भोग पर योग का रहे अंकुश : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
अहमदाबाद जिले से सौराष्ट्र क्षेत्र के सुरेन्द्रनगर जिले में किया मंगल प्रवेश
अहमदाबाद (गुजरात) : गुजरात की धरती पर अपनी धवल सेना के साथ गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को जनमानस के कल्याण के लिए तीन-तीन विहार किए, इस विहार के दौरान आचार्यश्री ने कुल 20 किलोमीटर की प्रलम्ब यात्रा की। आचार्यश्री की दृढ़संकल्प शक्ति और अखण्ड परिव्राजकता को मानों चरितार्थ कर दिया। शुक्रवार को प्रातःकाल में मीठापुर से मंगल प्रस्थान किया तो सर्दी का प्रभाव बहुत अधिक नजर नहीं आ रहा था। जन-जन पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री आगे बढ़ते जा रहे थे। आज आचार्यश्री प्रलम्ब विहार के लिए मानों संकल्पित थे।
विहार के प्रथम चरण में आचार्यश्री ने लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर प्रातरास युक्त अल्प प्रवास कर आचार्यश्री पुनः चार किलोमीटर के लिए गतिमान हुए। विहार के दौरान युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अहमदाबाद जिले से गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के सुरेन्द्रनगर जिले में पधारे। सुरेन्द्रनगर का पंछिना गांव में स्थित एक्युरेट इंफ्रा इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड फैक्ट्री में पधारे, जहां मंगल प्रवचन हुआ।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी का जीवन अनेक तत्त्वों का समवाय है। आदमी का शरीर चैतन्ययुक्त है, इसलिए भोजन, पानी, हवा के साथ-साथ मकान, कपड़ा, आवास, शिक्षा आदि की भी अपेक्षा होती है। जीवन चलाने के लिए जीवन की कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति करना आवश्यक होता है। प्रथम कोटि की अपेक्षा में हवा, जल और अन्न है। संस्कृत में रत्न भी कहा गया है। पानी, अन्न और सुभाषित रत्न हैं। जल आदमी के जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। प्यास लग जाए तो फिर उसकी किमत का कोई अंकन नहीं हो सकता। इसी प्रकार जीवन को टिकाए रखने के लिए अन्न की आवश्यकता होती है।
पृथ्वी पर सहजता के साथ उपलब्ध इन रत्नों का दुरुपयोग करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने दो कथानकों के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को कभी भी अनावश्यक रूप से जल का अपव्यय नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार अन्न के अपव्यय से बचने का प्रयास करना चाहिए। शादी, विवाह आदि-आदि विशेष अवसरों पर अति उत्साह के साथ बनाने वाले और खाने वाले दोनों को अन्न की उपयोगिता को समझने का प्रयास करना चाहिए और अन्न, जल की अनावश्यक बर्बादी से बचने का प्रयास करना चाहिए। बनाने वाले यदि सौ से अधिक आइटम बना भी दिए हैं तो खाने वाले को इसका ध्यान रखना चाहिए।
इस प्रकार आदमी को पदार्थों के भोग में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। यदि पदार्थों के भोग में संयम नहीं है तो आदमी को रोग भी हो सकता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में योग की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में भोग पर योग का अंकुश रहना चाहिए। धर्म की साधना भी होनी चाहिए। योग की साधना, धर्म की साधना जीवन में रहे तो जीवन अच्छा हो सकता है। आचार्यश्री के स्वागत में राजूभाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
मंगल प्रवचन के उपरान्त एक बार शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी पुनः गतिमान हुए और लगभग चार किलोमीटर का विहार कर सुरेन्द्रनगर जिले में स्थित टोकरला गांव में पदार्पण हुआ, जहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ।