
यह आर्यक्षेत्र जिसे हम भारत नाम से संबोधित करते है,सचमुच ही पुण्यभूमि है। जितने महापुरुष इस क्षेत्र में हुए है,उतने अन्य क्षेत्र में नही हुए है। यह तीर्थंकरों की जन्मभूमि है तो अवतारों की कर्मभूमि है। इसी पुण्यधरा पर प्रभु महावीर का जन्म हुआ। जन मन के श्रद्धा केंद्र दलित पीड़ित के उद्धारक अहिंसा के जाज्वल्यमान नक्षत्र अपरिग्रह के आराधक और अनेकान्तवाद के प्रचेता प्रणेता महावीर का नाम आते ही ह्दय में आनन्द की उर्मिया उठने लगती है। जिस क्षेत्र में हम रह रहे है ,उसी क्षेत्र में वह महान आत्मा परमात्मा बनने बनाने और विश्व का कल्याण करने आई थी।
महावीर तो आज भी है
भगवान महावीर की परंपरा तो अत्ति प्राचीन है। ऋषभदेव से चली जैन की रश्मि महावीर तक आते आते ज्योति बन गई। वे इस काल के अंतिम तीर्थंकर कहलाए। उनके सिद्धान्त आज भी चिन्तको को सोचने के लिए विवश करते है। छब्बीसों वर्ष पूर्व महावीर ने कैसा अद्भभुत संदेश दिया। उस समय चाहे सिद्धांतो की आवश्यकता रही हो या नही,लेकिन आज के युग मे महावीर और उनके सिद्धांतो का सार्वजनिक एवं सार्वदेशिक महत्व है।अपने अक्षुण्ण और अबाधित सिद्धांतो के रूप में महावीर आज भी हमारे बीच रहते है अहिंसा,अपरिग्रह और अनेकान्तवाद की त्रिवेणी महावीर ने ही इस भारत भू पर प्रवाहित की थी।यह त्रिवेणी विश्व मैत्री एवं विश्व समता की प्रतीक बनकर आज भी प्रवाहित है। साम्यवाद और समाजवाद की आधारशिला है।
धर्म सम्मेलन विफल क्यो?
आजकल विश्व धर्म सम्मेलन और विश्व मैत्री दिवस जैसे आयोजन किये जाते है। लोगो को निकट लाया जाता है। बड़ी बड़ी घोषणाएं होती है,मगर सोचने और समझने की बात यह है कि आज हमारे सारे प्रयास निरर्थक जा रहे है। विश्व मैत्री की बात करने वालो को चाहिए कि वे घर परिवार ग्राम नगर राज्य देश मे पहले मैत्री भाव का संचार करे। उसके बाद ही विश्व मैत्री के प्रयास सफल एवं सार्थक होंगे।आज भाषा ,क्षेत्र जाति जल शिक्षा आदि के लिए संघर्ष हो रहे है। हमारे प्रयास अभी अधूरे है। हमने महावीर के सिद्धांतो को पढ़ा है,सुना है, मगर उन्हें आत्मसात नही किया है।
अहिंसा मात्र भाषणों में
महावीर की अहिंसा शक्ति को अपना कर महात्मा गांधी ने अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त करने हेतु तलवार नही उठाई। गोली बारूद का सहारा नही लिया। बल्कि अहिंसा की शक्ति को जगाया। लाखो लोग उनके संकेत पर घरो से निकल आये। अनशन और उपवास करके भगवान ने प्रार्थना की कि आतताइयों के मन को बदलो, उन्हें सत्य का बोध दो,ताकि वे हमारे भारत को सौंप कर चले जाएं। आखिर वही हुआ,अहिंसा की जीत हुई। हम आज भी अपनी समस्याओ का हल अहिंसा में खोजते है।
विनोबा भावे का आंदोलन सर्वोदय,जाना पहचाना आंदोलन था। उनके भूदान यज्ञ में अधिक भूमि वाले की धरती का दान मांगकर भूमिहीनों को भूमि दी गई। इससे खेतिहर मजदूरों को कुछ राहत भी मिली,पर यह सर्वोदय एक शब्द में सिमटकर रह गया। इससे हजारो वर्ष पूर्व महावीर ने हमको,आपको और सर्वोत्कृष्ट की दृष्टि दी। तब समाज मे मिथ्यात्व और अज्ञान का अंधकार था। मानो महावीर सूर्य का उदय हुआ और हर घर,हर ह्दय का अंधकार दूर हुआ।
महावीर की दृष्टि में सर्वोदय
उस युग मे अधर्म ही धर्म था। संस्कृति का स्थान विकृति ने ले लिया था। नारी का सम्मान नही था। अपितु उसका घोर अपमान स्था। उसे भेड़ बकरी की तरह बेचा और खरीदा जाता था। महावीर ने छह महीने तक आहार का त्याग कर समाज को दृष्टि देने के लिए किया।सबकी आंखे खुली। समाज त्राहि त्राहि कर उठा वह राजकुमारी चन्दना कहलाई। उसकी बेडिया तो कटी, मगर भगवान महावीर ने उसे एक समर्थ साधन धर्म दिया। जिसे वह कर्म के बंधनों को काट सकी, वह जन्म मरण से मुक्त होकर नारी जगत को एक दिशा दे गई।
नारी जागरण का जैसा बिगुल महावीर ने बजाया।उनके युग मे सभी को मुक्त होने का अधिकार नही था। यज्ञों में बलि देने को धर्म माना जाता था । कैसा भयावह वातावरण था महावीर के युग मे। चारो और अंधेरा ही अंधेरा था। मानो लोग दृष्टिहीन थे। महावीर सर्वदर्शी और सर्व समर्थ बने।वे केवली बने। उनके सामने कोई पर्दा नही था।उनकी सर्वदयी दृष्टि का विस्तार होता गया।सभी का उद्धार करने की क्षमता महावीर में थी और है। महावीर ने सबको एक शक्ति दी कि तुम किसी के आश्रित या मुहताज नही हो। तुम स्वयं अपना उद्गार करोगे। तुम्हारा कल्याण कोई दूसरा नही कर सकता। हाथी को हाथी ही दलदल से निकाल सकता है।
( कांतिलाल मांडोत )