मुंबई बीजेपी के उत्तर भारतीय नेता मजबूत या मजबूर
मुंबई ( शिवपूजन पांडे )। पिछले कुछ वर्षों में मुंबई में रहने वाले उत्तर भारतीयों का झुकाव, तेजी से बीजेपी की तरफ बढ़ा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अन्य राजनीतिक दलों के मुकाबले बीजेपी ने उत्तर भारतीयों को जोड़ने की दिशा में सार्थक पहल की। अनेक तरह के प्रकोष्ठ बनाए गए। छोटे से बड़े उत्तर भारतीय नेताओं को अलग-अलग प्रकोष्ठों में किसी न किसी पद पर बैठा दिया गया। इन नेताओं ने पार्टी के लिए कड़ी मेहनत की, भीड़ जुटाए और लोगों को बीजेपी से जोड़ने का काम किया। उत्तर भारतीयों की संख्या बल को देखते हुए बीजेपी हाईकमान ने भी उन्हें तवज्जो दी।
बोलचाल ,भाषा शैली और शान शौकत में उत्तर भारतीय नेताओं की कोई सानी नहीं है। परंतु बूथ से लेकर मुंबई की कमेटियों में शामिल उत्तर भारतीय नेताओं का प्रभाव उत्तर भारतीय समाज तक ही देखा जा रहा है। पार्टी की जनरल बॉडी में उत्तर भारतीय नेता नाम मात्र के हैं। जो है भी, उन्हें पिछली पंक्ति में रखा गया है। मुंबई में उत्तर भारतीयों की निर्णायक संख्या होने के बावजूद, महानगरपालिका तक के चुनाव में उन्हें नजरअंदाज किया जाता रहा है। यहां तक कि उत्तर भारतीय बाहुल्य वार्डों में भी उनकी अनदेखी की जाती रही।
ऐसे में सवाल उठता है कि उत्तर भारतीय नेताओं की फौज को क्या सिर्फ परेड के लिए रखा गया है? मुंबई भाजपा में समर्पित भावना से काम कर रहे उत्तर भारतीय नेताओं में एक भी ऐसा चेहरा नजर नहीं आता जो पूरे आत्मविश्वास के साथ यह कह सके कि महानगरपालिका के चुनाव में उत्तर भारतीयों की संख्या बल के आधार पर उन्हें टिकट दिया जाएगा। टिकट देने की क्षमता तो दूर, इन्हे गारंटी पूर्वक टिकट दिलाने का अधिकार भी नहीं दिया गया है। उत्तर भारतीय मतदाता सिर्फ एक वोटबैंक होकर रह गया है।
उत्तर भारतीय समाज से जुड़े अधिकांश नेता उच्च शिक्षित होने के साथ-साथ संपन्न और जमीन से जुड़े हुए हैं। सारी काबिलियत होने के बावजूद चुनाव में उनकी उपेक्षा क्यों? वहीं आप कांग्रेस, शिवसेना (दोनों गुट), एनसीपी, समाजवादी पार्टी जैसी दूसरी पार्टियों पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि इन पार्टियों में उत्तर भारतीय नेता मजबूत स्थिति में हैं। उत्तर भारतीय वोटों का कम प्रतिशत पाने के बावजूद इन पार्टियों ने अनेक उत्तर भारतीय नेताओं को आगे बढ़ाने का काम किया।विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उत्तर भारतीयों को टिकट न देने की बात तो समझी जा सकती है, परंतु महानगरपालिका चुनाव में भी कम से कम उत्तर भारतीयों को टिकट देने की बात समझ से परे है।
देखा जाए तो बीजेपी में उत्तर भारतीय नेता वह सम्मान और ताकत नहीं बना पाए, जो कभी कांग्रेस में उत्तर भारतीय नेताओं ने बना रखा था। उस समय राज्य से लेकर केंद्र तक कांग्रेस की ही सरकारें हुआ करती थी। प्रभावशाली पदों पर बैठे उत्तर भारतीय नेता खुलकर उत्तर भारतीयों को टिकट दिलाने का काम करते थे।
( शिवपूजन पांडे )