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आम आदमी की बजट से क्या होती है अपेक्षाएँ

शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के साथ सस्ती हो सभी मूलभूत आवश्यकताएं

बजट को हमेशा देश का आर्थिक आईना माना जाता है। जिसमें देश का आर्थिक परिदृश्य देखा जा सकता है। बजटरूपी आईने में जो देश की छबि देखी या दिखाई जाती है उसके पीछे मेकअप भी होता है। देश का आर्थिक परिदृश्य बजट में पेश किए गए आंकड़ों से ज्यादा जमीनीस्तर विकास का चश्मा उतारकर वास्तविक स्थिति देखी जा सकती है।

विकास के फल जब तक देश के सीमांत व्यक्ति तक नही पहुँचता तब तक सामाजिक कल्याण की अवधारणा मूर्त स्वरूप नही ले सकती। देश मे आज भी 67 प्रतिशत जनता प्रतिमाह खाद्यान्न रियायती दरों पर ले रही हो, वैश्विक भूख निर्देशांक 2021 के अनुसार 116 देशों में भारत का स्थान 101वां स्थान हो (भारत के बाद 102वें स्थान पर लाइबेरिया और 103वे स्थान पर अफगानिस्तान है।) जिस देश की मुद्रा का मुल्य निरंतर घटता जा रहा हो ऐसे देश मे व्यापारी-उद्योगपति और आम जनता की केंद्रीय बजट से क्या अपेक्षा हो सकती है इसका अनुमान सरकार आसानी से लगा सकती है। और इसी को ध्यान में रखकर सरकार को बजट में प्रावधान करने चाहिए।

देश आजादी का अमृतमहोत्सव मना रहा है। आजादी के इस 75 वर्षों का लेखाजोखा बस इतना है कि, 80 करोड़ जनता अनाज के लिए लाइन में खड़ी है और विश्व मे सर्वाधिक अमीरों की सूची भी इसी देश मे है। और इस अमृतमहोत्सव पर यह बात विचारणीय है।

केंद्रीय बजट से यही अपेक्षा है कि, आर्थिक विकास के दौड़ के इस अंधे पूँजीवादी बाजार के युग मे सामाजिक कल्याण की अवधारणा को वास्तविक एवं जमीनीस्तर की हकीकत जानकर उसे वास्तविक मूर्त स्वरूप देने के लिए प्रामाणिक प्रयत्न करने चाहिए। तभी जाकर आर्थिक समानता स्थापित करने का स्वतंत्र भारत का स्वप्न साकार हो सकता है। सामाजिक कल्याण की अवधारणा को प्रामाणिक प्रयत्न करके जब उसे जमीनीस्तर पर लागू करेंगे तभी आर्थिक विकास का स्वाद देश सामान्य और सीमांत व्यक्ति चख सकेगा।

देश की 80% सामान्य जनता के जीवनस्तर में सुधार करने के लिए गुणवत्तापूर्ण मुफ्त शिक्षा, उच्च सुविधायुक्त स्वास्थ्य सेवाएँ, कम से कम निर्वाह वेतन मिले इतना और ऐसा रोजगार और महंगाई की मार से राहत मिले इसलिए सस्ती मूलभूत आवश्यकताओ तक देश की सामान्य जनता की पहुँच बने ऐसे प्रावधानों की अपेक्षा इस बजट से करते है।

शिक्षा किसी भी देश के विकास की नींव होती है। 2011 के अनुसार देश का साक्षरता दर 73 प्रतिशत है। परंतु शिक्षा में निजीकरण के बढ़ते कदमों के कारण शिक्षा सामान्य जनता की आर्थिक क्षमता की तुलना बहुत आगे चल रही हैं। सरकार को शिक्षा पर हो रहे खर्च में वृद्धि करनी चाहिए। देश के विकास के लिए भौतिक साधन संसाधन की जितनी आवश्यकता होती है उससे कई अधिक आर्थिक विकास के लिए देश को मानव संसाधन की जरूरत होती है। सरकार को व्यावसायिक शिक्षा की पहुँच पर अधिक खर्च करना चाहिए। इसलिए केंद्रीय बजट में ऐसे प्रावधान हो कि शालेय शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा सामान्य जनता की आर्थिक क्षमता में आ जाए। इसके साथ ही तेज गति से बढ़ते आधुनिकीकरण को देखते हुए शिक्षा से संबंधित गैजेट्स सस्ते मिले जिससे सामान्य व्यक्ति भी उसे खरीद सके।

स्वास्थ्य संबंधित सरकार द्वारा अनेक योजनाओं को लागू किया गया है। परंतु देश के अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य सुविधाएं सरलता से पहुँचे इसलिए बजट में ठोस कदम उठाये जाने चाहिए। केवल स्वास्थ्य बीमा योजनाओं से देश के स्वास्थ्य में सुधार होना संभव नही है। शिशु मृत्य दर, माता मृत्युदर इसके जीवंत उदाहरण है।

मेरे दृष्टिकोण से बड़े-बड़े आर्थिक विश्लेषक, उद्योगपति, व्यापारियों के द्वारा किया गया बजट का मूल्यांकन एवं विश्लेषण से कई अधिक महत्वपूर्ण है सामान्य गृहस्थ और गृहिणियों द्वारा बजट को दिया गया सकारात्मक प्रतिसाद। क्यो की देश अभी भी *सुविधा मोड़ में न होकर सेवा मोड़ में है* और इस बात को ध्यान में रखकर सरकार बजट पेश करेगी यही अपेक्षा।

प्रा.नितिन अरुणा अशोक
(M.A.,B.Ed., SET,(Economics))
संस्थापक: भरारी फाउंडेशन, सूरत

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