योग की उपलब्धता केवल मनुष्य जीवन में : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी
प्रेम में कभी प्रतिकुलता समझी नहीं जाती
सूरत। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. सा. ने आज मंगलवार 20 अगस्त को परमात्मा महावीर की अखंड देशना के अंतिम देशना का रसपान करवाते हुए कहा कि लगातार चलने वाली सोलह प्रहर की देशना जिस परमात्मा ने उन प्रश्नों का भी समाधान किया जो पूछे गए थे और उन प्रश्नों का समाधान भी किया जो नहीं पूछे गए।
उन्होंने कहा की परिवार में विपरित परिस्थिति में आपसी संबंध खराब हो जाते है। लेकिन जिनसे प्रेम का संबंध है वह कभी समाप्त नहीं होता। क्योंकि प्रेम में कभी प्रतिकुलता समझी नहीं जाती। परमात्मा के हर शब्दों में करूणा है, हर प्रवृत्ति में करूणा है। और वह करूणा है जिसके पीछे कोई शर्त नहीं है।
उत्तराध्ययन का चल रहा तीसरा अध्याय चार महत्वपूर्ण रंग। चार दिशाएं, चार की दुर्लभता, चार का वातावरण, मनुष्य जीवन दुलर्भ, परमात्मा की वाणी को सूनना दुर्लभ, वाणी के प्रति श्रद्धा होना दुलर्भ और परमात्मा की वाणी के अनुसार पुरूषार्थ होना दुर्लभ। प्राप्ति, स्तुति, रूचि और कृति यह चारों दुर्लभ है। मनुष्य जीवन दुर्लभता समझ में आ जाए जो तो एक पल पल का महत्व समझ जाएंगे।
योग की उपलब्धता केवल मनुष्य जीवन में है। जीवन में दान रूचि, साधर्मिक भक्ति, अल्पकशाय बहुत जरूरी है। आज तपस्यियों की अनुमोदना का अदभूत वातावरण था। वरघोडा संबंधित चढ़ावा भी हुआ। आज गणधर तप का बैसना था। सिद्धिपत की छठी लड़ी में पांचवा उपवास है। 270 तपस्वी तप कर रहे है। 24 को गणधर तप जिसमें 250 तपस्वी है और 25 को सामूहिक पारणा और वरघोड़ा भी है। इसका आज चढ़ावा चढ़ाया गया।