मीनू शर्मा – महिला सशक्तीकरण, एकजुटता और स्त्री स्वतंत्रता की ओर एक पुरजोर प्रयास
जीवनी
मीनू शर्मा उपनाम श्रेया शर्मा, दिल्ली निवासी एक प्रतिभाशाली, महत्वाकांक्षी महिला हैं। जिन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेने के बाद डिप्लोमा इन कमर्शियल आर्ट्स की शिक्षा प्राप्त की। युवावस्था से ही महत्वाकांक्षी स्वभाव, अभिनय ने उन्हें थियेटर और फिल्म के क्षेत्र के लिए प्रेरित किया और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) के नामी गिरामी थियेटर डायरेक्टर के साथ रंगमंच में कार्य किया, और अहम भूमिका निभाई, कई लघु फिल्में (Short Films) उनके साथ बनायी। अपना खुद का M2S नाम से यू ट्यूब चैनल बनाया और बहुत सारी लघु फिल्मों में बतौर अभिनेत्री और डायरेक्टर की भूमिका निभाई। थियेटर पर्सेनालिटी के साथ साथ वो एक टैरो कार्ड रीडर, प्रानिक हीलर, लेखिका और कुशल वक्ता भी हैं। प्रकृति के साथ वक्त बिताना, जैसे नदियों और पहाड़ों वाले स्थानों पर जाना, बारिश और खुले आसमान में सूरज और चांद को निहारना, फोटोग्राफी, उगते सूरज को टकटकी देखते रहना, समुद्र की लहरों से खेलना, पुरातत्व संग्रहालय और स्थानों पर घूमना और बेबाकपन स्वभाव उनकी रूचियों में शामिल है। वो महिला सशक्तीकरण, एकजुटता और स्त्री की स्वतंत्रता के लिए लोगों में जागरूकता पैदा करने की पुरजोर कोशिश कर रहीं हैं। हिंदू समाज के उत्थान के लिए हर भरसक प्रयास करती हैं, और विभिन्न सामाजिक संगठनों और संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं।
स्त्री की स्वतंत्रता
स्त्री की स्वतंत्रता कोई नहीं चाहता इस बात से में एकदम सहमत हूं, जहां एक ओर हर मर्द स्त्री को घर गृहस्थी की जिम्मेदारी, बच्चों का पालन-पोषण, और अच्छा खाना पकाने से लेकर साफ-सफाई, भोग-बिलास के सीमित दायरे में देखना चाहता है, जबकि मर्द यह भूल जाता है कि स्त्री की भी अपनी इच्छाएं, महत्वाकांक्षायें और सपने होते हैं जिनके उन्होंने बचपन से सपने संजोए होते हैं, और आगे चलकर वो जिम्मेदारियों के तले पूरा नहीं कर पातीं और अपनी स्वतंत्रता को ताक पर रख कर खुद को घर गृहस्थी के कार्यों में झोंक देती हैं। जबकि आज के परिवेश में स्त्री मर्द से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं, उनके भी अपने सपने हैं, जिन्हें वो पूरा करना चाहती हैं, वो भी जीवन में आगे बढ़ना चाहती हैं, उनको भी अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की प्रबल इच्छाएं होती हैं, और ये उनका अधिकार भी है, पर बात जब उनकी स्वतंत्रता की आती है तो ये मर्द को किसी भी तरह रास नहीं आती। (अपवाद हर जगह हैं) क्योंकि मर्द स्त्री को उस दायरे से ऊपर उठकर देखना हीं नहीं चाहता, जबकि आज के दौर में स्त्री घर गृहस्थी के साथ कार्य क्षेत्र में भी अपनी धाक जमा रही हैं, पर सच्चाई यही है कि मर्द स्त्री को स्वतंत्रता का अधिकार नहीं देना चाहता। दरअसल इंसान की सोच ही इतनी है कि अगर पुरुष की सब जगह पहचान अच्छी है, लोगों से ज्यादा संबंध हैं तो उसका व्यवहार अच्छा है, और वहीं स्त्री की सब जगह पहचान है, और वो आगे बढ़कर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाना चाहती है तो उसके चरित्र पर उंगलियां उठने लगती हैं। लोग कहते हैं कि औरत कार, घर, और बेशुमार दौलत मांगती है, पर मेरा मानना है औरत सिर्फ इज्जत, मान-सम्मान, प्यार और वक्त मांगती है। दोस्तों एक स्त्री ने पुरूष से बड़ी कड़वी बात पूछी कि तुम शाम को घर देर से आये तो मुझे फिक्र हुई, और में देर से घर आई तो तुम्हें शक क्यों??? जबकि पुरुष को स्त्री की भावना, इज्जत, सपने और महत्वाकांक्षाओं का भी भरपूर सम्मान करना चाहिए। स्त्री की अपनी आजादी पर पहरा हमारे समाज का बहुत कड़वा सत्य है। जिसको हमें बदलना चाहिए, सिर्फ और सिर्फ हमें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।
-मीनू शर्मा (श्रेया) दिल्ली।